Monday, June 30, 2014

BSP, NCP और CPM से छिन सकता है राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा

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भारतीय चुनाव आयोग ने दो हफ्ते पहले इन तीनों पार्टियों को कारण बताओ नोटिस जारी कर सफाई मांगी है कि लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन को मद्देनजर रखते हुए आखिर इन पार्टियों का राष्ट्रीय पार्टी होने का दर्जा क्यों न रद्द किया जाए.

राष्ट्रीय पार्टी होने के लिए जरूरी मापदंडों के मुताबिक एक राष्ट्रीय पार्टी को चार राज्यों में अलग-अलग  छह प्रतिशत वोट मिलने चाहिए या कम से कम तीन प्रदेशों में कुल लोकसभा सीट की दो प्रतिशत, या कम से कम चार प्रदेशों में क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा होना चाहिए.

आम चुनावों के बाद एनसीपी, बीएसपी और सीपीआई राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए जरूरी इन सबमें से कोई भी मापदंड पूरा नहीं करती हैं.

इन तीनों पार्टियों को चुनाव आयोग को 27 जून तक सफाई देनी थी. अगर इन पार्टियों का राष्ट्रीय दर्जा खत्म कर दिया जाता है तो देश में सिर्फ बीजेपी, कांग्रेस और सीपीआई(एम) ही राष्ट्रीय स्तर की पार्टियां होंगी. इसके अलावा 1968 में जारी किए गए चुनाव चिन्ह कानून के तहत राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म होने पर कोई पार्टी पूरे देश में चुनावों के दौरान एक ही चुनाव चिन्ह के साथ चुनाव नहीं लड़ सकती.

अगर इस नियम को लागू किया गया तो बीएसपी सिर्फ उन्हीं राज्यों में हाथी चुनाव चिन्ह का प्रयोग कर पाएगी जहां उसे राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा प्राप्त है.

इसके साथ ही एनसीपी, बीएसपी और सीपीआई से राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर मिलने वाली ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर ब्रॉडकास्टिंग और मतदाता सूची की फ्री कॉपियों की सुविधा भी छिन जाएगी.  

Friday, June 20, 2014

49वां ज्ञानपीठ पुरस्कार

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हिंदी की आधुनिक पीढ़ी के रचनाकार केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 के लिए देश का सर्वोच्च साहित्य सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। वह यह पुरस्कार पाने वाले हिंदी के 10वें लेखक हैं।

ज्ञानपीठ की ओर से आज यहां जारी विज्ञप्ति के मुताबिक, सीताकांत महापात्रा की अध्यक्षता में आज यहां हुई चयन समिति की बैठक में हिंदी के जाने माने कवि केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 का 49वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने का निर्णय किया गया।

केदारनाथ सिंह इस पुरस्कार को हासिल करने वाले हिंदी के 10वें रचनाकार है। इससे पहले हिंदी साहित्य के जाने माने हस्ताक्षर सुमित्रनंदन पंत, रामधारी सिंह दिनकर, सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय, महादेवी वर्मा, नरेश मेहता, निर्मल वर्मा, कुंवर नारायण, श्रीलाल शुक्ल और अमरकांत को यह पुरस्कार मिल चुका है। पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार मलयालम के लेखक जी शंकर कुरूप (1965) को प्रदान किया गया था।

केदार जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के ग्राम चकिया में वर्ष 1934 में हुआ था। उनकी प्रमुख कृतियों में 'अभी बिल्कुल अभी', 'जमीन पक रही है', 'यहां से देखो', 'अकाल में सारस', 'बाघ', 'सृष्टि पर पहरा', 'मेरे समय के शब्द', 'कल्पना और छायावाद' और 'टॉलस्टॉय और साइकिल’ आदि शामिल हैं।

पुरस्कार के रूप में केदारनाथ सिंह को 11 लाख रुपये, प्रशस्ति पत्र और वाग्देवी की प्रतिमा प्रदान की जाएगी।

Thursday, June 19, 2014

सूचीबद्ध कंपनियों में 25 फीसदी सार्वजनिक हिस्सेधारिता अनिवार्य

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बाजार नियामक सेबी ने नियमों में समानता लाने के मकसद से आज सूचीबद्ध सार्वजनिक उपक्रमों में 25 फीसद सार्वजनिक हिस्सेदारी को अनिवार्य करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। सार्वजनिक उपक्रमों को इस नियम को तीन साल में पूरा करना होगा। इस निर्णय से सरकार 36 उपक्रमों में अपने पास अनुपात से अधिक शेयर की बिक्री कर के करीब 60,000 करोड़ रुपये जुटा सकती है। मौजूदा नियमों के अनुसार सरकारी उपक्रमों के लिए 10 फीसदी सार्वजनिक हिस्सेदारी रखना जरूरी है। वहीं निजी क्षेत्र की कंपनियों  के लिए न्यूनतम सार्वजनिक हिस्सेदारी की सीमा 25 फीसदी है।
सेबी के चेयरमैन यूके सिन्हा ने नियामक के निदेशक मंडल की बैठक के बाद कहा, 'सेबी का मानना है कि बाजार के नियम सभी प्रवर्तकों के लिए समान होने चाहिए। यह इस बात पर निर्भर नहीं होने चाहिए कि प्रवर्तक कौन है।'  सेबी के निदेशक मंडल ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। अब इसे अधिसूचना के लिए सरकार के पास भेजा जाएगा जिसके बाद नियमनों को अंतिम रूप दिया जाएगा। सेबी का मानना है कि सार्वजनिक हिस्सेदारी का नियम सरकारी व निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए अलग-अलग होना भेदभावपूर्ण है। सिन्हा ने कहा, 'प्रतिभूति अनुबंध नियमन (नियम) में भी संशोधन करना होगा जिससे सार्वजनिक क्षेत्र की सभी सूचीबद्ध कंपनियां 25 फीसद सार्वजनिक हिस्सेदारी के नियम का अनुपालन कर सकें।'

वर्ल्ड फूड अवॉर्ड

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भारत में जन्मे प्लांट साइंटिस्ट संजय राजाराम को हरित क्रांति के बाद ग्लोबल गेहूं उत्पादन में 20 करोड़ टन से ज्यादा बढ़ोतरी में योगदान देने के लिए प्रतिष्ठित वर्ल्ड फूड अवॉर्ड से सम्मानित करने का ऐलान किया गया है। राजाराम को यह अवॉर्ड साल 2014 के लिए दिया जाएगा, जिसके तहत उन्हें 2,50,000 डॉलर मिलेंगे। राजाराम मेक्सिको के नागरिक हैं। 

तैयार की खास किस्म
राजाराम ने शीत और वसंत ऋतु के गेहूं की किस्मों की सफल क्रॉस-ब्रीडिंग तैयार की थी, जो खास किस्मों में आती है। ये दोनों ही किस्में सालों से एक-दूसरे से अलग थीं। दोनों के क्रॉस-ब्रीडिंग से जो किस्म तैयार की गई, उसमें ज्यादा पैदावार क्षमता है और उसका जेनेटिक आधार भी व्यापक है। राजाराम की विकसित उच्च पैदावार क्षमता वाली गेहूं की 480 से ज्यादा किस्में 6 महाद्वीपों के 51 देशों में जारी की गई और उन्हें छोटे-बड़े किसानों ने एक साथ अपनाया। 

पीलीभीत बाघ अभयारण्य

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उत्तर प्रदेश को एक और बाघ अभयारण्य मिल गया है। भारत-नेपाल सीमा पर स्थित लगभग 73 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फैले पीलीभीत बाघ अभयारण्य के लिए अधिसूचना जारी कर दी गई है। कॉर्बेट पार्क के उत्तराखंड में चले जाने के बाद उत्तर प्रदेश में दुधवा और अमानगढ़ बाघ अभयारण्य क्षेत्र ही बचे थे। अब उत्तर प्रदेश सरकार ने पीलीभीत को नया बाघ अभयारण्य क्षेत्र घोषित कर दिया है। इसके बाद पीलीभीत देश का 45वां बाघ अभयारण्य क्षेत्र बन गया है। इससे पहले इसी वर्ष फरवरी में पीलीभीत को वन्यजीव अभयारण्य का दर्जा दिया गया था।
उल्लेखनीय है कि विगत वर्ष हुई गणना में उत्तर प्रदेश में मौजूद कुल 118 बाघों में से पीलीभीत में 30 बाघ पाए गए थे। पीलीभीत में बाघों के लगातार हो रहे प्रजनन को देखते हुए प्रदेश सरकार ने इसे बाघ अभयारण्य घोषित करने की प्रक्रिया की शुरुआत की थी। वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि बाघों के प्रजनन के लिए प्रदेश में पीलीभीत सबसे उपयुक्त क्षेत्र है।
पीलीभीत को बाघ अभयारण्य घोषित किए जाने के बाद अब प्रदेश सरकार नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी मिलने वाले अनुदान की सहायता से इस क्षेत्र का विकास करेगी। पीलीभीत के जंगलों में बाघों के रहवास के लिए आदर्श परिस्थितियां मौजूद हैं। यहां न केवल बाघों के पर्याप्त पोषण के लिए शिकार मौजूद हैं, बल्कि तराई क्षेत्र की वनस्पति भी उनके रहने के लिए अनुकूल है। पीलीभीत के जंगलों में बाघों के आहार के लिए बड़ी संख्या में चीतल हिरन, जंगली सूअर, सांभर हिरन और अन्य शाकाहारी जीव पाए जाते हैं। पीलीभीत बाघ अभयारण्य का क्षेत्रफल लगभग 73,000 हेक्टेयर होगा जिसका दायरा नेपाल सीमा तक होगा।
उल्लेखनीय है कि राज्य में दुधवा को 1987 में बाघ अभयारण्य घोषित किया गया था जबकि अमानगढ़ को 2012 में घोषित किया गया। विशेषज्ञों के अनुसार शुरुआत में बाघों के आवागमन के लिए बहराइच का कतरनियाघाट-दुधवा-पीलीभीत-अमानगढ़ क्षेत्र सबसे सुरक्षित हुआ करता था। बाद में रिहाइशी क्षेत्र के आ जाने से यह आवागमन बाधित होने लगा था। इसके बाद बड़ी में बाघों नें पीलीभीत के जंगलों को ही अपना ठिकाना बना लिया था।
विश्व में मौजूद 2,500 बाघों में से केवल भारत में 1,706 बाघ हैं। उत्तर प्रदेश में दुधवा, अमानगढ़ और पीलीभीत के अलावा बाघों की सबसे अधिक रिहाइश बहराइच के कतरनिया घाट और श्रावस्ती के सुहेलवा के जंगलों में है।

Tuesday, June 17, 2014

राज्यपालों को कानूनी कवच

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त्तर प्रदेश के राज्यपाल बीएल जोशी ने मंगलवार को इस्तीफा दे दिया। वहीं, गृह मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि गुजरात की राज्यपाल कमला बेनीवाल, पंजाब के राज्यपाल शिवराज पाटिल और केरल की राज्यपाल शीला दीक्षित को भी पद से इस्तीफा देने के लिए कहा गया है। हालांकि, शीला दीक्षित और शिवराज पाटिल ने इससे साफ इनकार किया है। उत्तरप्रदेश के राज्यपाल बीएल जोशी के इस्तीफा पर प्रतिक्रिया देते हुए गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि ''अगर मैं उनकी जगह होता तो मैं भी इस्तीफा दे देता।'' लेकिन जिस तरह कुछ राज्यपालों ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया, उस पर विवाद पैदा हो गया है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने राज्यपालों को कानूनी कवच दिया है, इसी के आधार पर वे इस्तीफा देने से इनकार रहे हैं।  
 
क्या है कानूनी प्रावधान
बीएल सिंघल बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए फैसले के अनुसार, सिंघल ने जनहित याचिका दायर कर 2004 में सत्ता में आने वाली यूपीए सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गोवा और गुजरात के राज्यपालों को हटाए जाने पर आपत्ति ली थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया, '' राज्यपाल केंद्र सरकार और केंद्र की सत्ता में काबिज किसी पार्टी की नीतियों और विचारधारा से मुक्त हैं, इसलिए उन्हें हटाया नहीं जा सकता। केंद्र सरकार विश्वास खोने की स्थिति में भी उन्हें नहीं हटा सकती। केंद्र में सत्ता परिवर्तन भी राज्यपालों को हटाने की जमीन तैयार नहीं करती ताकि वे अपने चहेतों को राज्यपाल पद पर बैठा सकें। इसलिए ऐसे कारणों की कोई जरुरत नहीं है। ऐसे निर्णय वैध नहीं माने जाएंगे और हमेशा इनकी न्यायिक समीक्षा के रास्ते खुले रहेंगे।''
 
कोर्ट ने कहा था कि अगर वह व्यक्ति सनकी है मनमाना है और नेक नहीं है, तो उसे प्रथम दृष्टया हटाया जाना उचित है। अगर ऐसा कोई उचित कारण नहीं है, तो कोर्ट सरकार से जवाब-तलब कर सकती है। लेकिन अगर केंद्र सरकार कारणों का खुलासा नहीं करती, तो निर्णय वापस लेने का विकल्प भारत के राष्ट्रपति को होगा। अगर केंद्र सरकार किसी भी कारण से कारणों का खुलासा नहीं करती तो निर्णय को अप्रासंगिक, मनमाना माना जाएगा और कोर्ट हस्तक्षेप करेगी। 

Sunday, June 1, 2014

एसआईटी

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स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) बनाने का ऐलान कर दिया गया है। एसआईटी के प्रमुख सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एम.वी. शाह को बनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट के ही पूर्व जज अरिजित पासायत एसआईटी के वाइस चेयरमैन होंगे। सदस्यों के रूप में सीबीआई, रॉ, आईबी, ईडी, सीबीडीटी के टॉप अफसर रहेंगे। एसआईटी यह पता लगाएगी कि देश में कितनी ब्लैक मनी है और साथ ही इसे वापस लाने के तरीकों पर सरकार को सुझाव भी देगी।

उच्चधिकार प्राप्त 9 मंत्री समूह (इजीओएम) और 21 मंत्री समूह (जीओएम) को भंग करने का एलान

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नयी दिल्ली:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को सभी 30 मंत्री समूह और उच्चधिकार प्राप्त मंत्री समूह भंग कर दिये. लंबित मसलों पर फैसले लेने का अधिकार संबंधित मंत्रालयों व विभागों को दिया गया है.

उच्चधिकार प्राप्त 9 मंत्री समूह (इजीओएम) और 21 मंत्री समूह (जीओएम) को भंग करने के फैसले का एलान करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने कहा कि इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया तेज होगी. साथ ही व्यवस्था में अधिक जवाबदेही आयेगी. इस फैसले के साथ ही नरेंद्र  मोदी ने पिछले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की प्रशासन पर छोड़ी गयी सबसे बड़ी छाप खत्म कर दी है.

नयी व्यवस्था में क्या : 
पीएमओ के मुताबिक मंत्रलय व विभाग अब इजीओएम व जीओएम के समक्ष लंबित मुद्दों पर विचार करेंगे. मंत्रालय व विभाग स्तर पर ही उचित फैसला लिया जायेगा. यदि कहीं भी मंत्रलयों को कठिनाई आयेगी, तो कैबिनेट सचिवालय व पीएमओ निर्णय लेने की प्रक्रिया में मदद करेंगे.

विवाद की स्थिति में : अब यदि कोई अंतर-मंत्रालयी विवाद होता है, तो उसे कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली सचिवों की समिति द्वारा हल किया जा सकता है.

पहले की व्यवस्था : 
 भ्रष्टाचार, अंतर राज्यीय जल विवाद, प्रशासनिक सुधार और गैस व दूरसंचार मूल्य जैसे मुद्दों पर फैसले के लिए उक्त समूहों का गठन किया गया था. इजीओएम के पास केंद्रीय मंत्रिमंडल की तर्ज पर फैसले लेने का अधिकार था. जीओएम की सिफारिशें अंतिम फैसले के लिए कैबिनेट के समक्ष पेश की जाती थीं. मनमोहन सरकार के समय 10 साल तक अस्तित्व में रहे जीओएम के बारे में सूत्रों ने कहा कि इनमें से कई जीओएम की बैठक ही नहीं हुई. केवल कुछ ने ही फैसले दिये. 

क्या है उद्देश्य  
निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेजी लाना  
कैबिनेट के अधिकारों को बहाल करना  
मंत्रालयों व विभागों के सशक्त बनाना  
निर्णय लेने के स्तरों को कम करना 
व्यवस्था को युक्तिसंगत बनाना