Wednesday, March 10, 2010
राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक पर सहमति
राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक पर सहमति की मोहर लगना एक उल्लेखनीय राजनीतिक घटना है, लेकिन जब तक यह विधेयक कानून का रूप नहीं ले लेता तब तक इसे ऐतिहासिक कहना सही नहीं होगा। इसी तरह इस पर संतोष नहीं जताया जा सकता कि आखिरकार यह विधेयक राज्यसभा से पारित हो गया, क्योंकि भारतीय राजनीति की तस्वीर बदलने वाले इस विधेयक को जिस गरिमा के साथ पारित होना चाहिए था उसका अभाव नजर आया। यह सामान्य बात नहीं कि विधेयक पारित कराने के लिए सदन में मार्शल बुलाने पड़े। इतने महत्वपूर्ण विधेयक को पारित कराने के लिए ताकत का सहारा लेने की विवशता से यथासंभव बचा जाना चाहिए था। आखिर डेढ़ दशक से लंबित इस विधेयक पर आम सहमति कायम करने की एक और कोशिश क्यों नहीं की गई? ध्यान रहे कि अभी तक यह विधेयक पारित न हो पाने के पीछे मूल कारण आम सहमति का अभाव ही बताया जाता था। आखिर अचानक इतनी जल्दी क्यों पड़ गई कि सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग भी ठुकरा दी गई? क्या यह विचित्र नहीं कि जिस कार्य को महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम बताया जा रहा है उस पर प्रधानमंत्री को यह सफाई देनी पड़ रही है कि वह अल्पसंख्यक और अनुसूचित जाति एवं जनजाति विरोधी नहीं है? सत्तापक्ष और विशेष रूप से कांग्रेस इससे उत्साहित हो सकती है कि अंतत: उसके नेतृत्व वाली केंद्र सरकार महिला आरक्षण विधेयक को आगे बढ़ाने में सहायक हुई, लेकिन उसने जिस अभूतपूर्व आपाधापी में यह सफलता हासिल की उससे कुछ समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। कुछ समस्याओं का सामना तो उसे ही करना पड़ सकता है, क्योंकि लालू यादव और मुलायम सिंह संप्रग सरकार से समर्थन वापस लेने पर अडिग दिख रहे हैं। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि महिला आरक्षण विधेयक के जरिये भारतीय महिलाओं को सीधे एक ऐसे उच्च स्थान पर आसीन होने का अवसर मिलने जा रहा है जहां तक पहुंचना किसी के लिए भी मुश्किल है। विधानमंडलों में 33 प्रतिशत महिलाओं के पहुंचने से देर-सबेर शासन और समाज में सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि इससे आम महिलाओं की समस्त समस्याओं का समाधान हो जाएगा। सच तो यह है कि यह विधेयक आम भारतीय महिलाओं की समस्याओं का एक हद तक ही समाधान करता हुआ दिख रहा है, क्योंकि उनकी ज्यादातर समस्याएं पुरुष प्रधान समाज के रवैये के चलते हैं। यह कहना कठिन है कि विधानमंडलों में अधिक संख्या में महिलाओं के पहुंचने से पुरुषों की मानसिकता में कोई उल्लेखनीय तब्दीली आएगी। महिला आरक्षण विधेयक जिस माहौल में और जिन आशंकाओं के साथ पारित हुआ उससे आम महिलाओं के प्रति दुराग्रह बढ़ने का भी अंदेशा है। केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसा न होने पाए। इसी के साथ उसे इस पर भी विचार करना होगा कि जो महिलाएं अधिकारों से वंचित और उपेक्षित हैं उनकी समस्याओं का समाधान किस तरह प्राथमिकता के आधार पर हो
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