त्तर प्रदेश के राज्यपाल बीएल जोशी ने मंगलवार को इस्तीफा दे दिया। वहीं, गृह मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि गुजरात की राज्यपाल कमला बेनीवाल, पंजाब के राज्यपाल शिवराज पाटिल और केरल की राज्यपाल शीला दीक्षित को भी पद से इस्तीफा देने के लिए कहा गया है। हालांकि, शीला दीक्षित और शिवराज पाटिल ने इससे साफ इनकार किया है। उत्तरप्रदेश के राज्यपाल बीएल जोशी के इस्तीफा पर प्रतिक्रिया देते हुए गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि ''अगर मैं उनकी जगह होता तो मैं भी इस्तीफा दे देता।'' लेकिन जिस तरह कुछ राज्यपालों ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया, उस पर विवाद पैदा हो गया है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने राज्यपालों को कानूनी कवच दिया है, इसी के आधार पर वे इस्तीफा देने से इनकार रहे हैं।
क्या है कानूनी प्रावधान
बीएल सिंघल बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए फैसले के अनुसार, सिंघल ने जनहित याचिका दायर कर 2004 में सत्ता में आने वाली यूपीए सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गोवा और गुजरात के राज्यपालों को हटाए जाने पर आपत्ति ली थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया, '' राज्यपाल केंद्र सरकार और केंद्र की सत्ता में काबिज किसी पार्टी की नीतियों और विचारधारा से मुक्त हैं, इसलिए उन्हें हटाया नहीं जा सकता। केंद्र सरकार विश्वास खोने की स्थिति में भी उन्हें नहीं हटा सकती। केंद्र में सत्ता परिवर्तन भी राज्यपालों को हटाने की जमीन तैयार नहीं करती ताकि वे अपने चहेतों को राज्यपाल पद पर बैठा सकें। इसलिए ऐसे कारणों की कोई जरुरत नहीं है। ऐसे निर्णय वैध नहीं माने जाएंगे और हमेशा इनकी न्यायिक समीक्षा के रास्ते खुले रहेंगे।''
बीएल सिंघल बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए फैसले के अनुसार, सिंघल ने जनहित याचिका दायर कर 2004 में सत्ता में आने वाली यूपीए सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गोवा और गुजरात के राज्यपालों को हटाए जाने पर आपत्ति ली थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया, '' राज्यपाल केंद्र सरकार और केंद्र की सत्ता में काबिज किसी पार्टी की नीतियों और विचारधारा से मुक्त हैं, इसलिए उन्हें हटाया नहीं जा सकता। केंद्र सरकार विश्वास खोने की स्थिति में भी उन्हें नहीं हटा सकती। केंद्र में सत्ता परिवर्तन भी राज्यपालों को हटाने की जमीन तैयार नहीं करती ताकि वे अपने चहेतों को राज्यपाल पद पर बैठा सकें। इसलिए ऐसे कारणों की कोई जरुरत नहीं है। ऐसे निर्णय वैध नहीं माने जाएंगे और हमेशा इनकी न्यायिक समीक्षा के रास्ते खुले रहेंगे।''
कोर्ट ने कहा था कि अगर वह व्यक्ति सनकी है मनमाना है और नेक नहीं है, तो उसे प्रथम दृष्टया हटाया जाना उचित है। अगर ऐसा कोई उचित कारण नहीं है, तो कोर्ट सरकार से जवाब-तलब कर सकती है। लेकिन अगर केंद्र सरकार कारणों का खुलासा नहीं करती, तो निर्णय वापस लेने का विकल्प भारत के राष्ट्रपति को होगा। अगर केंद्र सरकार किसी भी कारण से कारणों का खुलासा नहीं करती तो निर्णय को अप्रासंगिक, मनमाना माना जाएगा और कोर्ट हस्तक्षेप करेगी।
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