आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में पिछड़ी मुस्लिम बिरादरियों को दिए जा रहे आरक्षण का रद्द होना इस समुदाय के लिए आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे लोगों के लिए एक अहम मोड़ माना जा रहा है.
जुलाई, 2007 की बात है जब राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी ने तीन साल में तीसरी बार अपने चुनावी वायदे को पूरा करते हुए मुसलमानों की पिछड़ी बिरादरियों के लिए शैक्षणिक और सरकारी नौकरियों में चार प्रतिशत आरक्षण देने का फ़ैसला किया था.
आइए नज़र डालते हैं कब-कब क्या-क्या हुआ.
सिलसिलेवार घटनाक्रम
12 जुलाई, 2004: उस समय के राज्य के मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी की सरकार ने मुसलमानों के लिए पाँच प्रतिशत आरक्षण देने का आदेश जारी किया.
22 जुलाई, 2004: आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने सरकार के इस आदेश पर रोक लगा दी.
21 सितंबर, 2004: हाई कोर्ट की संपूर्ण पीठ ने राज्य सरकार के आदेश को रद्द कर दिया और उसे असंवैधानिक क़रार दिया. अदालत ने कहा कि इस मामले में आगे बढ़ाने के लिए राज्य सरकार तीन महीने के अंदर पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करे. जिसके बाद राज्य सरकार ने न्यायाधीश डी सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में पिछड़ा आयोग गठित किया.
14 जून, 2005: पिछड़ा वर्ग आयोग ने राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें पूरे मुसलमानों को अन्य पिछड़े वर्ग में शामिल करने के साथ ही पांच प्रतिशत आरक्षण देने की सिफ़ारिश की.
17 जून, 2005: राज्य कैबिनेट ने सिफ़ारिश के अनुसार फ़ैसला लिया जिसे उस समय के राज्यपाल सुशील कुमार शिंदे ने अध्यादेश के रुप में जारी कर दिया. लेकिन कुछ छात्रों, उनके माता-पिता और कुछ संगठनों ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी.
3 अगस्त, 2005: पांच जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई करने के बाद फ़ैसला सुरक्षित रखा.
5 अक्तूबर, 2005: राज्य विधान सभा ने मुस्लिम आरक्षण विधेयक पारित किया.
7, नवंबर 2005: इस क़ानून को हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया.
जनवरी, 2006: राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की और सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को संवैधानिक बेंच के पास भेज दिया.
मई, 2007: एक पूर्व आईएएस अधिकारी और पिछड़ा वर्ग के जानकार पीएस कृष्णन को सलाहकार नियुक्त किया गया.
जून, 2007: पीएस कृष्णन ने अपनी रिपोर्ट सौंपी और मुसलमानों में 14 पिछड़ी बिरदारियों की पहचान की.
जुलाई, 2007: राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंपी और मुसलमानों के लिए चार प्रतिशत आरक्षण की सिफ़ारिश की. इसी सिफ़ारिश को राज्य सरकार ने लागू किया.
24 जुलाई, 2007: राज्य विधान सभा ने सर्वसम्मति के साथ मुसलमानों की 15 बिरादरियों के लिए चार प्रतिशत आरक्षण के क़ानून को पारित किया.
अक्तूबर, 2007: अनेक लोगों के साथ-साथ विश्व हिंदू परिषद के नेता मुरलीधर रेड्डी ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी.
जनवरी, 2008: मामले को सात जजों की बेंच के पास भेजा गया.
फ़रवरी, 2010: सात में से पाँच जजों ने आरक्षण के इस क़ानून को असंवैधानिक क़रार दिया और इसे का़यम नहीं रखा जाना वाला कहा
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