उल्फा में दो फाड़ के बाद भी सब कुछ वैसा नहीं हुआ जैसा केंद्र सरकार चाहती थी। उल्फा अध्यक्ष अरबिंद राजखोवा की बांग्लादेश में गिरफ्तारी खुल जाने से असम समस्या के राजनीतिक समाधान की प्रक्रिया पटरी से भले न उतरी हो, लेकिन अड़चनें जरूर पैदा हो गई हैं। शांति वार्ता विरोधी कमांडर परेश बरुआ के ताकतवर होने और अपनी साख खोने के भय से राजखोवा ने स्वायत्ता का मुद्दा छोड़ने से इनकार कर दिया। नतीजतन, वार्ता संसद सत्र समाप्त होने तक टाल दी गई है। शांति वार्ता के परवान न चढ़ने का ही नतीजा रहा कि शुक्रवार को राजखोवा, उसके सैन्य सिपहसालार राजू बरुआ और अंगरक्षक राजा वोरा के साथ मेघालय सीमा पर बीएसएफ के हाथों गिरफ्तार दिखा दिया गया। राजखोवा को भरोसे में रखने के लिए उसकी पत्नी व बच्चों को आजाद कर दिया गया है। राजखोवा, बरुआ व वोरा को असम की अदालत में पेश कर फिलहाल बंदी रखा जाएगा। गृह मंत्रालय की कोशिश थी कि राजखोवा से राजनीतिक बयान दिलाकर शांति वार्ता की दिशा में कदम बढ़ाया जाए। इसी के तहत राजखोवा ने असम के एक टीवी चैनल को संदेश भी भेजा। वार्ता विरोधी परेश बरुआ ने भी एक टीवी चैनल को ई-मेल भेजकर राजखोवा से स्वायत्ता व उल्फा के कोर मुद्दों पर तत्काल रुख स्पष्ट करने को कहा। उल्फा के कई और कोनों से भी बगैर बरुआ के वार्ता आगे बढ़ाने की मांग उठी। इस पूरे घटनाक्रम से उल्फा पूरी तरह से राजखोवा व परेश के बीच बंटी जरूर नजर आई, लेकिन मसले के राजनीतिक हल की दिशा में बाधाएं खड़ी हो गईं।
गृह मंत्रालय को आशंका है कि राजखोवा की गिरफ्तारी और शांति वार्ता की इच्छा जताने के बाद बरुआ फिर से असम या उत्तर पूर्व में वारदात की फिराक में है। वैसे भी राजखोवा असम में राजनीतिक चेहरा भले रहे हों, लेकिन आईएसआई व चीन के कुछ संगठनों की मदद से आर्थिक और गोला-बारूद के लिहाज से बरुआ मजबूत है। मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी भी यह बात मानते हैं,लेकिन वह कहते हैं कि बरुआ का जनाधार असम में नहीं बचा है। वह उसे वापस पाने को छटपटा रहा है। दरअसल, बरुआ ने पत्नी व बच्चे के साथ इसलाम धर्म अपना लिया है
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