नयी दिल्ली:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को सभी 30 मंत्री समूह और उच्चधिकार प्राप्त मंत्री समूह भंग कर दिये. लंबित मसलों पर फैसले लेने का अधिकार संबंधित मंत्रालयों व विभागों को दिया गया है.
उच्चधिकार प्राप्त 9 मंत्री समूह (इजीओएम) और 21 मंत्री समूह (जीओएम) को भंग करने के फैसले का एलान करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने कहा कि इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया तेज होगी. साथ ही व्यवस्था में अधिक जवाबदेही आयेगी. इस फैसले के साथ ही नरेंद्र मोदी ने पिछले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की प्रशासन पर छोड़ी गयी सबसे बड़ी छाप खत्म कर दी है.
नयी व्यवस्था में क्या : पीएमओ के मुताबिक मंत्रलय व विभाग अब इजीओएम व जीओएम के समक्ष लंबित मुद्दों पर विचार करेंगे. मंत्रालय व विभाग स्तर पर ही उचित फैसला लिया जायेगा. यदि कहीं भी मंत्रलयों को कठिनाई आयेगी, तो कैबिनेट सचिवालय व पीएमओ निर्णय लेने की प्रक्रिया में मदद करेंगे.
विवाद की स्थिति में : अब यदि कोई अंतर-मंत्रालयी विवाद होता है, तो उसे कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली सचिवों की समिति द्वारा हल किया जा सकता है.
पहले की व्यवस्था : भ्रष्टाचार, अंतर राज्यीय जल विवाद, प्रशासनिक सुधार और गैस व दूरसंचार मूल्य जैसे मुद्दों पर फैसले के लिए उक्त समूहों का गठन किया गया था. इजीओएम के पास केंद्रीय मंत्रिमंडल की तर्ज पर फैसले लेने का अधिकार था. जीओएम की सिफारिशें अंतिम फैसले के लिए कैबिनेट के समक्ष पेश की जाती थीं. मनमोहन सरकार के समय 10 साल तक अस्तित्व में रहे जीओएम के बारे में सूत्रों ने कहा कि इनमें से कई जीओएम की बैठक ही नहीं हुई. केवल कुछ ने ही फैसले दिये.
उच्चधिकार प्राप्त 9 मंत्री समूह (इजीओएम) और 21 मंत्री समूह (जीओएम) को भंग करने के फैसले का एलान करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने कहा कि इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया तेज होगी. साथ ही व्यवस्था में अधिक जवाबदेही आयेगी. इस फैसले के साथ ही नरेंद्र मोदी ने पिछले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की प्रशासन पर छोड़ी गयी सबसे बड़ी छाप खत्म कर दी है.
नयी व्यवस्था में क्या : पीएमओ के मुताबिक मंत्रलय व विभाग अब इजीओएम व जीओएम के समक्ष लंबित मुद्दों पर विचार करेंगे. मंत्रालय व विभाग स्तर पर ही उचित फैसला लिया जायेगा. यदि कहीं भी मंत्रलयों को कठिनाई आयेगी, तो कैबिनेट सचिवालय व पीएमओ निर्णय लेने की प्रक्रिया में मदद करेंगे.
विवाद की स्थिति में : अब यदि कोई अंतर-मंत्रालयी विवाद होता है, तो उसे कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली सचिवों की समिति द्वारा हल किया जा सकता है.
पहले की व्यवस्था : भ्रष्टाचार, अंतर राज्यीय जल विवाद, प्रशासनिक सुधार और गैस व दूरसंचार मूल्य जैसे मुद्दों पर फैसले के लिए उक्त समूहों का गठन किया गया था. इजीओएम के पास केंद्रीय मंत्रिमंडल की तर्ज पर फैसले लेने का अधिकार था. जीओएम की सिफारिशें अंतिम फैसले के लिए कैबिनेट के समक्ष पेश की जाती थीं. मनमोहन सरकार के समय 10 साल तक अस्तित्व में रहे जीओएम के बारे में सूत्रों ने कहा कि इनमें से कई जीओएम की बैठक ही नहीं हुई. केवल कुछ ने ही फैसले दिये.
क्या है उद्देश्य
निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेजी लाना
कैबिनेट के अधिकारों को बहाल करना
मंत्रालयों व विभागों के सशक्त बनाना
निर्णय लेने के स्तरों को कम करना
व्यवस्था को युक्तिसंगत बनाना
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