Saturday, December 26, 2009

गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी)

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देश में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) को लागू करने की तिथि की घोषणा आगामी 8 जनवरी को हो सकती है। यह बात राज्यों के वित्त मंत्रियों की उच्चाधिकार प्राप्त समिति के चेयरमैन असीम दासगुप्ता ने शुक्रवार को कही। उन्होंने कहा कि जीएसटी पर अमल को लेकर वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के साथ एक विशेष बैठक आगामी 8 जनवरी को होनी है। इस बैठक के बाद उसी दिन एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया जाएगा।
दासगुप्ता ने कहा, राज्यों के वित्त मंत्रियों की दो दिवसीय बैठक आगामी 7 जनवरी से होनी है। जीएसटी के बारे में कोई वक्तव्य जारी करने से पहले हमलोग प्रणब मुखर्जी से मिलेंगे। प्रणब द्वारा 1 अप्रैल 2010 से जीएसटी के न लागू हो पाने की आशंका जताने के ठीक एक दिन बाद दासगुप्ता ने यह बयान दिया है। प्रणब ने गुरुवार को कहा था कि जीएसटी को लेकर 28 राज्यों में सहमति अब तक नहीं बन पाई है। जब दासगुप्ता से यह पूछा गया कि क्या जीएसटी पर राज्यों की सहमति हो गई है तो उन्होंने कुछ कहने से इनकार कर दिया।

Saturday, December 19, 2009

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जलवायु परिवर्तन के मामले पर अमेरिका, भारत,चीन और ब्राजील के बीच एक सार्थक सहमति बन गई है। इस बारे में अमेरिका 
के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा, 'ग्रीन हाउस गैसों की कटौती के मामले पर अमेरिका का दुनिया के उभरते अर्थव्यवस्थावाले देशों भारत, चीन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के बीच एक सार्थक समझौता हो गया है।' हालांकि ओबामा ने यह माना कि इंटरनैशनल लेवल पर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अभी और आगे जाना है।


यहां पर ओबामा ने कहा, 'हमने कोपेनहेगन में सार्थक और बेमिसाल उपलब्धि हासिल की है। पहली बार दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थावाले देश एक साथ आए हैं और उन्होंने अपनी जिम्मेदारी स्वीकार की है ताकि जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए कार्रवाई की जा सके।'

उन्होंने कहा कि अमरीका, चीन, ब्राज़ील, भारत और दक्षिण अफ्रीका ग्लोबल वॉर्मिंग को 2 सेल्सियस से अधिक न रखने के टारगेट पर सहमत हो गए हैं।

ओबामा ने कहा, 'मैं जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर चीन, भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ़्रीका के नेताओं से मिला। हम सब इस पर सहमत हुए हैं कि हम अपने वादे और उस पर की जाने वाली कार्रवाई को सामने रखेंगे। हम इसे लागू करने के बारे में इन्फर्मेशन देंगे। इसके लिए साफ तौर पर दिशा-निर्देश होगा, जिसके तहत इनका विश्लेषण भी होगा।'
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अल्पसंख्यकों के आरक्षण की सिफारिश करने वाली रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट संसद में पेश तो हो गई है लेकिन उसकी राह बहुत मुश्किल है। बल्कि कहा जा सकता है कि कुछ मायनों में सरकार दो पाटों के बीच फंस गई है। सरकार की दुविधा यह है कि वह अल्पसंख्यकों को खुश करे या दलितों और पिछड़ों को या फिर सबको खुश कर सामान्य वर्ग की नाराजगी झेले। कुल मिलाकर रिपोर्ट ने ऐसे विवादों का पिटारा खोल दिया है जहां राजनीति ज्यादा होगी, काम कम। राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने तो पहले ही चेतावनी दे दी है कि रिपोर्ट पर कार्रवाई न हुई तो वह आंदोलन करेंगे। जबकि सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, जद(यू), लोजपा आदि ने इसका संकेत पहले ही दे दिया है। ऐसे में अल्पसंख्यकों के समर्थन के सहारे दोबारा केंद्र में पहुंची कांग्रेस सरकार को रंगनाथ मिश्र रिपोर्ट ने असमंजस में डाल दिया है। रिपोर्ट की सिफारिशें मानने पर अल्पसंख्यकों के लिए न सिर्फ नौकरियों व शिक्षा में आरक्षण का दरवाजा खोलना होगा बल्कि संसद और विधानसभाओं में भी उनको आरक्षण देना होगा। इतना ही नहीं परोक्ष रूप से महिला आरक्षण में कोटा के अंदर कोटा की बात भी माननी होगी। आरक्षण का कोटा 50 प्रतिशत से कम रखने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद फिलहाल सरकार केवल वर्तमान आरक्षण के दायरे में ही फेरबदल कर सकती है। रिपोर्ट में ओबीसी कोटा में ही अल्पसंख्यकों के लिए लगभग आठ प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश है। सरकार इस सिफारिश को माने तो ओबीसी की नाराजगी झेलने के लिए तैयार होना होगा। इसके लिए कांग्रेस के अंदर भी समर्थन नहीं है। बाहर भी लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और शरद यादव जैसे नेता इसके लिए तैयार नहीं। शुक्रवार को लालू ने इसका संकेत भी दे दिया। उन्होंने कहा- कोटा के अंदर आरक्षण देने पर बाकी के मुस्लिम क्या करेंगे। उनके लिए दस प्रतिशत अलग से आरक्षण होना चाहिए। ओबीसी मान भी जाएं तो इसका असर महिला आरक्षण पर भी पड़ेगा। सपा, राजद, जनता दल(यू) जैसे कई दल महिला आरक्षण के अंदर आरक्षण की मांग करते रहे हैं। ओबीसी आरक्षण में अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण होते ही इन दलों का दबाव बढ़ेगा। कांग्रेस और भाजपा महिला आरक्षण में कोटा के हक में नहीं। जबकि 1950 के प्रेसिडेंशियल आदेश के खत्म होते ही अल्पसंख्यक दलितों के लिए न सिर्फ शिक्षा और नौकरियों में बल्कि संसद में आरक्षित सीट के लिए भी राह खुल जाएगी। जाहिर है कि आरक्षित सीट से आने वाले वर्गों की ओर से इसका पुख्ता विरोध होगा.

 इस आयोग के अध्यक्ष रंगनाथ मिश्र हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस भी रह चुके हैं। आयोग की सिफारिशों के मुताबिक, शेड्यूल्ड कास्ट (एससी) का दर्जा धर्म से न जुड़ा रहे। 1950 के शेड्यूल्ड कास्ट ऑर्डर को खत्म कर दिया जाए, जिसके तहत अब भी मुस्लिम, ईसाई, जैन और पारसी एससी के दायरे से बाहर हैं। शुरू में इस आदेश के तहत एससी का दर्जा सिर्फ हिंदुओं तक सीमित था, बाद में बौद्ध और सिख भी शामिल हो गए।

आयोग का कहना है कि अगर 10 पर्सेंट सीटें मुसलमानों से न भर पाएं तो ये सीटें दूसरे अल्पसंख्यकों को दी जाएं। लेकिन किसी हालत में ये 15 पर्सेंट सीटें बहुसंख्यक समुदाय से किसी को न मिल पाएं। आयोग ने सलाह दी है कि अगर 15 पर्सेंट रिजर्वेशन की सिफारिशों को लागू करने में रुकावट आती है तो रिजर्वेशन का अल्टरनेट रूट अपनाया जा सकता है। चूंकि मंडल आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, अल्पसंख्यक ओबीसी आबादी का 8.4 पर्सेंट हैं लिहाजा 27 पर्सेंट ओबीसी कोटा में 8.4 पर्सेंट कोटा अल्पसंख्यकों के लिए रखा जा सकता है। इसमें 6 पर्सेंट मुसलमानों के लिए हो, क्योंकि कुल अल्पसंख्यकों की आबादी में मुसलमान 73 पर्सेंट हैं। बाकी 2.4 पर्सेंट कोटा अन्य अल्पसंख्यकों के लिए हो। हालांकि अनुसूचित जनजाति ऐसा वर्ग है, जिससे धर्म नहीं जुड़ा है। लेकिन यह देखा जाना चाहिए कि इसके रिजर्वेशन में अल्पसंख्यकों की मौजूदगी किस हद तक है और इसके लिए उपाय किए जाने चाहिए।
रंगनाथ मिश्र आयोग ने सच्चर कमिटी की रिपोर्ट से एक कदम आगे बढ़कर अपनी सिफारिशें दी हैं।

इस आयोग को अक्टूबर, 2004 में नोटिफाई किया गया था और इसने 2005 में काम करना शुरू किया। दो साल बाद मई, 2007 में इसने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी। बीजेपी को छोड़कर बाकी सभी पार्टियां आयोग की रिपोर्ट को संसद के पटल पर रखने की मांग करती रही हैं। अलग-अलग पार्टियों के कई सांसदों ने इस पर ऐक्शन टेकन रिपोर्ट (एटीआर) पेश करने की भी मांग भी की है। लेकिन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद ने साफ किया कि एटीआर जरूरी नहीं, क्योंकि इस आयोग का गठन किसी कमिशन ऑफ इनक्वायरी ऐक्ट के तहत नहीं किया गया।

आयोग ने कहा है कि सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के प्रति एक सामान्य अप्रोच अपनाने की जरूरत है जो जाति, वर्ग या धर्म आधारित नहीं होना चाहिए, जिससे सब लोगों को सामाजिक न्याय और बराबरी मिल सके। हालांकि आयोग की सदस्य सचिव आशा दास ने एक सिफारिश पर असंतोष जताते हुए कहा है कि धर्म परिवर्तन कर ईसाई और मुसलमान बनने वाले दलितों को एससी का दर्जा देने का कोई तर्क नहीं है। इन्हें अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) का हिस्सा बने रहना चाहिए। जब तक सामाजिक और शिक्षित पिछड़ों की व्यापक सूची न बन जाए, तब तक वे ओबीसी को मिलने वाली सुविधाओं और आरक्षण का लाभ उठाएं। मगर आयोग ने आशा दास के असंतोष को खारिज करते हुए कहा है, 'हम सिफारिशों के हर शब्द पर कायम हैं।'

Sunday, December 13, 2009

रंगनाथ मिश्र आयोग

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धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को रोजगार और तालीम में खास तवज्जो की पैरवी करने वाली रंगनाथ नाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट को संसद में पेश करने पर सरकार राजी तो हो गई है, लेकिन उसकी सिफारिशों पर अमल होने के आसार कम हैं। शायद यही वजह है कि सरकार संसद में उस रिपोर्ट के साथ कार्रवाई रिपोर्ट भी पेश करने के मूड में नहीं है। बताते हैं कि रिपोर्ट में धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को पंद्रह प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की गई है। उसमें भी दस प्रतिशत मुसलमानों और पांच प्रतिशत बाकी अल्पसंख्यकों को देने की बात है। जबकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती। अभी पिछड़ों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का कुल आरक्षण 49.5 प्रतिशत तक है। सूत्रों की मानें तो आयोग ने दो तरह का फार्मूला सुझाया है। उसके तहत या उनके लिए अलग से आरक्षण की बाबत संविधान में संशोधन किया जाए। आयोग का सुझाव है कि यदि सरकार ऐसा नहीं कर पाती तो वह पिछड़ों के 27 फीसदी आरक्षण में से ही कुछ अल्पसंख्यकों को दे, क्योंकि पिछड़े मुसलमानों की भी बड़ी संख्या है। बताते हैं कि आयोग ने इसके साथ ही अनुसूचित जाति के आरक्षण के लिए 1950 के प्रेसीडेंशियल आदेश में भी बदलाव की सिफारिश की है। जिसके तहत अभी हिंदू, सिख और बौद्ध दलितों को ही आरक्षण मिलता है। आयोग की सिफारिश पर उसमें बदलाव हुआ तो इन संप्रदायों से धर्म परिवर्तन करके इस्लाम व ईसाई धर्म अपनाने वाले भी आरक्षण के पात्र हो जाएंगे

Friday, December 11, 2009

तेलंगाना राज्य

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अलग तेलंगाना राज्य को लेकर आंध्र प्रदेश में चल रहे आंदोलन पर दिल्ली में हुई कई महत्वपूर्ण बैठकों के बाद केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि तेलंगाना राज्य के गठन की प्रक्रिया शुरु की जाएगी.
केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने देर रात पत्रकारों को बताया कि इसके लिए राज्य विधानसभा में समुचित प्रस्ताव पेश किया जाएगा.
हालांकि उन्होंने इसकी कोई तारीख़ नहीं बताई है.
इस घोषणा के बाद से हैदराबाद में ख़ुशी की लहर दौड़ गई है और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के नेताओं ने इसे तेलंगाना की जनता की जीत बताया है.
उधर हैदराबाद में पिछले 11 दिनों से आमरण अनशन कर रहे टीआरएस के चंद्रशेखर राव ने 'जय तेलंगाना' के नारों के बीच निज़ाम इंस्टिट्यूट में अपना अनशन समाप्त कर दिया है.
उनकी हालत ख़राब हो जाने के बाद बुधवार को उन्हें इंजेक्शन के ज़रिए तरल पदार्थ दिया गया था, जिससे उनकी हालत में कुछ सुधार हुआ था.

लेकिन दूसरी ओर तटीय आंध्र प्रदेश और रायलसीमा के राजनीतिज्ञों में खलबली मच गई है और राज्य के गठन का विरोध करते हुए सभी दलों के कम से कम 93 विधायकों और दो सांसदों ने इस्तीफ़े दे दिए हैं.
विधायकों के इस्तीफ़े विधानसभा स्पीकर के पास भेजे गए हैं और उन्होंने कहा है कि वे निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार सभी विधायकों से व्यक्तिगत रुप से चर्चा करने के बाद ही इस्तीफ़ों के बारे में कोई फ़ैसला करेंगे.
इस बीच आंध्र प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह तेलंगाना राज्य के गठन की प्रक्रिया शुरु करने के मसले पर वह पीछे हटने वाली नहीं है, हालांकि यह घोषणा अभी भी नहीं की गई है कि विधानसभा में राज्य के गठन के संबंध में प्रस्ताव कब पेश किया जाएगा.
इस्तीफ़े
बुधवार को आधी रात को केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम की घोषणा का जो जश्न शुरु हुआ था वह गुरुवार को दिन भर भी जारी रहा.
टीआरएस नेता चंद्रशेखर राव ने 11 दिन का आमरण अनशन बुधवार की रात ही ख़त्म कर दिया था.
उन्होंने केंद्र सरकार की घोषणा का स्वागत करते हुए कहा था कि यह तेलंगाना के लोगों के लिए 50 वर्षों का सपना पूरा होने की तरह है.
लेकिन तटीय आंध्र प्रदेश और रायलसीमा के राजनीतिज्ञों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है

Saturday, December 5, 2009

आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई

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 ओबामा भविष्य की जरूरतों पर ध्यान दे रहे हैं। इराक से 2010 में सेना की वापसी की शुरुआत करने और 2011 में पूरी तरह वहां से निकल आने की प्रतिबद्धता उतना ही बुद्धिमानी भरा निर्णय है जितना कि अफगानिस्तान में तीस हजार और सैनिक भेजने का निर्णय। दुनिया जानती है कि आतंकी हमलों की साजिश रचने और उन्हें अंजाम देने का काम अफगानिस्तान से किया जा रहा है। दक्षिणी अफगानिस्तान और पाकिस्तान से लगे जनजातीय इलाके में सेना की तैनाती में तीन से छह माह का समय लग सकता है, लेकिन पाकिस्तान की धरती से आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे रहे लोगों के लिए संदेश स्पष्ट है। यह संदेश पाकिस्तानी सरकार, सेना और आईएसआई में घुसे आतंकियों के समर्थकों के लिए भी है। ओबामा ने पाकिस्तान सरकार को लश्करे तैयबा को मिल रही मदद के प्रति आगाह किया है। पाकिस्तान एक लंबे समय से आतंकवाद के मसले पर दुनिया को ब्लैकमेल करने की रणनीति पर चल रहा है। वह आतंकवाद से लड़ने के नाम पर अमेरिका से भी आर्थिक और सैन्य मदद झटकने में सफल है। हम सब पाकिस्तान में सत्ता प्रतिष्ठान में अलग-अलग गुटों के बीच संघर्ष से परिचित हैं। पाकिस्तान आतंकवाद से लड़ने के लिए अमेरिका से मिलने वाली मदद का दुरुपयोग जम्मू-कश्मीर तथा भारत के दूसरे हिस्सों में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने में कर रहा है। 26 नवंबर के आतंकी हमले के संदर्भ में सामने आई सूचनाएं और अमेरिका में पाकिस्तानी मूल के आतंकियों-डेविड हेडली उर्फ दाऊद गिलानी और तहव्वुर हुसैन राणा की गिरफ्तारी से मुंबई हमले की अधूरी कडि़यां जुड़ सकती हैं। अब अमेरिका को अफगानिस्तान में अधिक सैन्य बलों की तैनाती से अपनी कार्रवाई को नई धार देने का मौका मिलेगा। मुझे लगता है कि वैश्विक समुदाय आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जीतने की ओर बढ़ रहा है

बच्चों को अनिवार्य व मुफ्त शिक्षा

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 केंद्र सरकार ने छह से चौदह साल तक के बच्चों को अनिवार्य व मुफ्त शिक्षा के लिए संसद के पिछले सत्र में विधेयक भले ही पारित करा लिया हो, लेकिन उस पर अमल में अब भी पेंच है। केंद्र और राज्यों के बीच उसके खर्च को लेकर बंटवारे का मामला पहले की तरह अब भी नहीं सुलझा है। साफ है जब तक यह तय नहीं होगा, कानून पर अमल नहीं होगा। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने शुक्रवार को राज्यसभा में एक पूरक प्रश्न के जवाब में कहा कि बच्चों को अनिवार्य व मुफ्त शिक्षा अधिकार अधिनियम के अमल पर 2011 से 2014-15 की अवधि के लिए 1,71,484 करोड़ रुपये खर्च का अनुमान लगाया गया है, लेकिन इस खर्च को लेकर केंद्र व राज्यों के बीच बंटवारे का अनुपात अभी तय नहीं हो पाया है। लिहाजा जब तक यह तय नहीं होता, कानून पर अमल नहीं हो सकता। सरकार इस विधेयक को बीते तीन-चार साल पहले से लाने की तैयारी में थी और तब भी खर्च बोझ और उसके बंटवारे को लेकर विवाद था। अब भी खास बात यह है कि उस पर फैसला नहीं हो सका है। सर्वशिक्षा अभियान के तहत केंद्र और राज्यों के बीच अभी खर्च का बंटवारा 60:40 के अनुपात में है, जो अगले साल 50:50 का हो जाएगा।

राजखोवा के स्वायत्तता पर अड़ने से वार्ता टली

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उल्फा में दो फाड़ के बाद भी सब कुछ वैसा नहीं हुआ जैसा केंद्र सरकार चाहती थी। उल्फा अध्यक्ष अरबिंद राजखोवा की बांग्लादेश में गिरफ्तारी खुल जाने से असम समस्या के राजनीतिक समाधान की प्रक्रिया पटरी से भले न उतरी हो, लेकिन अड़चनें जरूर पैदा हो गई हैं। शांति वार्ता विरोधी कमांडर परेश बरुआ के ताकतवर होने और अपनी साख खोने के भय से राजखोवा ने स्वायत्ता का मुद्दा छोड़ने से इनकार कर दिया। नतीजतन, वार्ता संसद सत्र समाप्त होने तक टाल दी गई है। शांति वार्ता के परवान न चढ़ने का ही नतीजा रहा कि शुक्रवार को राजखोवा, उसके सैन्य सिपहसालार राजू बरुआ और अंगरक्षक राजा वोरा के साथ मेघालय सीमा पर बीएसएफ के हाथों गिरफ्तार दिखा दिया गया। राजखोवा को भरोसे में रखने के लिए उसकी पत्नी व बच्चों को आजाद कर दिया गया है। राजखोवा, बरुआ व वोरा को असम की अदालत में पेश कर फिलहाल बंदी रखा जाएगा। गृह मंत्रालय की कोशिश थी कि राजखोवा से राजनीतिक बयान दिलाकर शांति वार्ता की दिशा में कदम बढ़ाया जाए। इसी के तहत राजखोवा ने असम के एक टीवी चैनल को संदेश भी भेजा। वार्ता विरोधी परेश बरुआ ने भी एक टीवी चैनल को ई-मेल भेजकर राजखोवा से स्वायत्ता व उल्फा के कोर मुद्दों पर तत्काल रुख स्पष्ट करने को कहा। उल्फा के कई और कोनों से भी बगैर बरुआ के वार्ता आगे बढ़ाने की मांग उठी। इस पूरे घटनाक्रम से उल्फा पूरी तरह से राजखोवा व परेश के बीच बंटी जरूर नजर आई, लेकिन मसले के राजनीतिक हल की दिशा में बाधाएं खड़ी हो गईं।
गृह मंत्रालय को आशंका है कि राजखोवा की गिरफ्तारी और शांति वार्ता की इच्छा जताने के बाद बरुआ फिर से असम या उत्तर पूर्व में वारदात की फिराक में है। वैसे भी राजखोवा असम में राजनीतिक चेहरा भले रहे हों, लेकिन आईएसआई व चीन के कुछ संगठनों की मदद से आर्थिक और गोला-बारूद के लिहाज से बरुआ मजबूत है। मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी भी यह बात मानते हैं,लेकिन वह कहते हैं कि बरुआ का जनाधार असम में नहीं बचा है। वह उसे वापस पाने को छटपटा रहा है। दरअसल, बरुआ ने पत्नी व बच्चे के साथ इसलाम धर्म अपना लिया है

अपने खिलाफ आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने रोका

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जजों की नियुक्ति प्रक्रिया का ब्यौरा देने के केंद्रीय सूचना आयोग यानी सीआईसी के आदेश पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। शीर्ष कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के जज से संपर्क करने वाले मंत्री के मामले से जुड़े पत्राचार का ब्यौरा देने के आदेश पर भी रोक लगा दी है। न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी एवं दीपक वर्मा की पीठ ने सीआईसी के फैसले को चुनौती देने वाली सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री की याचिका पर सुनवाई कर सूचना मांगने वाले सुभाष अग्रवाल को नोटिस जारी किया और आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की ओर से अटार्नी जनरल जीई वाहनवती व देवदत्त कामत ने कहा, याचिका में बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा शामिल है। सूचना आयोग ने जजों की नियुक्ति का ब्यौरा देने के आदेश दिए हैं। कोर्ट को इस पर विचार करना चाहिए और जब तक सुनवाई हो आयोग के आदेश पर रोक लगा दी जाये। दूसरी तरफ सुभाष अग्रवाल की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि यह मामला सूचना देने से छूट के प्रावधान में नहीं आएगा। सुप्रीम कोर्ट फिड्यूसरी राइट का दावा कर रहा है जजों की नियुक्ति मुख्य न्यायाधीश के फिड्यूशरी राइट में कैसे आ सकती है। ये तो उनके दफ्तरी कामकाज का हिस्सा है। एसपी गुप्ता मामले में सात जजों की पीठ ने स्पष्ट किया है कि कौन सी सूचना दी जा सकती है। तब सूचना कानून नहीं था अब तो यह कानून बन गया है। भूषण की दलीलों पर पीठ ने कहा कि ऐसा नहीं है कि सुप्रीमकोर्ट अपने मामले में पीछे हट रहा है

एम्मार एमजीएफ पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का शिकंजा

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एम्मार एमजीएफ पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का शिकंजा कस गया है। गुरुवार देर रात तक चले छापे में ईडी को मिले दस्तावेजों से साफ पता चलता है कि एम्मार एमजीएफ ने काले धन को सुरक्षित रखने वाले टैक्स हैवेन देशों के मार्फत बड़ी मात्रा में पैसा भारत में लगाया है। एम्मार की तमाम छोटी छोटी कंपनियां इन देशों में पंजीकृत हैं। कंपनी ने विदेशी निवेश के नाम पर लाए गए पैसे को परियोजनाओं में निवेश करने बजाय यात्री विमान खरीदने में लगा दिया। ईडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि एम्मार एमजीएफ ने लगभग 350 कंपनियां बनाई हुई थी। इनके निदेशक एम्मार एमजीएफ के ही छोटे-छोटे कर्मचारी हैं। इन कंपनियों में से अधिकांश साइप्रस, कैमन आइलैंड, मॉरीशस और सिंगापुर में रजिस्टर्ड हैं। ये देश काले धन के सुरक्षित निवेश केंद्रों में गिने जाते हैं। उन्होंने कहा,एम्मार एमजीएफ ने इन्हीं कंपनियों के माध्यम से बड़ी मात्रा में काला धन भारत में लगाया है। भारत में पहुंचने के पहले इस पैसे को इन्हीं कंपनियों के बीच कई बार घुमाया गया ताकि इसके मूल स्त्रोत का पता नहीं चल सके। ईडी को मिले दस्तावेजों से इस बात के सबूत मिले हैं कि एम्मार एमजीएफ ने एफडीआई के रूप में भारत लाए गए 6,000 करोड़ में से बड़ी राशि खेती की जमीन खरीदने में लगा दी, जो सीधे तौर पर एफडीआई के दिशानिर्देशों का उल्लंघन है। कोई भी कंपनी एफडीआई के रूप में लाए गए पैसे का उपयोग खेती की जमीन खरीदने में नहीं कर सकती। कंपनी के पास इस वक्त भारत में कुल 12,800 एकड़ जमीन है, जिनमें 8,700 एकड़ कृषि भूमि है। ईडी के अनुसार खेती की जमीन का अधिकांश भाग एफडीआई के पैसे से खरीदा गया है। कंपनी के मुख्य कार्यकारी निदेशक श्रवण गुप्ता ने ईडी के सामने खेती की जमीन खरीदने की बात स्वीकार भी की है। एम्मार एमजीएफ ने एफडीआई के पैसे को खेती की जमीन के आलावा दूसरी चीजें खरीदने में भी खर्च कर दिया, जिनमें एक हवाई जहाज भी शामिल है। छापे के दौरान एम्मार एमजीएफ के ठिकानों से नौ करोड़ रुपये व दो किलो सोना भी बरामद हुआ है। पांच लाख रुपये की विदेशी मुद्रा भी बरामद गई है

दादरी प्रोजेक्ट की जमीन खिसकी

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 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दादरी में अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस नेचुरल रिर्सोस लिमिटेड(आरएनआरएल) के गैस आधारित पावर प्रोजेक्ट लिए अधिगृहीत की गई भूमि की अधिसूचना को आंशिक रूप से रद कर दिया है। न्यायालय ने कहा कि गैस आधारित पावर प्लांट के लिए आरएनआरएल को दी जाने वाली भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया उचित नहीं है। न्यायालय ने इसके साथ ही एक्ट की धारा चार के प्रकाशन को आंशिक रूप से तथा धारा छह के प्रकाशन को पूर्ण रूप से रद कर दिया। न्यायालय ने जिलाधिकारी गाजियाबाद को निर्देशित किया है कि किसानों की आपत्तियों के लिए विज्ञापन निकाला जाए तथा सुनवाई के बाद अधिग्रहण की अग्रिम कार्रवाई की जाए।