इस आयोग के अध्यक्ष रंगनाथ मिश्र हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस भी रह चुके हैं। आयोग की सिफारिशों के मुताबिक, शेड्यूल्ड कास्ट (एससी) का दर्जा धर्म से न जुड़ा रहे। 1950 के शेड्यूल्ड कास्ट ऑर्डर को खत्म कर दिया जाए, जिसके तहत अब भी मुस्लिम, ईसाई, जैन और पारसी एससी के दायरे से बाहर हैं। शुरू में इस आदेश के तहत एससी का दर्जा सिर्फ हिंदुओं तक सीमित था, बाद में बौद्ध और सिख भी शामिल हो गए। आयोग का कहना है कि अगर 10 पर्सेंट सीटें मुसलमानों से न भर पाएं तो ये सीटें दूसरे अल्पसंख्यकों को दी जाएं। लेकिन किसी हालत में ये 15 पर्सेंट सीटें बहुसंख्यक समुदाय से किसी को न मिल पाएं। आयोग ने सलाह दी है कि अगर 15 पर्सेंट रिजर्वेशन की सिफारिशों को लागू करने में रुकावट आती है तो रिजर्वेशन का अल्टरनेट रूट अपनाया जा सकता है। चूंकि मंडल आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, अल्पसंख्यक ओबीसी आबादी का 8.4 पर्सेंट हैं लिहाजा 27 पर्सेंट ओबीसी कोटा में 8.4 पर्सेंट कोटा अल्पसंख्यकों के लिए रखा जा सकता है। इसमें 6 पर्सेंट मुसलमानों के लिए हो, क्योंकि कुल अल्पसंख्यकों की आबादी में मुसलमान 73 पर्सेंट हैं। बाकी 2.4 पर्सेंट कोटा अन्य अल्पसंख्यकों के लिए हो। हालांकि अनुसूचित जनजाति ऐसा वर्ग है, जिससे धर्म नहीं जुड़ा है। लेकिन यह देखा जाना चाहिए कि इसके रिजर्वेशन में अल्पसंख्यकों की मौजूदगी किस हद तक है और इसके लिए उपाय किए जाने चाहिए। |
इस आयोग को अक्टूबर, 2004 में नोटिफाई किया गया था और इसने 2005 में काम करना शुरू किया। दो साल बाद मई, 2007 में इसने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी। बीजेपी को छोड़कर बाकी सभी पार्टियां आयोग की रिपोर्ट को संसद के पटल पर रखने की मांग करती रही हैं। अलग-अलग पार्टियों के कई सांसदों ने इस पर ऐक्शन टेकन रिपोर्ट (एटीआर) पेश करने की भी मांग भी की है। लेकिन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद ने साफ किया कि एटीआर जरूरी नहीं, क्योंकि इस आयोग का गठन किसी कमिशन ऑफ इनक्वायरी ऐक्ट के तहत नहीं किया गया।
आयोग ने कहा है कि सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के प्रति एक सामान्य अप्रोच अपनाने की जरूरत है जो जाति, वर्ग या धर्म आधारित नहीं होना चाहिए, जिससे सब लोगों को सामाजिक न्याय और बराबरी मिल सके। हालांकि आयोग की सदस्य सचिव आशा दास ने एक सिफारिश पर असंतोष जताते हुए कहा है कि धर्म परिवर्तन कर ईसाई और मुसलमान बनने वाले दलितों को एससी का दर्जा देने का कोई तर्क नहीं है। इन्हें अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) का हिस्सा बने रहना चाहिए। जब तक सामाजिक और शिक्षित पिछड़ों की व्यापक सूची न बन जाए, तब तक वे ओबीसी को मिलने वाली सुविधाओं और आरक्षण का लाभ उठाएं। मगर आयोग ने आशा दास के असंतोष को खारिज करते हुए कहा है, 'हम सिफारिशों के हर शब्द पर कायम हैं।'
No comments:
Post a Comment