Saturday, March 20, 2010
मनसे की राह चला महाराष्ट्र सदन
कांग्रेस-राकांपा सरकार लगातार राज ठाकरे की मनसे की राह पर चलती दिख रही है। राज्य विधान परिषद ने शुक्रवार को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से यह आग्रह किया कि वह महाराष्ट्र में स्थित अपने कार्यालयों में मराठी भाषा का इस्तेमाल अनिवार्य करने की अनुमति प्रदान करे। सरकार का यह कदम मराठी मानुष के नाम पर राजनीति करने वाले राज ठाकरे की आगे की कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। इससे पहले भी मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण ने राज्य में टैक्सी चालकों के लिए मराठी अनिवार्य किए जाने का आदेश दिया था जिसका उत्तर भारत के राज्यों में कड़ा विरोध हुआ था। इसके बाद सरकार ने उस विवादित फैसले से अपने कदम खींच लिए थे। विधानमंडल के ऊपरी सदन में कार्यवाही के पांच बार स्थगनों के बाद अंतत: प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। शोरगुल कर रहे शिवसेना के सदस्यों का जोर था कि परिषद को राज्य की भाषा को प्रोत्साहन देने के लिए एक प्रस्ताव पारित करना चाहिए। विधान परिषद सभापति शिवाजीराव देशमुख ने कहा कि सरकार को इस मामले को केंद्र सरकार के समक्ष उठाना चाहिए ताकि राज्य में स्थित अपने कार्यालयों में वह मराठी का इस्तेमाल सुनिश्चित करे। सभापति ने सदन को सूचित किया कि वह जोर देंगे कि राज्य में स्थित इन कार्यालयों में मराठी, हिंदी और अंग्रेजी के उपयोग की तीन सूत्री नीति का पालन किया जाए। शिवसेना के नेता दिवाकर राउत ने मुंबई के साथ-साथ पूरे महाराष्ट्र में केंद्र सरकार के दफ्तरों में मराठी को अनिवार्य किए जाने की मांग उठाई। राउत ने कहा कि यह सच्चाई है कि तीन सूत्री नीति के तहत इन दफ्तरों में मराठी का उपयोग नहीं किया जा रहा है। यह मराठी भाषा का अपमान है। शिवसेना नेता ने कहा कि कांग्रेस और राकांपा त्रिभाषा फार्मूला लागू किए जाने का वादा काफी समय से कर रहे हैं, लेकिन वे हर बार इसमें नाकाम रहे हैं। सामान्य प्रशासन राज्य मंत्री फौजिया खान ने यह कहते हुए शिवसेना नेता से प्रस्ताव वापस लेने का आग्रह किया कि इस मुद्दे पर राज्य सरकार की भावनाएं भी आपसे कमजोर नहीं हैं। शिवसेना का कहना था कि कांग्रेस-राकांपा सरकार ने त्रिभाषा फार्मूला लागू करने का कई बार वादा किया, मगर असफल रही
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