Saturday, December 19, 2009

अल्पसंख्यकों के आरक्षण की सिफारिश करने वाली रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट संसद में पेश तो हो गई है लेकिन उसकी राह बहुत मुश्किल है। बल्कि कहा जा सकता है कि कुछ मायनों में सरकार दो पाटों के बीच फंस गई है। सरकार की दुविधा यह है कि वह अल्पसंख्यकों को खुश करे या दलितों और पिछड़ों को या फिर सबको खुश कर सामान्य वर्ग की नाराजगी झेले। कुल मिलाकर रिपोर्ट ने ऐसे विवादों का पिटारा खोल दिया है जहां राजनीति ज्यादा होगी, काम कम। राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने तो पहले ही चेतावनी दे दी है कि रिपोर्ट पर कार्रवाई न हुई तो वह आंदोलन करेंगे। जबकि सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, जद(यू), लोजपा आदि ने इसका संकेत पहले ही दे दिया है। ऐसे में अल्पसंख्यकों के समर्थन के सहारे दोबारा केंद्र में पहुंची कांग्रेस सरकार को रंगनाथ मिश्र रिपोर्ट ने असमंजस में डाल दिया है। रिपोर्ट की सिफारिशें मानने पर अल्पसंख्यकों के लिए न सिर्फ नौकरियों व शिक्षा में आरक्षण का दरवाजा खोलना होगा बल्कि संसद और विधानसभाओं में भी उनको आरक्षण देना होगा। इतना ही नहीं परोक्ष रूप से महिला आरक्षण में कोटा के अंदर कोटा की बात भी माननी होगी। आरक्षण का कोटा 50 प्रतिशत से कम रखने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद फिलहाल सरकार केवल वर्तमान आरक्षण के दायरे में ही फेरबदल कर सकती है। रिपोर्ट में ओबीसी कोटा में ही अल्पसंख्यकों के लिए लगभग आठ प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश है। सरकार इस सिफारिश को माने तो ओबीसी की नाराजगी झेलने के लिए तैयार होना होगा। इसके लिए कांग्रेस के अंदर भी समर्थन नहीं है। बाहर भी लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और शरद यादव जैसे नेता इसके लिए तैयार नहीं। शुक्रवार को लालू ने इसका संकेत भी दे दिया। उन्होंने कहा- कोटा के अंदर आरक्षण देने पर बाकी के मुस्लिम क्या करेंगे। उनके लिए दस प्रतिशत अलग से आरक्षण होना चाहिए। ओबीसी मान भी जाएं तो इसका असर महिला आरक्षण पर भी पड़ेगा। सपा, राजद, जनता दल(यू) जैसे कई दल महिला आरक्षण के अंदर आरक्षण की मांग करते रहे हैं। ओबीसी आरक्षण में अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण होते ही इन दलों का दबाव बढ़ेगा। कांग्रेस और भाजपा महिला आरक्षण में कोटा के हक में नहीं। जबकि 1950 के प्रेसिडेंशियल आदेश के खत्म होते ही अल्पसंख्यक दलितों के लिए न सिर्फ शिक्षा और नौकरियों में बल्कि संसद में आरक्षित सीट के लिए भी राह खुल जाएगी। जाहिर है कि आरक्षित सीट से आने वाले वर्गों की ओर से इसका पुख्ता विरोध होगा.

 इस आयोग के अध्यक्ष रंगनाथ मिश्र हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस भी रह चुके हैं। आयोग की सिफारिशों के मुताबिक, शेड्यूल्ड कास्ट (एससी) का दर्जा धर्म से न जुड़ा रहे। 1950 के शेड्यूल्ड कास्ट ऑर्डर को खत्म कर दिया जाए, जिसके तहत अब भी मुस्लिम, ईसाई, जैन और पारसी एससी के दायरे से बाहर हैं। शुरू में इस आदेश के तहत एससी का दर्जा सिर्फ हिंदुओं तक सीमित था, बाद में बौद्ध और सिख भी शामिल हो गए।

आयोग का कहना है कि अगर 10 पर्सेंट सीटें मुसलमानों से न भर पाएं तो ये सीटें दूसरे अल्पसंख्यकों को दी जाएं। लेकिन किसी हालत में ये 15 पर्सेंट सीटें बहुसंख्यक समुदाय से किसी को न मिल पाएं। आयोग ने सलाह दी है कि अगर 15 पर्सेंट रिजर्वेशन की सिफारिशों को लागू करने में रुकावट आती है तो रिजर्वेशन का अल्टरनेट रूट अपनाया जा सकता है। चूंकि मंडल आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, अल्पसंख्यक ओबीसी आबादी का 8.4 पर्सेंट हैं लिहाजा 27 पर्सेंट ओबीसी कोटा में 8.4 पर्सेंट कोटा अल्पसंख्यकों के लिए रखा जा सकता है। इसमें 6 पर्सेंट मुसलमानों के लिए हो, क्योंकि कुल अल्पसंख्यकों की आबादी में मुसलमान 73 पर्सेंट हैं। बाकी 2.4 पर्सेंट कोटा अन्य अल्पसंख्यकों के लिए हो। हालांकि अनुसूचित जनजाति ऐसा वर्ग है, जिससे धर्म नहीं जुड़ा है। लेकिन यह देखा जाना चाहिए कि इसके रिजर्वेशन में अल्पसंख्यकों की मौजूदगी किस हद तक है और इसके लिए उपाय किए जाने चाहिए।
रंगनाथ मिश्र आयोग ने सच्चर कमिटी की रिपोर्ट से एक कदम आगे बढ़कर अपनी सिफारिशें दी हैं।

इस आयोग को अक्टूबर, 2004 में नोटिफाई किया गया था और इसने 2005 में काम करना शुरू किया। दो साल बाद मई, 2007 में इसने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी। बीजेपी को छोड़कर बाकी सभी पार्टियां आयोग की रिपोर्ट को संसद के पटल पर रखने की मांग करती रही हैं। अलग-अलग पार्टियों के कई सांसदों ने इस पर ऐक्शन टेकन रिपोर्ट (एटीआर) पेश करने की भी मांग भी की है। लेकिन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद ने साफ किया कि एटीआर जरूरी नहीं, क्योंकि इस आयोग का गठन किसी कमिशन ऑफ इनक्वायरी ऐक्ट के तहत नहीं किया गया।

आयोग ने कहा है कि सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के प्रति एक सामान्य अप्रोच अपनाने की जरूरत है जो जाति, वर्ग या धर्म आधारित नहीं होना चाहिए, जिससे सब लोगों को सामाजिक न्याय और बराबरी मिल सके। हालांकि आयोग की सदस्य सचिव आशा दास ने एक सिफारिश पर असंतोष जताते हुए कहा है कि धर्म परिवर्तन कर ईसाई और मुसलमान बनने वाले दलितों को एससी का दर्जा देने का कोई तर्क नहीं है। इन्हें अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) का हिस्सा बने रहना चाहिए। जब तक सामाजिक और शिक्षित पिछड़ों की व्यापक सूची न बन जाए, तब तक वे ओबीसी को मिलने वाली सुविधाओं और आरक्षण का लाभ उठाएं। मगर आयोग ने आशा दास के असंतोष को खारिज करते हुए कहा है, 'हम सिफारिशों के हर शब्द पर कायम हैं।'

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