Wednesday, March 31, 2010

महाप्रयोग में रिकॉर्ड ऊर्जा विस्फोट

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इस प्रयोग से ब्रह्मांड की उत्पति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलने की उम्मीद है
इस प्रयोग से ब्रह्मांड की उत्पति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलने की उम्मीद है
विशाल हेड्रन कोलाइडर पर काम करने वाले वैज्ञानिकों ने प्रोटोन के कणों को एक साथ टकराया है जिससे रिकॉर्ड तोड़ने वाले ऊच्च दर्जे के ऊर्जा तत्व पैदा हुए हैं.
इस प्रयोग के ज़रिए जो ऊर्जा तत्व निकले हैं वो पिछले बार के प्रयोगों से साढ़े तीन गुना ज़्यादा हैं.
इस यूरोपीय मशीन पर इस प्रयोग के ज़रिए ऐसे काम की शुरूआत हो रही है जिससे भौतिक विज्ञान में नई खोज की उम्मीद की जा रही है.
मंगलवार को जब यह प्रयोग किया गया तो इसके नियंत्रण कक्ष में इससे जुड़े तमाम लोगों ने ज़बरदस्त ख़ुशियाँ मनाईं.
ये गहन शोध सात करोड़ खरब इलेक्ट्रोन वोल्ट (टीइवी) के टकराव के साथ शुरू हुआ है और इसकी गहन जाँच-पड़ताल में अब 18 से 24 महीनों तक का समय लगेगा.
वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे प्रकृति और ब्रह्मांड के कुछ रोचक रहस्य खुलेंगे कि आख़िर इसकी उत्पत्ति कैसे हुई.
मंगलवार के इस प्रयोग को कुछ वैज्ञानिकों ने विज्ञान के क्षेत्र में एक नए युग की शुरूआत क़रार दिया.
लेकिन शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि इस महाप्रयोग से हासिल होने वाले आंकड़ों के अध्ययन और जांच पड़ताल में समय लगेगा और लोगों को तुरंत नतीजे की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए.
नतीजों में देर
इस महाप्रयोग के प्रवक्ता गुइडो टोनेली ने कहा, "मुख्य खोज उसी समय सामने आएगी जब हम अरबों घटनाओं को पहचानें और उनमें कोई विरल और विशेष घटना नज़र आए जो पदार्थ का नया आयाम पेश करे."
उन्होंने बीबीसी से कहा, "यह कल ही नहीं होने वाला है. इसके लिए महीनों और वर्षों के धैर्यपूर्ण काम की ज़रूरत है."
कोलाइडर
यह पिछले साल शुरू हुआ था लेकिन तकनीकी ख़राबी के कारण इसे रोक दिया गया था
यह महाप्रयोग आज तक का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग है.
इसके लिए स्विट्ज़रलैंड और फ़्रांस की सीमा पर अरबों डॉलर लगाकर पिछले 20 साल में दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला स्थापित की गई है.
विशाल हेड्रन कोलाइडर में अणुओं को लगभग प्रकाश की गति से टकराया गया. इस पूरे महाप्रयोग के ज़रिए मिलने वाली जानकारी से ब्राह्मांड उत्पत्ति की 'बिग बैंग' थ्योरी को समझने में भी मदद मिलने की उम्मीद की जा रही है.
इस प्रयोग के लिए प्रोटॉनों को 27 किलोमीटर लंबी गोलाकार सुरंगों में दो विपरीत दिशाओं से भेजा गया.
इनकी गति प्रकाश की गति के लगभग बराबर थी और वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार प्रोटोन ने एक सेकंड में 11 हज़ार से भी अधिक परिक्रमा पूरी की.
इसी प्रक्रिया के दौरान प्रोटॉन कुछ विशेष स्थानों पर आपस में टकराए. अनुमान लगाया गया है कि प्रोटोन के टकराने की 60 करोड़ से भी ज़्यादा घटनाएँ हुईं और इन्हीं घटनाओं को दर्ज किया गया.
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस दौरान प्रति सेकंड सौ मेगाबाइट से भी ज़्यादा आँकड़े एकत्र किए जा सके हैं.
उनका कहना है कि प्रोटोन के टकराने की घटना सबसे दिलचस्प है और इसी से ब्रह्मांड के बनने का रहस्य खुलने अनुमान है
इस परियोजना में शिरकत कर रहे दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सात्यकी भटटाचार्य ने नई दिल्ली में कहा कि यह 10 अरब डालर की परियोजना है। इसे विश्व का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग माना जा रहा है। एलएचसी में सैद्धांतिक कणों और सूक्ष्म बलों के बारे में कई खुलासे करने की अपार संभावनाएं हैं। पार्टिकल भौतिकी के मानक माडल में हिग्स बोसॉन का बहुत महत्व है।
भट्टाचार्य ने कहा कि इस हिग्स बोसान की तलाश में वैज्ञानिक लगे हैं जो माडल की एक ऐसी कड़ी है जिसे प्रयोग के दौरान वैज्ञानिक हासिल नहीं कर पा रहे हैं। सर्न के एक वैज्ञानिक ने कहा कि बिजली की आपूर्ति ट्रिप होने के बाद पहली बार तंत्र को फिर से व्यवस्थित किया गया और दूसरी बार इस क्षेत्र में बिजली आपूर्ति में बाधा के कारण क्वेंच प्रोटेक्शन सिस्टम को बंद करना पड़ा।
प्रवाहों (पुंजों) को फिर से गति प्रदान करने में इस कारण से कुछ घंटों की देर हुई और चरण दर चरण इसे बढ़ाकर साढ़े तीन टेरा इलेक्ट्रान वोल्ट तक ले जाया गया। दोनों पुंजों को साढ़े तीन टेरा इलेक्ट्रान वोल्ट के स्तर तक स्थिर करने में वैज्ञानिकों को समय लगा और अंतत: भारतीय समयानुसार शाम 4.35 बजे प्रोटान पुंजों की टक्कर कराई गई।
प्रोटान के पुंज जब टकराते हैं तब प्रत्येक सेकेंड में सैकड़ों टक्कर होती है और प्रयोग स्थल पर स्थापित शक्तिशाली डिटेक्टर हर टक्कर के संबंध में आंकड़े इकटठा करेंगे। भट्टाचार्य ने कहा कि आंकड़ों के विश्लेषण से हिग्स बोसान कण की खोज हो सकती है। इसे ईश्वरीय कण भी कहते हैं। माना जाता है कि जब ब्रह्मांड की उत्पति हुई, इस समय हिग्स बोसान कण मौजूद था।
सर्न के महानिदेशक राल्फ हयूअर ने कहा कि किसी भी वैज्ञानिक खोज से पहले महीनों का समय लगने की संभावना है। ऐसा इसलिए है कि टक्करों के संबंध में विशाल संख्या में आंकड़े इकटठा हुए हैं जिनका विश्लेषण करने में कंप्यूटरों को लंबा समय लगेगा।
विश्व में फैले कई अनुसंधान केंद्रों में इन आंकड़ों का विश्लेषण किया जाएगा। टाटा इंस्टीटयूट आफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) भी एक ऐसा ही केंद्र है जहां सुपरकंप्यूटिंग की सुविधाएं हैं। इस केंद्र में भी टक्कर संबंधी आंकड़ों का विश्लेषण होगा।
 टक्कर के आंकड़ों का विश्लेषण हिग्स बोसॉन की खोज में मदद कर सकता है। हिग्स बोसॉन को गॉड पार्टिकल भी कहा जाता है। माना जाता है कि ब्रह्मांड के निर्माण से पहले यह मौजूद था। 



Thursday, March 25, 2010

अमेरिका पाक असैन्य परमाणु करार

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पाकिस्तान ने बुधवार को इशारों-इशारों में आवश्यक ऊर्जा संसाधनों की उपलब्धता पर अमेरिका से भेदभावपूर्ण रवैया खत्म करने की मांग की, लेकिन सामरिक वार्ता की शुरुआत में अमेरिका ने पाक के साथ भारत सरीखे असैन्य परमाणु करार पर सीधी टिप्पणी से बचते हुए इस्लामाबाद की ऊर्जा जरूरतों के संबंध में मदद का वादा जरूर किया है। इससे पहले सामरिक बातचीत की तैयारियों के दौरान अमेरिका ने संकेत दिया था कि वह परमाणु सहयोग के संबंध में पाक की मांग पर विचार करने को तैयार है। अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के साथ पहली अमेरिका-पाक सामरिक संवाद की शुरुआत में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कश्मीर मामले का पुराना राग अलापते हुए भारत के साथ इस मामले के शांतिपूर्ण प्रक्रिया से समाधान के लिए अमेरिका से रचनात्मक भूमिका निभाने को कहा। पाक सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी सहित पाकिस्तान के शिष्टमंडल का नेतृत्व करने वाले कुरैशी ने महत्वपूर्ण ऊर्जा संसाधनों की उपलब्धता के संबंध में भेदभाव समाप्त करने की मांग की। कुरैशी ने कहा, हमें आशा है कि ऊर्जा के महत्वपूर्ण संसाधनों की उपलब्धता के संबंध में भेदभाव समाप्त होगा और हमारे लिए भी रास्ते खुलेंगे ताकि हम अपने आर्थिक और औद्योगिक विकास के कार्यक्रमों को आगे बढ़ा सकें। कश्मीर मामले की तान छेड़ते हुए कुरैशी ने कहा, कश्मीर सहित दक्षिण एशिया में सभी लंबित विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए पाकिस्तान अपने प्रयास जारी रखेगा। हमें आशा है कि अमेरिका इस प्रक्रिया में अपनी रचनात्मक भूमिका जारी रखेगा। कुरैशी के भाषण के बाद हिलेरी ने कहा, जिस प्रकार मैत्रीपूर्ण संबंधों या परिवार के सदस्यों के बीच होता है भविष्य में भी अधिक असहमतियां होंगी, लेकिन आज नए दिन की शुरुआत है। एक वर्ष से ओबामा प्रशासन ने अपनी कथनी-करनी से पाक के प्रति एक अलग दृष्टिकोण दिखाया है। अमेरिका-पाक संबंधों में नई गर्मजोशी का संकेत देते हुए हिलेरी ने कहा कि पाकिस्तान की स्थिरता और सुरक्षा सुदृढ़ करना अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण है। 

On Saturday - March 27, 2010, 'Earth Hour'.

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This Saturday, the symbols of our civilization, iconic buildings and landmarks from India to Australia to America, will stand in darkness, to help bring to light one of the biggest challenges of our generation-- Climate Change.

The 'Earth Hour' that began as a show of solidarity against climate change has today become a global movement. It brings together a whole generation of humankind, from across the world and across all walks of life, in celebration and contemplation of the one thing we all have in common - our planet. It is a call to stand up, to take responsibility, to get involved and lead the way towards a sustainable future.

This year over a billion people from over 90 countries and 900 cities will come together to mark the Earth Hour.

Join the 'Earth Hour' by switching off all lights this Saturday - 8.30 PM - 9.30 PM. Just for one hour.

आंध्र प्रदेश के मुस्लिम आरक्षण का घटनाक्रम

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आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में पिछड़ी मुस्लिम बिरादरियों को दिए जा रहे आरक्षण का रद्द होना इस समुदाय के लिए आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे लोगों के लिए एक अहम मोड़ माना जा रहा है.
जुलाई, 2007 की बात है जब राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी ने तीन साल में तीसरी बार अपने चुनावी वायदे को पूरा करते हुए मुसलमानों की पिछड़ी बिरादरियों के लिए शैक्षणिक और सरकारी नौकरियों में चार प्रतिशत आरक्षण देने का फ़ैसला किया था.
आइए नज़र डालते हैं कब-कब क्या-क्या हुआ.
सिलसिलेवार घटनाक्रम
12 जुलाई, 2004: उस समय के राज्य के मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी की सरकार ने मुसलमानों के लिए पाँच प्रतिशत आरक्षण देने का आदेश जारी किया.
22 जुलाई, 2004: आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने सरकार के इस आदेश पर रोक लगा दी.
21 सितंबर, 2004: हाई कोर्ट की संपूर्ण पीठ ने राज्य सरकार के आदेश को रद्द कर दिया और उसे असंवैधानिक क़रार दिया. अदालत ने कहा कि इस मामले में आगे बढ़ाने के लिए राज्य सरकार तीन महीने के अंदर पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करे. जिसके बाद राज्य सरकार ने न्यायाधीश डी सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में पिछड़ा आयोग गठित किया.
14 जून, 2005: पिछड़ा वर्ग आयोग ने राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें पूरे मुसलमानों को अन्य पिछड़े वर्ग में शामिल करने के साथ ही पांच प्रतिशत आरक्षण देने की सिफ़ारिश की.
मुस्लिम महिलाएं
जिस आरक्षण के क़ानून को रद्द किया गया है उसे 2007 में पारित किया गया था
17 जून, 2005: राज्य कैबिनेट ने सिफ़ारिश के अनुसार फ़ैसला लिया जिसे उस समय के राज्यपाल सुशील कुमार शिंदे ने अध्यादेश के रुप में जारी कर दिया. लेकिन कुछ छात्रों, उनके माता-पिता और कुछ संगठनों ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी.
3 अगस्त, 2005: पांच जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई करने के बाद फ़ैसला सुरक्षित रखा.
5 अक्तूबर, 2005: राज्य विधान सभा ने मुस्लिम आरक्षण विधेयक पारित किया.
7, नवंबर 2005: इस क़ानून को हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया.
जनवरी, 2006: राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की और सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को संवैधानिक बेंच के पास भेज दिया.
मई, 2007: एक पूर्व आईएएस अधिकारी और पिछड़ा वर्ग के जानकार पीएस कृष्णन को सलाहकार नियुक्त किया गया.
जून, 2007: पीएस कृष्णन ने अपनी रिपोर्ट सौंपी और मुसलमानों में 14 पिछड़ी बिरदारियों की पहचान की.
जुलाई, 2007: राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंपी और मुसलमानों के लिए चार प्रतिशत आरक्षण की सिफ़ारिश की. इसी सिफ़ारिश को राज्य सरकार ने लागू किया.
24 जुलाई, 2007: राज्य विधान सभा ने सर्वसम्मति के साथ मुसलमानों की 15 बिरादरियों के लिए चार प्रतिशत आरक्षण के क़ानून को पारित किया.
अक्तूबर, 2007: अनेक लोगों के साथ-साथ विश्व हिंदू परिषद के नेता मुरलीधर रेड्डी ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी.
जनवरी, 2008: मामले को सात जजों की बेंच के पास भेजा गया.
फ़रवरी, 2010: सात में से पाँच जजों ने आरक्षण के इस क़ानून को असंवैधानिक क़रार दिया और इसे का़यम नहीं रखा जाना वाला कहा

आंध्र प्रदेश में मुस्लिम आरक्षण सही

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चारमिनार
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने इस मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश में मुसलमानों की पिछड़ी बिरादरियों के चार प्रतिशत आरक्षण को जायज़ ठहराया है.
सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश के तहत आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के उस फ़सले को उलट दिया है जिसमें हाई कोर्ट ने राज्य में मुसलमानों की पिछड़ी बिरादरियों को दिया जा रहा आरक्षण इस आधार पर रद्द कर दिया था कि राज्य सरकार ने आरक्षण के लिए सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया है.
गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन, न्यायमूर्ति जेएम पंचाल और न्यायमूर्ति बीएस चौहान की खंडपीठ ने इस मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया.
मामले की अगली सुनवाई अगस्त महीने में होगी.
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार इस क़ानून से संविधान के महत्तवपूर्ण मुद्दे जुडे़ हुए हैं इसलिए इसे संविधान पीठ से पास भेजा गया है ताकि इसकी वैधता की जांच हो सके.
सुप्रीम कोर्ट ने ये फ़ैसला राज्य सरकार की ओर से दायर विशेष अनुमति याचिका की सुनवाई के दौरान दिया. राज्य सरकार ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था.

Monday, March 22, 2010

न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति

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पृथक तेलंगाना मुद्दे पर गौर करने के लिए गठित न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति ने संबंधित पार्टियों व पक्षों के विचारों और सुझावों को जानने के लिए अपनी रिपोर्ट सौंपने की अवधि 10 अप्रैल तक बढ़ा दी है।
समिति से इस मसले पर गहरे अध्यन और परीक्षण करने से जुड़े अनुरोधों के बाद यह समय सीमा बढ़ाई गई है। समिति के सदस्य विनोद के दुग्गल ने सोमवार को प्रकाशित एक विज्ञापन में कहा कि इस बारे में किए गए अनुरोधों को समिति ने विचार किया और रिपोर्ट सौंपने की अवधि 10 अप्रैल तक बढ़ा दी।
तेलंगाना की मांग को लेकर वहां के विभिन्न राजनीतिक दलों और छात्रों के हिंसक प्रदर्शनों के बाद पांच सदस्यीय इस समिति का गठन किया गया था।

नानावती मोदी पर रुख स्पष्ट करे

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नरेंद्र मोदी
गुजरात दंगों को लेकर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर गंभीर आरोप लगते रहे हैं.
गुजरात हाई कोर्ट ने 2002 में हुए गुजरात दंगों की जांच कर रहे नानावती आयोग से यह स्पष्ट करने को कहा है कि वो इस मामले में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पूछताछ के लिए बुलाएंगे या नहीं.
मुख्य न्यायाधीश एसजे मुखोपाध्याय और न्यायाधीश अखिल कुरैशी ने दंगा पीड़ितों का प्रतिनिधित्व कर रही स्वयंसेवी संस्था जनसंघर्ष मंच की एक अपील पर सुनवाई के दौरान सरकार से यह जानकारी मांगी.
अदालत ने सरकारी वकील से कहा है कि वो इस मामले में नानावती आयोग से जानकारी मांग कर एक अप्रैल तक अदालत को बताए.
सितंबर 2009 में नानावती आयोग ने कहा था कि वो इस मामले में फिलहाल मुख्यमंत्री मोदी से पूछताछ नहीं करेगी. कोर्ट ने जानना चाहा है कि यह नानावती आयोग का अंतिम फ़ैसला है या नहीं.
आयोग ने जनसंघर्ष मंच के एक आवेदन पर ही यह बात कही थी. आयोग ने मंच के आवेदन के बारे में कहा था कि इसमें बहुत ही ग़लत धारणाओं के साथ आरोप लगाए गए हैं.
जनसंघर्ष मंच ने हाई कोर्ट में अपील करते हुए कहा था कि आयोग के इस फै़सले को ख़ारिज करने की मांग की थी. इस मामले में जनसंघर्ष मंच ने गुजरात के तत्कालीन गृहमंत्री गोरधन ज़दाफिया, स्वास्थ्य मंत्री अशोक भट्ट और जोन फाइव के डीसीपी आरजे सवानी से पूछताछ की भी मांग की थी लेकिन आयोग ने यह याचिका ही निरस्त कर दी थी.
पिछले साल न्यायाधीश केएस झवेरी की एक सदस्यीय खंडपीठ ने जनसंघर्ष मंच की याचिका यह कहते हुए ख़ारिज कर दी थी कि आयोग का कार्यकाल पूरा नहीं हुआ है और आयोग को अभी भी मोदी को पूछताछ के लिए बुलाने का अधिकार है.
इसके बाद जनसंघर्ष मंच ने डिवीजन बेंच के समक्ष अपील की और आयोग के फै़सले को निरस्त करने तथ मुख्यमंत्री मोदी समेत अन्य लोगों को पूछताछ के लिए बुलाने की अपील की. इसी याचिका पर अब हाई कोर्ट ने सरकारी वकील से कहा है कि वो नानावती आयोग से जानकारी लेकर स्थिति स्पष्ट करे.
नानावती आयोग ने पिछले महीने दंगों की जांच की रिपोर्ट हाई कोर्ट को सौंपी थी जिसमें कहा गया था कि इस मामले में सभी सबूत जमा किए गए हैं और बयान रिकार्ड हो चुके हैं. अब बस रिपोर्ट लिखनी बाकी है जिसमें तीन से चार महीने लग सकते हैं.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम ने गुलबर्ग सोसायटी दंगा मामले में मुख्यमंत्री मोदी को सम्मन जारी किए थे लेकिन मोदी पूछताछ के लिए नहीं पहुंचे थे

प्रदूषण नियंत्रण मानदंड बीएस- चार

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मशेलकर समिति की सिफारिशों के अनुरूप एक अप्रैल से भारत वाहन उद्योग के लिए पहले से अधिक कठोर प्रदूषण नियंत्रण मानदंड लागू कर रहा है। इसके तहत 13 प्रमुख शहरों में भारत चरण (बीएस- चार) वाले वाहनों की ही बिक्री की अनुमति होगी। शेष स्थानों पर बीएस-3 मानक के वाहन बिकेंगे। गोयन्का ने कहा, 'नए प्रदूषण मानदंड को पूरा करने के लिए ऑटो निर्माताओं को वाहन में कुछ पुरानी तकनीक को बदलनी होगी।'

भारत-3 मानक के अनुसार, दोपहिया वाहनों के धुएं में कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन्स सहित नाइट्रोजन का ऑक्साइड 1.50 ग्राम प्रति किमी से 1.0 ग्राम प्रति किमी तक लाया जाना है।

अर्न्सट एंड यंग के ऑटोमोटिव क्षेत्र के राष्ट्रीय प्रमुख राकेश बत्रा ने कहा, 'मौजूदा समय में इस्तेमाल हो रही कई पुरानी कारों के इंजन और उनकी प्रणाली में बड़े बदलाव करने की जरूरत होगी। नए मॉडलों में फेरबदल अपेक्षाकृत आसान होगा।'

बत्रा ने कहा, 'सरकार एक अप्रैल की समय सीमा को छह महीने के लिए टाल सकती है क्योंकि नए मानक के वाहनों के लिए जरूरी तेल उपलब्ध नहीं है। अच्छी बात है कि ऑटो उद्योग इस मानक के लिए तैयार है।'

फिएट इंडिया के चेरमैन एवं सीईओ राजीव कपूर ने कहा कि ऑटो उद्योग नए प्रदूषण मानदंड को पूरा करने के लिए तैयार है। नए मानकों को अपनाकर भारत इस मामले में यूरोपीय मानकों के नजदीक पहुंच जाएगा।

एशिया मोटरर्वक्स के मैनेजिंग डायरेक्टर अनिरूद्ध भुवालका ने बताया, 'बीएस-4 मानक को लागू होने के बाद भी हम अभी अमेरिकी और यूरोपीय मानदंड से पीछे हैं। हमें उनके अनुभवों से सीखना चाहिए।'

आईपीएल की बोली की दौड़

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नई टीमों की मेजबानी करनेके लिए लगी बोली  की दौड़ में पुणे और कोच्चि ने सभी को पीछे छोड़ दिया। आईपीएल की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इन दोनों टीमों के लिए लगी बोली तीन साल पहले हुई पहली नीलामी में लगी सबसे ऊंची बोली की तीन गुनी रही। 

सहारा समूह के सहारा एडवेंचर स्पोर्ट्स ने 37 करोड़ डॉलर की रिकॉर्ड बोली के साथ पुणे फ्रेंचाइजी हासिल की, जबकि विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर के आशीर्वाद वाले रांदेवू स्पोर्ट्स गुप नामक समूह ने 33.3 करोड़ डॉलर की चौंकाने वाली बोली के साथ कोच्चि को आईपीएल टीम का मेजबान बना दिया।

Saturday, March 20, 2010

रीपो और रिवर्स रीपो रेट में बढ़ोतरी

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 रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने शुक्रवार को रीपो और रिवर्स  रीपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट्स की बढ़ोतरी कर दी।  रीपो रेट यानी जिस दर पर आरबीआई बैंकों को उधार देता है और रिवर्स रीपो यानी जिस दर पर आरबीआई बैंकों से उधार लेता है। अब रीपो रेट 5 पर्सेंट है, जबकि रिवर्स रीपो रेट 3.5 पर्सेंट। बैंकों का मानना है कि इससे ब्याज दरों में मामूली बढ़ोतरी होगी, 

राज्यसभा के लिए नॉमिनेट

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पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर और जानेमाने गीतकार-लेखक जावेद अख्तर सहित   कुल पांच लोगों को राज्यसभा के लिए नॉमिनेट किया है। इनमें बालचंद्र मुंगेरकर, बी. जयश्री और रामदयाल मुंडा भी शामिल हैं।

इसके अलावा पांच लोग चुनाव के जरिए राज्यसभा में पहुंचे हैं। इनमें केंद्रीय मंत्री एम. एस. गिल शामिल हैं, जिनकी राज्यसभा सदस्यता हाल ही में खत्म हुई थी। वह पंजाब से राज्यसभा में पहुंचनेवाले कांग्रेस के दो सदस्यों में शामिल हैं। इसके अलावा शिरोमणि अकाली दल के दो और बीजेपी का एक सदस्य पंजाब से राज्यसभा में पहुंचा है।
शिरोमणि अकाली दल ने पूर्व प्रधानमंत्री आई. के. गुजराल के बेटे नरेश गुजराल और लोकसभा का चुनाव हारे सुखदेव सिंह ढींढसा को अपर हाउस में भेजा है। नरेश दूसरी बार राज्यसभा सदस्य बने हैं। कांग्रेस ने भी अश्वनी कुमार को दूसरा मौका दिया है। बीजेपी ने अविनाश राय खन्ना को राज्यसभा सदस्य बनाया है।

मनसे की राह चला महाराष्ट्र सदन

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कांग्रेस-राकांपा सरकार लगातार राज ठाकरे की मनसे की राह पर चलती दिख रही है। राज्य विधान परिषद ने शुक्रवार को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से यह आग्रह किया कि वह महाराष्ट्र में स्थित अपने कार्यालयों में मराठी भाषा का इस्तेमाल अनिवार्य करने की अनुमति प्रदान करे। सरकार का यह कदम मराठी मानुष के नाम पर राजनीति करने वाले राज ठाकरे की आगे की कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। इससे पहले भी मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण ने राज्य में टैक्सी चालकों के लिए मराठी अनिवार्य किए जाने का आदेश दिया था जिसका उत्तर भारत के राज्यों में कड़ा विरोध हुआ था। इसके बाद सरकार ने उस विवादित फैसले से अपने कदम खींच लिए थे। विधानमंडल के ऊपरी सदन में कार्यवाही के पांच बार स्थगनों के बाद अंतत: प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। शोरगुल कर रहे शिवसेना के सदस्यों का जोर था कि परिषद को राज्य की भाषा को प्रोत्साहन देने के लिए एक प्रस्ताव पारित करना चाहिए। विधान परिषद सभापति शिवाजीराव देशमुख ने कहा कि सरकार को इस मामले को केंद्र सरकार के समक्ष उठाना चाहिए ताकि राज्य में स्थित अपने कार्यालयों में वह मराठी का इस्तेमाल सुनिश्चित करे। सभापति ने सदन को सूचित किया कि वह जोर देंगे कि राज्य में स्थित इन कार्यालयों में मराठी, हिंदी और अंग्रेजी के उपयोग की तीन सूत्री नीति का पालन किया जाए। शिवसेना के नेता दिवाकर राउत ने मुंबई के साथ-साथ पूरे महाराष्ट्र में केंद्र सरकार के दफ्तरों में मराठी को अनिवार्य किए जाने की मांग उठाई। राउत ने कहा कि यह सच्चाई है कि तीन सूत्री नीति के तहत इन दफ्तरों में मराठी का उपयोग नहीं किया जा रहा है। यह मराठी भाषा का अपमान है। शिवसेना नेता ने कहा कि कांग्रेस और राकांपा त्रिभाषा फार्मूला लागू किए जाने का वादा काफी समय से कर रहे हैं, लेकिन वे हर बार इसमें नाकाम रहे हैं। सामान्य प्रशासन राज्य मंत्री फौजिया खान ने यह कहते हुए शिवसेना नेता से प्रस्ताव वापस लेने का आग्रह किया कि इस मुद्दे पर राज्य सरकार की भावनाएं भी आपसे कमजोर नहीं हैं। शिवसेना का कहना था कि कांग्रेस-राकांपा सरकार ने त्रिभाषा फार्मूला लागू करने का कई बार वादा किया, मगर असफल रही

रिजर्व बैंक ने ब्याज दरें घटाईं

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 मुद्रास्फीति पर लगाम कसने के लिए रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को बैंकों के साथ अल्पकालिक ऋणों के लेन देन को करते हुए रेपो और रिवर्स रेपो दर प्रत्येक को 0.25 प्रतिशत बढ़ा दिया।
केन्द्रीय बैंक ने अगले महीने आने वाली मौद्रिक एवं ऋण नीति की वार्षिक घोषणा से पहले ही शुक्रवार को बैंकों की रेपो दर 0.25 फीसदी बढ़ाकर 5 प्रतिशत और रिवर्स रेपो दर को 3.5 फीसदी कर दिया। इससे बैंकों के पास उपलब्ध नकदी की लागत बढ़ेगी परिणामस्वरूप बैंकों के व्यावसायिक कर्ज भी महंगे हो सकते हैं।
   
केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों को नकदी समायोजन सुविधा के तहत रेपो दर पर अल्पकालिक ऋण देता है, और रिवर्स रेपो दर पर उनसे नकदी उधार लेता है। रिजर्व बैंक ने कहा इस कदम से महंगाई की धारणा के साथ साथ मुद्रास्फीति की तेज होती चाल पर अंकुश लगेगा। इससे पहले वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने आर्थिक वृद्धि की बेहतर संभावनाओं को बरकरार रखते हुए, बढ़ती मुद्रास्फीति पर चिंता व्यक्त की थी और कहा था कि यह दो अंकों की तरफ बढ़ रही है।
 

देश की पूरी आबादी का बायोमिट्रिक रिकार्ड

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भारत की एक अरब से अधिक की पूरी आबादी का बायोमीट्रिक रिकार्ड रखने के अनूठे प्रयास राष्ट्रीय आबादी रजिस्टर बनाने का कार्य इस साल अप्रैल से शुरू होकर सितंबर तक पूरा हो जाने की उम्मीद है।
   
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने दुनिया में अपनी तरह के इस तरह के पहले तंत्र के तहत एक अरब 20 करोड़ से अधिक की विशाल जसनंख्या का बायोमीट्रिक रजिस्टर बनाने की प्रक्रिया के लिए 3539.24 करोड़ रूपये के प्रस्ताव को शुक्रवार मंजूरी दे दी।
सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने कैबिनेट की बैठक के बाद बताया कि इस प्रक्रिया में डिजिटल डाटाबेस, फोटो सहित पहचान ब्यौरा, फिंगर प्रिंट और बायोमीट्रिक तैयार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि एक बार प्रक्रिया पूरी होने पर पूरी आबादी का यह ब्यौरा विशिष्ट पहचान प्राधिकरण को भेज दिया जाएगा जो सभी नागरिकों को विशिष्ट पहचान नंबर जारी करेगा।
   
राष्ट्रीय आबादी रजिस्टर देश में व्यापक पहचान डाटाबेस तैयार करने का अब तक का पहला प्रयास है । इसके तहत नागरिकों को कार्ड जारी किये जाएंगे, जिसकी लागत प्रति कार्ड 28 रूपये आएगी।
सूत्रों ने बताया कि राष्ट्रीय आबादी रजिस्टर के तहत सरकार 15 साल और उससे अधिक आयु के सभी नागरिकों का डाटा तैयार करेगी। इसमें जाति के आधार पर कोई ब्यौरा नहीं रखा जाएगा। 15 साल से कम उम्र के बच्चों को उनके माता पिता के कार्ड में ही रखा जाएगा।
इस पूरी प्रक्रिया में 25 लाख सरकारी कर्मचारियों को शामिल किया जाएगा, जो 35 राज्यों और संघशासित क्षेत्रों को कवर करेंगे। गृह मंत्री पी चिदंबरम ने हाल ही में भारत-बांग्लादेश सीमा पर तैनात सभी जिलाधिकारियों से कहा है कि वे राष्ट्रीय आबादी रजिस्टर में नाम शामिल कराने की कोशिश में सीमा पार से आने वाले लोगों को लेकर सतर्क रहें। राष्ट्रीय आबादी रजिस्टर से देश में रजिस्टर आधारित जनगणना का रास्ता तैयार होगा और इससे वास्तविक समय के आधार पर आबादी की गणना हो सकेगी।
 

हाईजैक की सजा मौत, विमान को मार गिराने की अनुमति

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सरकार ने विमान अपहरणकर्ताओं को मृत्यु दंड देने और ऐसे अपहृत विमानों को मार गिराने के प्रस्तावों को शुक्रवार को मंजूरी दे दी, जिनसे प्रमुख स्थलों को निशाना बनाने का खतरा हो।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में विमान अपहरण निरोधी कानून को और कड़ा करने के लिए उक्त संशोधनों को मंजूरी दी गई। गृह मंत्री पी चिदंबरम की अध्यक्षता में गठित मंत्रियों के समूह ने ये सुझाव दिए थे, जिसे कैबिनेट ने स्वीकृति दे दी।
न्यूयॉर्क में 11 सितंबर 2001 में अपहृत विमानों का मिसाइल की तरह इस्तेमाल करके प्रमुख स्थलों को निशाना बनाने की घटना के मद्देनजर भारत के विमान अपहरण निरोधी कानून में ऐसे संशोधन किए जाने को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
वर्तमान कानून में इन संशोधनों को समाहित कर लिए जाने के बाद अब भारत में ऐसे अपहृत विमानों को मार गिराया जा सकता है, जिनसे आशंका हो कि उनका इस्तेमाल मिसाइल के रूप में किसी स्थल पर हमला करने के लिए किया जा सकता है।
संशोधनों में यह प्रावधान शामिल करने को भी मंजूरी दी गई है कि अगर भारत की धरती पर अपहरण की घटना हो या कोई अपहृत विमान आए तो उस विमान को उड़ने की अनुमति नहीं दी जाए और ऐसा किया जाए कि वह उड़ान भरने की स्थिति में ही नहीं रहे।
वर्ष 1999 में कंधार अपहरण की घटना के दौरान अपहृत विमान अमृतसर हवाई अड्डे पर कुछ समय के लिए उतरा था, लेकिन तब सुरक्षा बल उसे दोबारा उड़ान भरने से रोकने में असफल रहे थे।
 

Thursday, March 18, 2010

व्यास सम्मान

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 हिंदी के प्रख्यात लेखक अमरकांत को वर्ष 2009 के प्रतिष्ठित व्यास सम्मान के लिए चुना गया है। 85 वर्षीय अमरकांत को उनके चर्चित उपन्यास इन्हीं हथियारों से के लिए इस सम्मान से नवाजा जाएगा। यह उपन्यास भारत छोड़ो आंदोलन से लेकर 1947 में देश की आजादी के बीच बलिया के ग्रामीण इलाकों में घटी घटनाओं पर आधारित है। केके बिड़ला फाउंडेशन द्वारा दिए जाने वाले इस सम्मान के लिए अमरकांत का चुनाव प्रोफेसर सूर्य प्रसाद दीक्षित की अध्यक्षता वाली ज्यूरी ने किया। वर्ष 1991 से दिए जाने रहे व्यास सम्मान के तहत 2.5 लाख रुपये की नकद राशि दी जाती है

भारत-पाक वार्ता के खतरे

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पुणे में आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान ने विदेश सचिव स्तर की वार्ता के लिए भारतीय पेशकश का स्वागत किया। विदेश सचिव स्तर की इस वार्ता की कोई जल्दी नहीं थी, क्योंकि वार्ता से ठीक पहले अफगानिस्तान में पाकिस्तान समर्थित जिहादी गुटों के हमले में हमारी सेना के तीन चिकित्सकों सहित कई अन्य भारतीय मारे गए। यह एक नया मोर्चा है जो पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ खोला है। पिछले 14 महीने से भारतीय ठिकानों के खिलाफ हमले में जो कमी आई थी, वह इस हमले के बाद खत्म हो गई है। इस वजह से भी दोनों मुल्कों के विदेश सचिव की वार्ता के दौरान तंगदिली साफ नजर आई। आम तौर पर किसी भी दो पड़ोसी देशों के बीच नियमित तौर पर राजनयिक बातचीत होनी चाहिए, मगर पाकिस्तान के फौजी हुक्मरान परमाणु बम की आड़ में लगातार भारत के खिलाफ सरहद पार से दहशतगर्दी को बढ़ावा देते रहे हैं। भारत-पाक वार्ता में कुछ भी सामान्य नहीं। कम से कम आठ ऐसे मुद्दे हैं जिनके कारण इस वार्ता ने नए सिरे से सोचने पर मजबूर किया। पहला मुद्दा है अपनी ही नीतियों से अचानक भारत का यू-टर्न, जिसे उचित ही पाकिस्तान ने भारत की कूटनीति का नरम रुख माना। इससे वहां की सेना और खुफिया एजेंसी उत्साहित हुईं। दूसरा, भारत सरकार के रुख में बदलाव केंद्र सरकार की इच्छा के बगैर हुआ, जिस लेकर जनता के सवालों पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया। असल में भारतीय रुख में बदलाव और प्रधानमंत्री के बयान के बाद सीमा पार से आतंकवादियों घुसपैठ की घटना बढ़ी है। चिंता का तीसरा कारण यह है कि भारत के बदले रुख से आतंकवाद और बढ़ेगा। पुणे और काबुल में दोहरे आतंकी हमले को इस तरह अंजाम दिया गया कि भारत अंदर से बाहर तक लहूलुहान हो। अफगानिस्तान में भारत की मौजूदगी घटाए बिना पाकिस्तान वहां अपना सैन्य और राजनीतिक प्रभाव नहीं बढ़ा सकता। इसके बगैर वह अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की रणनीति पैसे लो और आगे बढ़ो को एक तार्किक परिणति तक नहीं पहुंचा सकता। अफगान समाज के लोकतांत्रिक और पंथनिरपेक्ष तबकों में भारत मजबूत भूमिका निभा रहा है। उसने वहां 1.4 अरब डालर का निवेश किया है। इसे अफगानिस्तान में अपना राजनीतिक हित साधने की कोशिश में लगे पाकिस्तान की कट्टरपंथी और चरमपंथी ताकतें अपने लिए खतरा समझती हैं। पुणे और काबुल हमले से यह साबित हुआ कि आतंकवादी ताकतें पाकिस्तानी फौज के काबू में हैं और वह उनका इस्तेमाल करने में सक्षम है। इसके अलावा, भारत के निर्णय को देखकर लगता है जैसे वह अमेरिका की अफ-पाक रणनीति की सहायता के लिए लिया गया हो। अमेरिका ने अफगान तालिबान से तालमेल बढ़ाने के सार्वजनिक संकेत देकर यह स्पष्ट किया है कि उसकी पाक सेना और खुफिया तंत्र पर निर्भरता बढ़ी है। अफगान तालिबान के साथ कामयाब बातचीत के लिए अमेरिका सबसे पहले तालिबान को कमजोर करना चाहता है। इसीलिए अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान के मारजाह में चल रही कार्रवाई में आक्रामकता दिख रही है। चूंकि अमेरिका अफगान तालिबान के कमांडरों पर दबाव बनाने और उन्हें वार्ता की मेज पर लाने के लिए पाकिस्तानी फौज और खुफिया एजेंसियों से सहायता की उम्मीद कर रहा है इसलिए उसने पाकिस्तान को खुश करने के लिए भारत को इस्लामाबाद के साथ वार्ता की मेज पर आने का मशविरा दिया। दुश्मन के साथ बेहतर राजनीतिक सौदेबाजी के लिए अमेरिका की यह शुरू से रणनीति रही है कि पहले दबाव बनाओ फिर बातचीत करो। भारत को पाकिस्तान के साथ वार्ता के लिए मनाने के बाद अमेरिका ने न सिर्फ मराजाह में आक्रामक रुख अख्तियार किया है, बल्कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद से अफगान तालिबान के कई नेताओं को गिरफ्तार भी किया। इनमें मुल्ला अब्दुल गनी बारादर, अफगान तालिबान के कथित आपरेशन चीफ मुल्ला अब्दुल कबीर, तालिबान की सरकार में उप प्रधानमंत्री रह चुके मुल्ला अब्दुल सलाम और अफगानिस्तान के कुंदुंज प्रांत के छद्म गवर्नर रहे कथित तालिबानी नेता और बगलान प्रांत के मुल्ला मोहम्मद इत्यादि शामिल हैं। पर्दे के पीछे तयशुदा रणनीति के तहत इन मुल्लाओं की गिरफ्तारी पाकिस्तानी शहरों से हुई, जिनमें कराची और नौशेरा भी शामिल हैं। इससे पता चलता है कि अफगान तालिबान के नेता पाकिस्तान-अफगानिस्तान के सरहदी पहाड़ी इलाकों के बजाय पाकिस्तान के प्रमुख शहरों से अपना अभियान चला रहे हैं। चिंता की पांचवी वजह है पाकिस्तान की मौजूदा हालात का लाभ उठाने की जगह भारत अमेरिका का सहारा ले रहा है। भारत अपनी आर्थिक और सैन्य ताकत के प्रयोग के प्रति भी अनिच्छुक है। पाकिस्तान के साथ वार्ता शुरू करने से पता चलता है कि वह अपने कूटनीतिक दांव का इस्तेमाल भी नहीं करना चाहता। पाकिस्तान के विरुद्ध भारत न सिर्फ कूटनीतिक कवायद से बच रहा है, बल्कि नतीजे के लिए बाहरी ताकतों की ओर देख रहा है। इनमें अमेरिका से लेकर सऊदी अरब तक शामिल हैं। बाहरी ताकतों के भरोसे रहना भारत के लिए जोखिम भरा रहा है। जहां तक अमेरिका की दक्षिण एशिया संबंधी नीति का सवाल है तो वह शुरू से ही संकीर्ण रही है। अपने संकीर्ण राजनीति हितों के लिए ओबामा प्रशासन पाकिस्तान को घातक हथियार और उदार सहायता मुहैया कराता रहेगा। सऊदी अरब लंबे समय से जिहादी गुटों को आर्थिक सहायता देता रहा है। 9/11 के आतंकी हमले के बाद भी वह लश्कर-ए-तैयबा सहित अन्य आतंकी समूहों को आर्थिक सहायता देता रहा, जबकि उसने उनके आर्थिक सहायता के स्रोतों को रोकने का वादा किया था। भारत सरकार देश की जनता की आंखों पर यह कहकर पर्दा डाल रही है कि यह बातचीत पूरी तरह आतंकवाद पर केंद्रित है, जबकि हकीकत यह है कि अन्य मुद्दों के अलावा इसमें कश्मीर भी शामिल है। इस वार्ता से पहले भारत सरकार ने हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी से पाकिस्तानी विदेश सचिव की मुलाकात की व्यवस्था की थी। यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री ने संसद में इस तथ्य पर रोशनी डालने से मना कर दिया कि पिछले सालों में सरकार ने पिछले दरवाजे से कश्मीर पर पाकिस्तान के साथ क्या बातचीत की है। उन्होंने राजग सरकार में विदेश मंत्री रह चुके जसवंत सिंह की अमेरिकी विदेश उपसचिव स्ट्रोब टालबोट की गुप्त बातचीत का हवाला दिया। क्या दो गलतियों को आपस में मिला देने से सही हो जाती हैं? एक और चिंताजनक पहलू यह है कि भारत पाकिस्तान के वास्तविक सत्ता केंद्र यानी फौजी नेतृत्व से बातचीत नहीं कर रहा है। इसकी जगह वह पीपीपी सरकार से बात कर रहा है, जो न तो आतंकी हमले के लिए जिम्मेदार है और न उसमें उन्हें रोकने का माद्दा है। भारत क्रमिक रूप से पाकिस्तान सरकार के साथ बातचीत की प्रक्रिया बढ़ा रहा है। ऐसा करके वह पाक फौज को आतंकवाद जारी रखने का अवसर दे रहा है। अंतिम कारण यह है कि जो पाकिस्तान चरमपंथ और आतंकवाद के वैश्विक निर्यात के लिए कुख्यात है उसके साथ वार्ता के लिए जबरन भारत को विवश करने की कोशिश हो रही है। दरअसल अमेरिका से ज्यादा खुद भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष पाक के बराबर रखने की भूल कर रहा है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष

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 पूर्व मुख्य न्यायाधीश वाईके सभरवाल प्रतिकूल मीडिया रिपोर्टो की वजह से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष नहीं बन पाए। गृह मंत्रालय ने एक आरटीआई के जवाब में यह जानकारी दी। मंत्रालय ने कहा, हालांकि मानवाधिकार संरक्षण कानून, 1993 के प्रावधानों के अनुसार पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरसी लाहोटी तथा वाईके सभरवाल दोनों इस पद के योग्य थे। लाहोटी ने व्यस्तता के कारण पेशकश ठुकरा दी जबकि सभरवाल के नाम पर प्रतिकूल रिपोर्टो की वजह से इस अत्यधिक संवेदनशील पद के लिए विचार नहीं किया गया। मंत्रालय की मानवाधिकार शाखा ने बताया, न्यायमूर्ति सभरवाल के बारे में मीडिया तथा अन्य जगह से मिली प्रतिकूल रिपोर्ट के कारण यह महसूस किया गया कि इस पद की पेशकश उन्हें नहीं की जाय। पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र बाबू के 31 मई को अवकाश ग्रहण करने के बाद एक जून 2009 से यह पद रिक्त है। मंत्रालय ने एक अन्य जवाब में बताया कि नई नियुक्ति तक इस पद के लिए न्यायमूर्ति जीपी माथुर तथा आयोग के एक सदस्य को अधिकृत किया गया है। मानवाधिकार संरक्षण कानून 1993 के तहत कोई अवकाशप्राप्त मुख्य न्यायाधीश 70 साल की उम्र तक इस पद के लिए योग्य है

कॉमनवेल्थ बॉक्सिंग चैंपियनशिप में छह गोल्ड मेडल

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75 किलोग्राम वेट कैटिगरी में दुनिया के नंबर वन बॉक्सर और पेइचिंग ओलिंपिक के ब्रॉन्ज मेडल विजेता विजेंदर सिंह समेत छह भारतीय मुक्केबाजों ने कॉमनवेल्थ बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास  रच दिया

 है। कॉमनवेल्थ बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भारत का यह अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।

विजेंदर सिंह ने इंग्लैंड के फ्रैंक बुगलियोनी को 13-3 से हराया। विजेंदर के अलावा अमनदीप सिंह (49 किलोग्राम ), एशियाई चैंपियन सुरंजय सिंह (52 किलोग्राम), दिनेश कुमार (81 किलोग्राम), परमजीत समोटा (91+ किलोग्राम)और जय भगवान (60 किलोग्राम)ने गोल्ड जीता।

बीपीएल सूची का दायरा

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 अल्पसंख्यकों को सीधे बीपीएल सूची में शामिल करने की केंद्र की मुहिम को झटका लगा है। ज्यादातर बड़े राज्यों ने केंद्र के इस मसौदे पर टिप्पणी तक नहीं भेजी है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों की सूची का दायरा बढ़ाने के लिए मनरेगा में 100 दिन काम करने वाले को भी शामिल किया जा सकता है। भूमिहीनों ग्रामीणों को बीपीएल में रखने के प्रस्ताव को पहले ही मान लिया गया है। बीपीएल सूची तैयार करने के तरीके सुझाने वाली सक्सेना कमेटी की सिफारिशें पेश हो चुकी हैं, जिसमें उन्होंने अल्पसंख्यकों को अनुसूचित जाति व जनजाति के माफिक बीपीएल मान लेने की सिफारिश की है। इसे लेकर कई राज्य नाक-भौं सिकोड़ रहे हैं। कुछ राज्यों ने तो इस सिफारिश के आधार पर भेजे केंद्र के मसौदे पर टिप्पणी करना भी मुनासिब नहीं समझा है। गरीबों को चिन्हित करने और बीपीएल के दायरे को बढ़ाने के लिए विशेषज्ञ समिति ने कई और महत्वपूर्ण सिफारिशें की हैं। इन्हीं मसौदों पर ग्रामीण विकास मंत्रालय की समीक्षा बैठक में पहले अलग-अलग और फिर संयुक्त रूप से राज्यों के अधिकारियों से लंबी चर्चा हुई। सूत्रों के अनुसार अल्पसंख्यकों के मसले पर ज्यादातर राज्यों के अधिकारियों ने इसे राजनीतिक बताकर अपना पल्ला छुड़ा लिया। असम, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उड़ीसा, केरल, सिक्किम, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश ने तो अपनी टिप्पणी भेज दी है। बाकी राज्यों ने अभी इस पर अपनी राय भेजना मुनासिब नहीं समझा है।

Tuesday, March 16, 2010

सेक्शुअल असॉल्ट

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 सरकार रेप शब्द को आईपीसी (इंडियन पीनल कोड) से हटाने पर विचार कर रही है। इसकी जगह सेक्शुअल असॉल्ट शब्द जोड़कर इस अपराध की परिभाषा को व्यापक बनाने की तैयारी है। इस तरह, महिलाओं के अलावा पुरुषों के साथ यौन हिंसा को भी इस अपराध के दायरे में लाया जा सकेगा। गृह मंत्री इस विधेयक के मसौदे पर काम कर रहे हैं। इसके जरिए तकरीबन 150 साल पुराने आईपीसी कानून में बलात्कार शब्द की जगह यौन उत्पीड़न शब्द जोड़ा जाएगा। अभी आईपीसी की धारा 375 के मुताबिक, बलात्कार के अपराध के लिए सेक्शुअल इंटरकोर्स में पेनिट्रेशन काफी है। लेकिन, इस धारा को विस्तार देने के बाद गुदा मैथुन, जबरन समलैंगिक संभोग और उंगली या कोई अन्य वस्तु डालना भी अपराध माना जाएगा। ये अभी बलात्कार की श्रेणी में नहीं आते।

Monday, March 15, 2010

ग्रीन हंट आपरेशन

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नक्सली ग्रीन हंट आपरेशन के दौरान अब तक बैकफुट पर नजर आ रहे हैं। आपरेशन के दौरान कोई रुकावट न आए इसलिए जवान अपने साथ खाने-पीने की सामग्री भी रखे हुए हैं। इस अभियान में शामिल जवानों को अत्याधुनिक हथियारों से लैस किया गया है। केंद्रीय बल के पास सेटेलाइट फोन भी है, ताकि किसी भी स्थिति में उनका संपर्क मुख्यालय व सीआरपीएफ के अधिकारियों के साथ बना रहे। अभियान के दौरान सीआरपीएफ के वरीय अधिकारी जंगल में घुसे जवानों को लगातार दिशा निर्देश भी दे रहे हैं। केंद्रीय बल व राज्य के अ‌र्द्धसैनिक बलों के बीच सामंजस्य पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, ताकि इनके बीच किसी भी तरह की गलतफहमी न हो। बताया जा रहा है कि आपरेशन के साथ ही खुफिया जानकारी भी एकत्र की जा रही है। सैकड़ों जवान यहां के घने जंगलों में प्रवेश कर चुके हैं। फिलहाल जवानों ने चतरा के हंटरगंज इलाके को घेर लिया है। लातेहार क्षेत्र में 18 कंपनी सीआरपीएफ को लगाया गया है। साथ ही जगुआर व जैप के जवान भी इस आपरेशन में शामिल हैं। कोबरा फोर्स के नेतृत्व में सिंहभूम के जंगलों व पहाड़ों में जवान डेरा डाले हुए हैं। आपरेशन में नक्सलियों पर नजर रखने के लिए हेलीकॉप्टर की मदद ली जा रही है।
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नक्सली ग्रीन हंट आपरेशन के दौरान अब तक बैकफुट पर नजर आ रहे हैं। आपरेशन के दौरान कोई रुकावट न आए इसलिए जवान अपने साथ खाने-पीने की सामग्री भी रखे हुए हैं। इस अभियान में शामिल जवानों को अत्याधुनिक हथियारों से लैस किया गया है। केंद्रीय बल के पास सेटेलाइट फोन भी है, ताकि किसी भी स्थिति में उनका संपर्क मुख्यालय व सीआरपीएफ के अधिकारियों के साथ बना रहे। अभियान के दौरान सीआरपीएफ के वरीय अधिकारी जंगल में घुसे जवानों को लगातार दिशा निर्देश भी दे रहे हैं। केंद्रीय बल व राज्य के अ‌र्द्धसैनिक बलों के बीच सामंजस्य पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, ताकि इनके बीच किसी भी तरह की गलतफहमी न हो। बताया जा रहा है कि आपरेशन के साथ ही खुफिया जानकारी भी एकत्र की जा रही है। सैकड़ों जवान यहां के घने जंगलों में प्रवेश कर चुके हैं। फिलहाल जवानों ने चतरा के हंटरगंज इलाके को घेर लिया है। लातेहार क्षेत्र में 18 कंपनी सीआरपीएफ को लगाया गया है। साथ ही जगुआर व जैप के जवान भी इस आपरेशन में शामिल हैं। कोबरा फोर्स के नेतृत्व में सिंहभूम के जंगलों व पहाड़ों में जवान डेरा डाले हुए हैं। आपरेशन में नक्सलियों पर नजर रखने के लिए हेलीकॉप्टर की मदद ली जा रही है।

हाइपरसोनिक इंटरसेप्टर मिसाइल

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 उड़ीसा तट पर सोमवार को भारत की नई अडवान्स्ड एयर डिफेंस मिसाइल का परीक्षण विफल हो गया
दुश्मन की बैलिस्टिक मिसाइलों को ध्वस्त करने के लिए विकसित की जा रही हाइपरसोनिक इंटरसेप्टर मिसाइल को समुद्र के लगभग 70 किलोमीटर पार चांदीपुर के वीलर द्वीप से उड़ान भरने के लिए जरूरी निर्देश नहीं मिल पाया। 

न्यूक्लियर लायबिलिटी बिल

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भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने के लिए दौड़ की शुरुआत हो चुकी है। इस रेस में रूस काफी आगे है। फ्रांस की कंपनी अरेवा दूसरे नंबर पर है। अमेरिकी-जापानी उपक्रम (जीई-हिताची और तोशिबा-वेस्टिंगहाउस) अब भी रेस में काफी पीछे हैं। बुश-मनमोहन के बीच हुए इस समझौते से सबसे अधिक लाभ रूसी कंपनी एटमस्ट्रॉयक्स्पोर्ट को होने जा रहा है, जबकि अमेरिकी कंपनियां सबसे पीछे हैं। नए परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए जगह का चयन, बोर्ड में राज्य सरकारों को शामिल करने और पर्यावरण एवं सुरक्षा संबंधी मंजूरी पाने में सालों लग सकते हैं। इसके अलावा परमाणु विरोधी एनजीओ की याचिका से भी इसमें देर संभव है। रूस इस रेस में काफी आगे निकल चुका है क्योंकि वह पुराने करार के तहत तमिलनाडु के कुडानकुलम में दो ऊर्जा संयंत्र बना रहा है। इस संयंत्र को भी तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, लेकिन अब उसका रास्ता साफ है। इस संयंत्र में 1,000 मेगावाट के आठ रिएक्टर लगाए जा सकते हैं। वास्तव में भारत-रूस कुडानकुलम में रिएक्टर तीन और चार के मसले पर भी समझौता कर चुके हैं और इन पर भारत-अमेरिका परमाणु करार एवं संबंधित समझौते पर अमल के बाद काम शुरू होने की उम्मीद है। हाल में ही रूस सरकार ने रिएक्टर तीन एवं चार से संबंधित मसले पर हरी झंडी दे दी है, इसलिए इस काम में किसी तरह की रुकावट की आशंका नहीं है।निजी क्षेत्र की कंपनियां भारत को तब तक उपकरण की आपूर्ति नहीं कर सकतीं, जब तक न्यूक्लियर लायबिलिटी एक्ट लागू नहीं हो जाता। इस एक्ट के लागू होने के बाद किसी दुर्घटना की स्थिति में विदेशी आपूर्तिकर्ता की जिम्मेदारी सीमित हो जाएगी। इस तरह का बिल तैयार किया जा रहा है और उम्मीद है कि कानून मंत्रालय इसे जल्द पेश कर सकता है। केंद्र के आगामी बजट सत्र में कई बिल पारित किए जाने हैं, इसलिए इस बिल पर संशय बरकरार है। इस देरी से फ्रांस, जापान और अमेरिका के साथ करार पर असर पड़ सकता है। रूस की कंपनी पर इसका प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि वह सरकारी कंपनी है। भारतीय समिति ने परमाणु पार्क के लिए पांच नई जगह का चयन किया है जिसमें से प्रत्येक में 1,000-1,650 मेगावाट के छह-आठ रिएक्टर होंगे। ये साइट महाराष्ट्र के जैतपुर, पश्चिम बंगाल के हरिपुर, उड़ीसा के पाटीसोनापुर, गुजरात के मिठिरविर्दी और आंध्र प्रदेश के कोवाड़ी में स्थित हैं। इनमें से जैतपुर का चयन कर लिया गया है और इसे फ्रांस की अरेवा को सौंप दिया गया है। इससे रेस में अरेवा दूसरे स्थान पर है। फ्रांस की संसद से हालांकि जैतपुर के लिए द्विपक्षीय समझौते पर मुहर नहीं लगी है, लेकिन इसकी उम्मीद बनी है। जीई-हिताची और तोशिबा-वेस्टिंगहाउस के लिए अब तक किसी साइट का चयन नहीं किया गया है। पश्चिम बंगाल में हरिपुर के लिए जीई-हिताची पर बात चली थी, लेकिन यह राजनीतिक रूप से काफी मुश्किल होगा। वाम मोचेर् की सरकार किसी अमेरिकी कंपनी को परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने की इजाजत देने के लिए राजी नहीं होगी। इसके अलावा ममता बनर्जी भी प्लांट का विरोध कर सकती हैं।जापान को हालांकि भारत-अमेरिका परमाणु करार रास नहीं आया, लेकिन उसने अमेरिकी दबाव को समझते हुए इस पर चुप रहना ही बेहतर समझा। जापानी राजनेताओं और एनजीओ ने भारत एवं पाकिस्तान जैसे देशों को परमाणु उपकरण निर्यात करने का विरोध किया। इस वजह से जापान से निर्यात के लिए लाइसेंस हासिल करना भी आसान नहीं है। यूरेनियम ईंधन की आपूर्ति में भी रूस और फ्रांस आगे हैं। फ्रांस से करीब 300 टन यूरेनियम भारत आ चुका है और रूस ने 30 टन की पहली खेप भारत भेज दी है। भारत कजाकिस्तान से भी 2,000 टन यूरेनियम के लिए बातचीत कर रहा है, इसमें अमेरिका और जापान कहीं भी शामिल नहीं हैं।

लोकसभा में विपक्ष के भारी विरोध की आशंका के कारण परमाणु दुर्घटना की स्थिति में मुआवजे के प्रावधान से संबंधित महत्वपूर्ण जनदायित्व विधेयक नहीं लाया जा सका। विधेयक पर सरकार को संसद में भाजपा और वाम दलों का सबसे तीखा विरोध झेलने का डर था।

लोकसभा की स्‍पीकर मीरा कुमार ने संसद में जानकारी देते हुए कहा कि परमाणु ऊर्जा राज्य मंत्री पृथ्वीराज चौहान ने उनसे कहा है कि सरकार सदन में यह बिल आज पेश नहीं करना चाहती है।

गौरतलब है कि इस बारे में माकपा नेता सीताराम येचुरी पहले ही कह चुके हैं कि इस बिल को पेश करने के बाद स्थाई समिति के पास भेजा जाना चाहिए। भाजपा को भी इस पर कई आपत्तियां हैं। सुषमा स्वराज और यशवंत सिन्हा सदन में इस मसले पर सरकार को घेरने की पूरी तैयार कर चुके हैं। हालांकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने खुद विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज से और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने अरुण जेटली से इस मसले पर बात की है। उधर सरकार चाहती है कि यह विधेयक स्थाई समिति के पास न जाकर इसी सत्र में पारित करा लिया जाए।

भारत-अमेरिकी परमाणु करार के कार्यान्वयन में इस विधेयक की अहम भूमिका है। इस विधेयक के पारित होने के बाद ही अमेरिकी कंपनियां भारत में अपना परमाणु व्यापार शुरू कर सकती हैं। इसलिए अमेरिका चाहता है कि यह बिल शीघ्र पारित हो जाए। सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज बिल-2010 को पिछले साल नवंबर में कैबिनेट ने मंजूरी दे दी थी। इस बिल में हरेक परमाणु दुर्घटना की स्थिति में परमाणु संयंत्र के संचालक की ओर से अधिकतम 300 करोड़ रुपए तक की राशि की जिम्मेदारी लेने की बात है। हालांकि ऐसे प्रावधान भी किए गए हैं, जिसके आधार सरकार इस राशि में कमी या वृद्धि कर सकती है। देनदारी की सीमा तय करने से सीमा के ऊपर भुगतान की जाने वाली रकम का बोझ भारतीय करदाताओं पर पड़ेगा। जबकि अमेरिकी कंपनियां मुक्त घूमेंगी.
उधर भारत सरकार और अमेरिका सरकार के वार्ताकार पिछले दिनों रिप्रोसेसिंग मसले पर मतभेद सुलझाने की कोशिश में लगे हुए थे, ताकि अगले महीने 11-12 अप्रैल को परमाणु शिखर सम्मेलन से पहले इस मसले पर सहमति बन जाए। सूत्रों का कहना है कि इस मसले पर दोनों देशों के वार्ताकारों ने एक प्रारूप तो तैयार किया है, लेकिन अभी इस पर राजनीतिक नेतृत्व की मंजूरी बाकी है। रिप्रोसेसिंग के मसले पर भारत का मानना है कि द्विपक्षीय 123 समझौते में उसने जो वादा किया है, उसी के अनुरूप वह अमेरिका के साथ समझौता करेगा। वहीं अमेरिका अप्रसार के मसले पर जोर दे रहा है।

Sunday, March 14, 2010

नायब तहसीलदार लिखित परीक्षा परिणाम घोषित

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लोक सेवा आयोग ने नायब तहसीलदार/उपकारापाल 2006 की लिखित परीक्षा का परिणाम शुक्रवार को घोषित कर दिया। कुल 53 रिक्तियों के सापेक्ष 198 अभ्यर्थी साक्षात्कार के लिए बुलाए गए हैं। इंटरव्यू अप्रैल में प्रस्तावित हैं। नायब तहसीलदार/उपकारापाल पद की लिखित परीक्षा 24 फरवरी 2008 को आयोजित हुई थी। परीक्षा 21 जिलों के 367 केन्द्रों पर हुई थी। इन केन्द्रों पर कुल 1,30,013 अभ्यर्थी सम्मिलित हुए थे। वैसे आवेदन पत्र भरने वाले कुल अभ्यर्थी 1,80,881 थे। इनमें कतिपय कारणों से 50 हजार अभ्यर्थियों ने परीक्षा छोड़ दी थी। परीक्षा नियंत्रक मुरलीधर दुबे ने बताया कि साक्षात्कार के लिए सफल प्रत्येक श्रेणी के कट आफ अंक एवं असफल अभ्यर्थियों के प्राप्तांक, नाम, जन्मतिथि, श्रेणी, लिंग आदि की सूचनाएं आयोग की वेबसाइट पर 20 मार्च से उपलब्ध रहेंगी। यदि किसी अभ्यर्थी को उसकी श्रेणी के कट आफ अंक से अधिक अंक प्राप्त हुए हों और आंकड़ों की त्रुटिवश श्रेणी आदि का सही अंकन नहीं हो सका है तो इसके निराकरण के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। उन्होंने बताया कि ऐसी विसंगति को दूर करने के लिए अभ्यर्थी आवेदन पत्र परीक्षा अनुभाग-4 में 21 मार्च से तीन अप्रैल तक कार्यालय अवधि के बीच जमा कर दें। इसके बाद आवेदन पत्र स्वीकार नहीं किया जाएगा। परीक्षा नियंत्रक ने बताया कि रिजल्ट आयोग की वेबसाइट पर जारी कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि असफल अभ्यर्थियों के प्राप्तांक आदि अंतिम परिणाम के पूर्व ही वेबसाइट पर जारी किए जा रहे हैं

नक्सलवाद

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केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम का यह कहना उल्लेखनीय है कि नक्सलवाद जिहादी आतंकवाद की तुलना में ज्यादा गंभीर समस्या है। इसका सीधा अर्थ है कि भारत एक साथ दो बड़ी समस्याओं का सामना कर रहा है, जिनमें एक सीमा पार से संचालित है और दूसरी सीमा के अंदर से। चिदंबरम ने नक्सलियों के इरादों का जिक्र करते हुए केंद्रीय गृहसचिव के इस कथन की पुष्टि भी की कि नक्सली सत्ता पर कब्जा करना चाहते हैं। गृहमंत्री ने नक्सलियों से निपटने का संकल्प लेते हुए उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार के इस कार्यकाल के अंत तक नक्सलियों के कब्जे वाले इलाके मुक्त कराने में सफलता मिल जाएगी, लेकिन जब तक ऐसा नहीं हो जाता तब तक चैन की सांस नहीं ली जा सकती। वैसे भी यह किसी से छिपा नहीं कि नक्सलवाद से ग्रस्त राज्य नक्सलियों के खिलाफ अभियान छेड़ने के मामले में कुल मिलाकर आनाकानी ही कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ को छोड़ दिया जाए तो अन्य राज्य नक्सलियों का मुकाबला करने के बजाय तरह-तरह के बहाने बना रहे हैं। पश्चिम बंगाल और बिहार आगामी विधानसभा चुनावों के चलते शिथिल हैं तो झारखंड सरकार वोट बैंक कमजोर होने से आशंकित है। इसके पहले नक्सलियों के खिलाफ अभियान इसलिए नहीं शुरू हो सका, क्योंकि झारखंड और महाराष्ट्र में चुनाव होने थे। उसके पहले लोकसभा चुनाव के कारण नक्सल विरोधी अभियान को विराम दे दिया गया था। क्या कोई यह सुनिश्चित करेगा कि अब नक्सलियों से निपटने से अधिक चुनावी लाभ-हानि को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी? आखिर चुनाव आवश्यक हैं या तख्ता पलट का सपना देख रहे नक्सलियों पर नियंत्रण? गृहमंत्री की मानें तो नक्सली देश के 200 जिलों में सक्रिय हैं और करीब 34 जिलों में उनकी तूती बोल रही है। यह खतरनाक स्थिति है। सवाल यह है कि नक्सलियों को इतना समर्थ क्यों होने दिया गया कि वे 34 जिलों में समानांतर सरकार चलाने की स्थिति में आ गए हैं? नि:संदेह यह रातों रात नहीं हुआ होगा। आखिर नक्सलियों के इतना ताकतवर होने देने की जवाबदेही किसकी है? आखिर यह कैसा लोकतंत्र है जिसमें नक्सलियों को भी फलने-फूलने का मौका मिला? क्या यह मान लिया जाए कि राजनीतिक दलों के संरक्षण के बगैर नक्सली इतना निरंकुश हो गए? क्या नक्सलवादियों के खिलाफ बल प्रयोग करने से कन्नी काट रहे राजनीतिक दल तब चेतेंगे जब वे कुछ और जिलों में शासन करने में समर्थ हो जाएंगे? केंद्रीय गृहमंत्री ने एक बार फिर नक्सलियों से बातचीत की इच्छा जताई, लेकिन इसमें संदेह है कि वे वार्ता के इच्छुक हैं और उससे कुछ हासिल होगा। नक्सलियों को वार्ता का निमंत्रण देकर कुछ ऐसा संदेश दिया जा रहा है जैसे वे आदिवासियों के प्रतिनिधि हों। आखिर सरकार सीधे आदिवासियों से बात क्यों नहीं करती? नक्सलियों से वार्ता के जरिये कुछ हासिल होने की उम्मीद इसलिए नहीं है, क्योंकि वे वैचारिक रूप से उतने ही कट्टर हैं जितने कि जेहादी आतंकी। यह ठीक है कि चिंदबरम ने अगले तीन-चार वर्षो में नक्सलियों पर काबू पाने का भरोसा जताया, लेकिन आखिर जेहादी आतंकवाद पर लगाम कब लगेगी? क्या कारण है कि जेहादी आतंकवाद से निपटने के मामले में वैसा कोई संकल्प नहीं लिया जा रहा जैसा नक्सलवाद के मामले में लिया गया?
इसमें कोई शक नहीं कि नक्सलवाद अब देश के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है। प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री तक नक्सली हिंसा को लेकर चिंता जता चुके हैं। ऐसे में देश के गृह सचिव जीके पिल्लई का यह बयान कि माओवादियों का मकसद 2050 तक भारतीय लोकतंत्र को उखाड़ फेंकना है क्या साबित करता है? भारत में वामपंथी उग्रवाद की स्थिति विषय पर सेमिनार को संबोधित करते हुए गृहसचिव ने यह भी कहा कि अगर मौजूदा समय में माओवादी चाहें तो भारतीय अर्थव्यवस्था के कई सेक्टरों को घुटने के बल बैठा सकते हैं, मगर वे फिलहाल ऐसा नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हें पता है कि इससे शासन उन पर कड़ी कार्रवाई करेगा। क्या इस तरह के बयान से नक्सलियों के नापाक मंसूबों को और शह नहीं मिलेगी? क्या गृहसचिव नक्सलियों का महिमा मंडन नहीं कर रहे हैं? यदि ऐसा नहीं है तो फिर इस तरह के बयानों का क्या औचित्य है? जीके पिल्लई ने सेमिनार में नक्सलियों का जिस तरह से महिमा मंडन किया उसका असर तुरंत दिखाई दिया और अगले ही दिन माओवादी नेता कोटेश्र्वर राव उर्फ किशनजी का बयान आ गया कि हम 2050 से पहले ही भारत में तख्ता पलटकर रख देंगे। देश के कर्णधारों के बीच इन दिनों यह एक नया रिवाज बनता जा रहा है कि विदेश नीति से लेकर सुरक्षा नीति पर कोई भी कुछ भी बयान जारी कर सकता है। कोई ट्विटर पर विदेश नीति जैसे संवेदनशील विषयों पर चहकता दिखाई देगा तो कोई देश की सुरक्षा जैसे अहम मसले पर किसी सेमिनार में बौद्धिक उछलकूद करेगा। सरकार में अहम पदों पर बैठे हुए लोगों को देश से जुड़े किसी अहम मसले पर अपनी बात सोच-समझकर ही रखनी चाहिए। नक्सली हिंसा को लेकर पिछले कई बरसों से सरकार रणनीति पर रणनीति बनाए जा रही है और इसको लेकर समय-समय पर राज्यों के मुख्यमंत्री से लेकर गृहसचिवों और पुलिस महानिदेशकों तक के सम्मेलन होते रहते हैं। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में माओवादियों के हमले में 17 पुलिसकर्मियों के मारे जाने के कुछ समय बाद ही माओवादियों के खिलाफ नई रणनीति की घोषणा हो जाती है, जिसमें कहा जाता है कि नक्सलियों के खिलाफ अभियान की कमान राज्य की पुलिस संभालेगी, जबकि केंद्रीय पुलिस सिर्फ सहायक होगी। माओवादियों के खिलाफ भावी अभियानों में विशेष कमांडो दस्तों के साथ लगभग 70 हजार केंद्रीय अर्धसैनिक बल तैनात करने की बात भी की जाती है। इन अ‌र्द्धसैनिक बलों के साथ सैनिक और वायुसेना के सशस्त्र हेलिकाप्टर उपलब्ध कराने का भी जिक्र होता है। कभी केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से संकेत आते हैं कि माओवादियों के ठिकानों पर चालक रहित विमान से हमले किए जाएंगे तो कभी इस बात को खारिज कर दिया जाता है। दरअसल नक्सल समस्या को जड़ से मिटाने के लिए अब तक केंद्र और राज्य सरकारों ने कभी गंभीरता से विचार नहीं किया। नक्सलवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा आते हैं और इन राज्यों के कई इलाकों में हालात वाकई बदतर हैं। लगभग तीन दर्जन जिलों में उनकी समानांतर सरकार चल रही है। आर्थिक विकास दर को दहाई के आंकड़े पर लाने की बात तो की जाती है लेकिन इस बात को नजरअंदाज कर दिया जाता है कि इसका लाभ गरीब और वंचित तबके को नहीं मिल रहा है। मनरेगा जैसी योजनाओं के क्रियान्वयन में होने वाले भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए सरकार को खुद को तैयार करना होगा। आने वाले बरसों में अगर हम गरीबी को जड़ से मिटा दें और विकास की रोशनी को केवल महानगरों तक सीमित न रखकर देश के कोने-कोने तक पहुंचा दें तो कोई भी नक्सलवाद या आतंकवाद देश के लोगों को अपने फायदे के लिए हिंसा की राह पर नहीं मोड़ सकेगा।-साभार दैनिक जागरण 

महिला आरक्षण विधेयक

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महिला आरक्षण बिल राज्यसभा में पारित हो गया। कहा जा रहा है कि यह देश के सबसे बड़े और सर्वाधिक दमित अल्पसंख्यक वर्ग के सशक्तिकरण की दिशा में पहला कदम है। आबादी के करीब आधे हिस्से को सशक्त किए बिना समग्र रूप में लोगों का सशक्तिकरण संभव नहीं है और राष्ट्र अपने विकास की पूर्ण साम‌र्थ्य हासिल नहीं कर सकता। भारत में परंपरागत रूप से आबादी के वंचित समूहों को आरक्षण के माध्यम से आगे बढ़ाने का प्रयत्न किया जाता है। इसी तर्क के आधार पर प्रमुख राजनीतिक दल केंद्रीय और प्रादेशिक विधायिका में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने के लिए संविधान संशोधन करना चाहते हैं। इस पहल में उन्हें पंचायत राज संस्थानों और स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने से प्रोत्साहन मिला है। इसी कारण लाखों महिलाएं सार्वजनिक जीवन में भागीदारी करने लगी हैं। कुछ छोटी पार्टियां यह दलील दे रही हैं कि विधायिका में महिलाओं को एक-तिहाई आरक्षण से अल्पसंख्यकों के हित प्रभावित होंगे और विधायिका में उनका प्रतिनिधित्व कम होगा। प्रमुख राजनीतिक पार्टियों का तर्क है कि यह भय निराधार है। हमारा इन दोनों पक्षों के तर्क-वितर्क पर विमर्श का कोई इरादा नहीं है किंतु कुछ विपक्षी दलों द्वारा राज्यसभा में संशोधन बिल रोकने के तरीके और इस पर संसद की प्रतिक्रिया पर टिप्पणी करना जरूरी है। इस घटनाक्रम का पूरे राष्ट्रीय परिदृश्य पर प्रभाव पड़ा है। राज्यसभा में विभिन्न दलों के करीब 190 सदस्य मौजूद थे फिर भी केवल सात सदस्य सदन के वेल में आकर बिल पेश करने से रोकने के लिए संसद की कार्रवाई में बाधा पहुंचाने में कामयाब हो गए। दोपहर बाद वे सभापति की मेज तक पहुंच गए और मेज पर रखे दस्तावेजों की प्रतियां फाड़ डाली। 9 मार्च की सुबह सभापति ने इन सात सदस्यों को शेष सत्र के लिए निलंबित कर दिया। पिछले बीस सालों में यह पहली बार हुआ। उद्दंड सदस्यों ने सदन को छोड़ने से इनकार कर दिया तो मार्शलों को उन्हें उठाकर बाहर निकालना पड़ा। महिला आरक्षण के समर्थन में बिल 186-1 मतों से पारित कर दिया गया। निलंबित सदस्यों और उनकी पार्टियों को अपने व्यवहार पर कोई अफसोस नहीं था। अगले दिन न केवल पार्टियों बल्कि निलंबित सदस्यों ने भी अनुशासनात्मक कार्रवाई का विरोध किया बल्कि अन्य दलों ने और यहां तक कि एक केंद्रीय मंत्री ने भी निलंबन की आलोचना की। टीवी पर इन सब घटनाओं को देखने वाले आम आदमी पर इसका क्या प्रभाव पड़ा? पहला तो यह कि ऐसे कई सांसद हैं जो संसद के ही नियमों का सम्मान नहीं करते। न ही लोकतांत्रिक मूल्यों में उनकी आस्था है। वे इस पर जोर देते हैं कि भारी बहुमत से अलग विचार होने के बावजूद उनकी बात मानी जानी चाहिए। वे तार्किकता में विश्वास नहीं रखते, न ही दूसरों की बात सुनते हैं। यहां तक कि सदन के भीतर हिंसा तक करने में नहीं हिचकते। स्वाभाविक है, इस तरह के व्यवहार और मूल्यों वाले लोग नहीं चाहते कि सबसे बड़े और दमित अल्पसंख्यक वर्ग, महिलाओं का सशक्तिकरण हो। दूसरे, उन बहुसंख्यक सांसदों के बारे में क्या कहा जाए जो लोकतंत्र के किले में चुपचाप बैठे हुए लोकतांत्रिक मूल्यों पर आघात देखते रहते हैं। क्या यही लोग लोगों का सशक्तिकरण और उनके अधिकारों की सुरक्षा करने जा रहे हैं! जब भारी भरकम बहुमत हिंसक अल्पसंख्यकों के छोटे से समूह की हेकड़ी के आगे समर्पण कर देता है तो इससे लगता है कि मुट्ठीभर उपद्रवियों द्वारा फासीवादी तरीकों से सदन को बाधित करने में पूर्व व वर्तमान मंत्रियों सहित काफी अधिक सदस्यों का समर्थन हासिल है। इससे यह सवाल उठता है कि अगर ये सदस्य सदन के भीतर ही कानून-व्यवस्था का मखौल उड़ाते हैं तो उनका अपने निर्वाचन क्षेत्र में क्या व्यवहार होता होगा? सांसद शेखी बघारते हैं कि वे पूरी जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं और संविधान के मूल्यों में विश्वास रखते हैं, जबकि बहुसंख्यक वोट उनके खिलाफ होती हैं। धनबल और बाहुबल से चुने जाने के बाद वे आम आदमी पर ज्यादती करते हैं। यही वे संसद में भी दोहराते हैं। जबकि आम आदमी इस तरह की लोकतंत्र विरोधी फासिस्टों की ज्यादतियों के सामने मजबूर होता है, किंतु संसद सदस्यों से इस तरह के दबाव में आने की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि सदन में कानून व्यवस्था सुनिश्चित रखने के लिए उनके पास समस्त शक्तियां होती हैं। जब तक भारतीय संसद अनुशासन कायम रखने में सक्षम नहीं होती, तब तक वह जनता का सशक्तिकरण नहीं कर सकती। आज के हालात में संसद में अधिकांश सदस्य कानून सम्मत कार्यवाही सुनिश्चित करने में असमर्थ हैं। पहले उन्हें खुद को सशक्त करने दो। 
महिला आरक्षण विधेयक का राज्यसभा में पारित होना अपने आपमें मील का एक पत्थर है, लेकिन यह जिस तरह पारित हुआ और फिर विवादों में घिर गया उससे इसकी महत्ता घटी है। यह सर्वविदित है कि देश में महिलाओं का स्तर पुरुषों से नीचे है। संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व आठ-नौ प्रतिशत के आसपास है। यह प्रतिशत कुछ पड़ोसी देशों से भी कम है। ज्यादातर दलों और विशेष रूप से कांग्रेस, भाजपा और वामदलों का यह मानना है कि यदि राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी तो इससे सामाजिक ढांचे में आमूल-चूल परिवर्तन आएगा। इस मान्यता से असहमत नहीं हुआ जा सकता, लेकिन यह तथ्य चकित करता है कि महिला आरक्षण विधेयक 14 वर्षो बाद संसद के उच्च सदन से पारित हो सका और वह भी तब जब सदन में मार्शल बुलाने पड़े। सपा और राजद के सांसदों ने विधेयक को पारित होने से रोकने के लिए हर संभव प्रयास किए, लेकिन वे असफल रहे। यह बात और है कि अब इन्हीं दलों की आपत्ति के चलते यह विधेयक लोकसभा में नहीं लाया जा सका। यह इन दोनों दलों की एक बड़ी राजनीतिक सफलता है। इन दलों का मानना है कि महिला आरक्षण विधेयक का मौजूदा स्वरूप दलित, पिछडे़ एवं अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं की अनदेखी करने वाला है। कुछ ऐसी ही बात भाजपा, कांग्रेस के अनेक सांसद भी अंदर ही अंदर कर रहे हैं। यदि यह तर्क उचित है कि इस विधेयक से मुस्लिम महिलाओं को कुछ भी लाभ मिलने वाला नहीं और इसी कारण सरकार इस विधेयक को लोकसभा में लाने से ठिठक गई तब फिर यह समझना कठिन है कि कांग्रेस और वामदलों को यह बात समय रहते समझ में क्यों नहीं आई? क्या कारण है कि अब लालू-मुलायम की आपत्ति को आधार बनाकर महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा में पेश करने का इरादा त्याग दिया गया? कहीं ऐसा तो नहीं कि सत्तापक्ष ने इस विधेयक को राज्यसभा में पारित कराना अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था और इसीलिए सदन में मार्शल बुलाकर विधेयक का विरोध करने वाले सांसदों को बाहर किया गया? राज्यसभा से पारित विधेयक को लोकसभा में पेश करने के पहले उस पर विचार-विमर्श का निर्णय यह बताता है कि इतने महत्वपूर्ण मामले में अपेक्षित राजनीतिक परिपक्वता का परिचय नहीं दिया गया। अब स्थिति यह है कि जहां खुद कांग्रेस महिला आरक्षण विधेयक को ठंडे बस्ते में डालती दिख रही है वहीं भाजपा में इस विधेयक को लेकर असंतोष बढ़ता जा रहा है। कुछ भाजपा सांसदों ने तो लोकसभा में व्हिप का उल्लंघन करने की धमकी दी है। उनकी मानें तो कुछ कांग्रेसी सांसद उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। सरकार के समक्ष एक संकट यह भी है कि आरक्षण के अंदर आरक्षण की लालू यादव-मुलायम सिंह-शरद यादव की मांग का समर्थन ममता बनर्जी भी कर रही हैं और मायावती भी। यह भी साफ है कि अब सरकार लोकसभा में राज्यसभा की तरह विधेयक पारित कराने का साहस नहीं जुटा पा रही। शायद सरकार को सपा और राजद के समर्थन वापस ले लेने का भय सता रहा है और वह बसपा पर भरोसा करने की स्थिति में नहीं। यह ठीक है कि राज्यसभा में हंगामे के बाद सरकार महिला आरक्षण विधेयक पर लालू यादव, मुलायम सिंह, शरद यादव के साथ-साथ अन्य दलों से बातचीत करने के लिए तैयार है, लेकिन आखिर यह काम पहले क्यों नहीं किया गया? आखिर यह क्या बात हुई कि राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक ले जाने के पहले तो विचार-विमर्श से इनकार किया गया और लोकसभा में ले जाने के पूर्व सर्वदलीय बैठक बुलाने की बात की जा रही है? इसमें संदेह नहीं कि भाजपा और वामदलों के साथ-साथ कांग्रेस यह साबित करना चाहती थी कि वह महिलाओं को विधानमंडलों में 33 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन उसे उस स्थिति का भान होना ही चाहिए था जो अब उसके समक्ष पैदा हो गई है। इस संकट के लिए कांग्रेस ही अधिक जिम्मेदार है, क्योंकि लालू और मुलायम तो पहले दिन से महिला आरक्षण के अंदर आरक्षण देने की मांग कर रहे थे। फिलहाल यह कहना कठिन है कि लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक कब आएगा, लेकिन इतना अवश्य है कि कांग्रेस ने महिलाओं के उत्थान को लेकर अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित कर दी। यदि यह विधेयक लोकसभा से पारित नहीं हो पाता तो उसके पास यह कहने का अधिकार होगा कि सपा और राजद के कारण सोनिया गांधी राजीव गांधी के सपने को पूरा नहीं कर पाई। महिला आरक्षण के मौजूदा स्वरूप से यह स्पष्ट है कि महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें बारी-बारी से बदलती रहेंगी। इस प्रावधान के चलते एक खतरा यह है कि एक बड़ी संख्या में सांसदों को अपना निर्वाचन क्षेत्र छोड़ना होगा। जिन सांसदों को महिला आरक्षण के कारण अगली बार चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिलेगा वे या तो अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास को लेकर उदासीन हो जाएंगे या फिर वहां से अपने परिवार की महिलाओं को प्रत्याशी बनाने की कोशिश करेंगे। इस पर आश्चर्य नहीं कि महिला आरक्षण का लाभ नेताओं की पत्नियां, बहुएं और बेटियां ही अधिक उठाएं। एक धारणा यह भी है कि महिला आरक्षण के चलते एक तिहाई महिलाएं तो लोकसभा और विधानसभाओं में पहुंचेंगी ही, आगे चलकर इनमें से कई महिलाएं गैर आरक्षित सीटों से भी चुनाव जीत सकती हैं। यदि ऐसा हुआ तो सदनों में महिला जनप्रतिनिधियों की संख्या एक तिहाई से अधिक भी हो सकती है। ऐसा होने में कोई बुराई नहीं, क्योंकि महिलाओं की आबादी तो 50 प्रतिशत के आसपास है, लेकिन इस संभावना से पुरुष नेताओं का चिंतित होना स्वाभाविक है। ऐसा लगता है कि महिला आरक्षण के विरोध के पीछे एक कारण यह भी है। जो भी हो, इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि यदि महिला आरक्षण के समर्थक दल व्हिप जारी न करते तो राज्यसभा में दूसरी ही तस्वीर बनती। यह आवश्यक है कि महिला आरक्षण विधेयक को लोकसभा में पेश करने के पहले लालू यादव, मुलायम सिंह की आपत्तियों को सुनने के साथ-साथ उन सवालों पर भी गौर किया जाए जो महिला आरक्षण विधेयक के मौजूदा स्वरूप को लेकर उठ रहे हैं। समाज का हित इसी में है कि महिलाओं के सशक्तिकरण के कदम आम सहमति से उठाए जाएं। कुछ अन्य विकल्पों पर भी विचार किया जाना चाहिए जैसे चुनाव आयोग द्वारा यह निर्देशित किया जा सकता है कि राजनीतिक दल एक निश्चित प्रतिशत में महिलाओं को राज्यवार टिकट दें। यह भी समय की मांग है कि महिलाओं के सामाजिक उत्थान के प्रत्यक्ष प्रयास किए जाएं, क्योंकि भारतीय समाज अभी भी पुरुष प्रधान है। यहां न केवल बेटों की लालसा पहले जैसी है, बल्कि महिलाओं को अक्सर बराबरी का दर्जा देने से इनकार किया जाता है। ऐसे समाज में केवल राजनीति में महिलाओं की संख्या बढ़ाने से अभीष्ट की प्राप्ति होने वाली नहीं। सामाजिक स्तर पर महिलाएं सशक्त हों, इसके लिए उनकी शिक्षा पर भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए और सुरक्षा पर भी। अभी तो वे कोख तक में सुरक्षित नहीं हैं। बेहतर होगा कि राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए सभी का सहयोग लिया जाए और कम से कम इस मामले राजनीतिक हानि-लाभ हासिल करने की भावना से ऊपर उठा जाए।साभार - दैनिक जागरण 

ऑल इंग्लैंड सुपर सीरीज बैडमिंटन चैंपियनशिप

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साइना नेहवाल ऑल इंग्लैंड सुपर सीरीज बैडमिंटन चैंपियनशिप के सेमीफाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं। उन्होंने
क्वॉर्टर फाइनल में जर्मनी की जुलियन शेंच को हराया।

दुनिया में सातवें नंबर की साइना ने जुलियन को केवल 27 मिनट में 2।-8, 21-14 से मात दी। सेमीफाइनल में उनका मुकाबला डेनमार्क की टाइनी रासमुसेन से होगा, जो दुनिया की पूर्व नंबर एक खिलाड़ी हैं। रासमुसेन ने वर्ल्ड चैंपियन और छठी वरीय लान लु को 16-21, 23-21, 21-11 से हराया।

पूर्व ऑल इंग्लैंड चैंपियन और राष्ट्रीय कोच पुलेला गोपीचंद ने साइना की जीत पर कहा कि यह बेहतरीन जीत थी। गोपीचंद ने सेमीफाइनल मैच के बारे में कहा कि साइना अच्छी स्थिति में है हालांकि रासमुसेन के खिलाफ उनका 0-2 का रेकॉर्ड है। उन्होंने कहा कि साइना ने अपने खेल में अब काफी सुधार किया है। वह अपने स्ट्रोक पर काम कर रही है। रासमुसेन के खिलाफ वह फायदे में दिखती है।

Saturday, March 13, 2010

हरिपुर में रूस के सहयोग से प्रस्तावित परमाणु संयंत्र

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 पश्चिम बंगाल के हरिपुर में रूस के सहयोग से प्रस्तावित परमाणु संयंत्र का ममता बनर्जी ने जोरदार विरोध शुरू कर दिया है। एक तरफ जहां हैदराबाद हाउस में पुतिन मनमोहन सिंह के साथ परमाणु ऊर्जा सहयोग पर सहमति बनाकर बंगाल में नाभिकीय ऊर्जा रिएक्टर के लिए मार्ग खोल रहे थे, वहीं दीदी सरकार को इससे दूर रहने के लिए आगाह कर रही थीं। ममता का कहना है कि अगर सरकार इस पर आगे बढ़ी तो वह एक और नंदीग्राम होने से नहीं रोक सकती। उनके अनुसार, खेती योग्य जमीन जाने से किसानों में विरोध पनपना शुरू होगा। उन्होंने अभी से ही आवाज बुलंद करना शुरू कर दिया है। तृणमूल नेता प्रधानमंत्री से बातचीत कर इस संयंत्र को रोकने की दरख्वास्त करेंगी। वहीं हरिपुर के सांसद सुबिंदो अधिकारी ने भी शुक्रवार को कहा, किसानों को परियोजना कतई भी स्वीकार्य नहीं है। उनका आरोप है कि परमाणु ऊर्जा विभाग की तरफ से इस स्थान का ना तो सर्वेक्षण हुआ है और ना ही उनकी शिकायत को वह गंभीरता से ले रहा है। हरिपुर में प्रस्तावित इस परमाणु परियोजना में रूस ने दिलचस्पी दिखाई है और सरकार पर इसे आगे बढ़ाने का दबाव भी है। रूस भारत में तकरीबन 15000 मेगावाट परमाणु ऊर्जा क्षमता तक संयंत्र का विकास करना चाहता है। इसमें हरिपुर को काफी अहम माना जा रहा है। वहीं वामपंथियों ने हरिपुर पर उठ रहे विवाद को और तूल देने की राजनीति शुरू कर दी है। हरिपुर की वजह से ममता और कांग्रेस में टकराव हो जाए माकपा की रणनीति यही है

34 जिलों में नक्सली राज

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केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने शुक्रवार को माना कि देश के 34 जिलों को नक्सलवादी नियंत्रित करते हैं, जबकि करीब दो सौ जिलों में उनकी मौजूदगी है। उन्होंने नक्सली समस्या को जिहादी आतंकवाद से ज्यादा गंभीर बताते हुए भरोसा दिलाया कि यूपीए-2 सरकार का कार्यकाल समाप्त होने से पहले नक्सली समस्या से निजात पा ली जाएगी। इंडिया टुडे कान्क्लेव में गृह मंत्री ने कहा कि शेख हसीना के सत्ता में आने के बाद बांग्लादेश से उग्रवाद से निबटने के लिए शानदार सहयोग मिल रहा है, लेकिन नेपाल में अभी भी भारत विरोधी गतिविधियां पनप रही हैं। उन्होंने माओवादियों के खिलाफ सुरक्षा बल के प्रयोग को न्यायोचित बताया। चिदंबरम ने कहा कि माओवादियों का लक्ष्य सत्ता पर कब्जा करने का है। उन्होंने माओवादियों को वार्ता की सरकार की पेशकश का जिक्र करते हुए सवाल किया कि आखिर माओवादी क्यों एक सामान्य सा बयान नहीं दे रहे हैं कि वे हिंसा का परित्याग कर रहे हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार का कार्यकाल पूरा होने से पहले नक्सल प्रभावित इलाकों पर नियंत्रण बहाल करने के बाद वहां विकास का मार्ग प्रशस्त किया जाएगा। पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद पर चिदंबरम ने कहा कि लश्कर, हिज्बुल मुजाहिदीन, जमात उद दावा और अल बद्र जैसे संगठनों को पाक के सरकारी तत्व मदद कर रहे हैं। उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि युद्ध कोई विकल्प नहीं है। इसीलिए हमें निश्चित तौर पर बातचीत करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पिछले महीने दोनों देशों के विदेश सचिवों के बीच हुई बातचीत से कुछ भी हासिल नहीं हुआ। उधर, पाकिस्तानी उच्चायुक्त शाहिद मलिक ने गृहमंत्री के साथ वाकयुद्ध के दौरान कहा कि भारत में आतंकवादी घटनाओं में पाकिस्तान के सरकारी तत्व शामिल नहीं हैं। चिदंबरम ने पाक उच्चायुक्त के दावों को यह कहते हुए तत्काल खारिज कर दिया कि भारत ने जिन संदिग्धों की सूची सौंपी है, अगर पाकिस्तान उनकी आवाज के नमूने दे देता है तो इसकी जांच की जा सकती है। उन्होंने कहा कि 26 नवंबर के हमलावरों और पाकिस्तान में उनके आकाओं की आवाज के रिकार्ड का अमेरिकी प्रयोगशाला में मिलान किया जा सकता है। तब हमें पता लग जाएगा कि वह व्यक्ति सरकारी तत्व है या नहीं। गृह मंत्री ने कहा कि अगर हम स्वीकार भी कर लें कि हमलों के पीछे सरकारी तत्वों का हाथ नहीं है तो क्या पाकिस्तान का यह दायित्व नहीं है कि वह उन गैर सरकारी तत्वों पर नियंत्रण या उनका सफाया करे, जो उसकी धरती से आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। यह पूछे जाने पर कि अगर 26 नवंबर की तरह का हमला फिर से हुआ तो भारत का क्या जवाब होगा, इस पर चिदंबरम ने कहा कि अगर ठोस रूप में इसे स्थापित किया जा सका कि यह पाकिस्तानी धरती से हुआ है, तो हम तेजी से निर्णायक कार्रवाई करेंगे। क्या यह सैन्य विकल्प होगा, चिदंबरम ने कहा कि जब हम तेजी से निर्णायक कार्रवाई करेंगे, तब आप उस पर टिप्पणी कर सकते हैं

Wednesday, March 10, 2010

राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक पर सहमति

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राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक पर सहमति की मोहर लगना एक उल्लेखनीय राजनीतिक घटना है, लेकिन जब तक यह विधेयक कानून का रूप नहीं ले लेता तब तक इसे ऐतिहासिक कहना सही नहीं होगा। इसी तरह इस पर संतोष नहीं जताया जा सकता कि आखिरकार यह विधेयक राज्यसभा से पारित हो गया, क्योंकि भारतीय राजनीति की तस्वीर बदलने वाले इस विधेयक को जिस गरिमा के साथ पारित होना चाहिए था उसका अभाव नजर आया। यह सामान्य बात नहीं कि विधेयक पारित कराने के लिए सदन में मार्शल बुलाने पड़े। इतने महत्वपूर्ण विधेयक को पारित कराने के लिए ताकत का सहारा लेने की विवशता से यथासंभव बचा जाना चाहिए था। आखिर डेढ़ दशक से लंबित इस विधेयक पर आम सहमति कायम करने की एक और कोशिश क्यों नहीं की गई? ध्यान रहे कि अभी तक यह विधेयक पारित न हो पाने के पीछे मूल कारण आम सहमति का अभाव ही बताया जाता था। आखिर अचानक इतनी जल्दी क्यों पड़ गई कि सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग भी ठुकरा दी गई? क्या यह विचित्र नहीं कि जिस कार्य को महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम बताया जा रहा है उस पर प्रधानमंत्री को यह सफाई देनी पड़ रही है कि वह अल्पसंख्यक और अनुसूचित जाति एवं जनजाति विरोधी नहीं है? सत्तापक्ष और विशेष रूप से कांग्रेस इससे उत्साहित हो सकती है कि अंतत: उसके नेतृत्व वाली केंद्र सरकार महिला आरक्षण विधेयक को आगे बढ़ाने में सहायक हुई, लेकिन उसने जिस अभूतपूर्व आपाधापी में यह सफलता हासिल की उससे कुछ समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। कुछ समस्याओं का सामना तो उसे ही करना पड़ सकता है, क्योंकि लालू यादव और मुलायम सिंह संप्रग सरकार से समर्थन वापस लेने पर अडिग दिख रहे हैं। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि महिला आरक्षण विधेयक के जरिये भारतीय महिलाओं को सीधे एक ऐसे उच्च स्थान पर आसीन होने का अवसर मिलने जा रहा है जहां तक पहुंचना किसी के लिए भी मुश्किल है। विधानमंडलों में 33 प्रतिशत महिलाओं के पहुंचने से देर-सबेर शासन और समाज में सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि इससे आम महिलाओं की समस्त समस्याओं का समाधान हो जाएगा। सच तो यह है कि यह विधेयक आम भारतीय महिलाओं की समस्याओं का एक हद तक ही समाधान करता हुआ दिख रहा है, क्योंकि उनकी ज्यादातर समस्याएं पुरुष प्रधान समाज के रवैये के चलते हैं। यह कहना कठिन है कि विधानमंडलों में अधिक संख्या में महिलाओं के पहुंचने से पुरुषों की मानसिकता में कोई उल्लेखनीय तब्दीली आएगी। महिला आरक्षण विधेयक जिस माहौल में और जिन आशंकाओं के साथ पारित हुआ उससे आम महिलाओं के प्रति दुराग्रह बढ़ने का भी अंदेशा है। केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसा न होने पाए। इसी के साथ उसे इस पर भी विचार करना होगा कि जो महिलाएं अधिकारों से वंचित और उपेक्षित हैं उनकी समस्याओं का समाधान किस तरह प्राथमिकता के आधार पर हो

परमाणु सहयोग समझौता

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अमेरिका के साथ हुआ चर्चित परमाणु सहयोग समझौता 2008 में लागू हुआ। इस प्रस्ताव के पुनरीक्षण के बाद अमेरिकी कांग्रेस ने भारतीय संसद में मंजूरी के लिए बुश प्रशासन को अनुमति दी थी, मगर इस रवायत के उलट मनमोहन सिंह सरकार संसद के दोनों सदनों को दरकिनार करके एक ऐसा कानून पारित कराना चाहती है, जिससे भविष्य में भोपाल गैस जैसी दुर्घटना होने पर इसकी जिम्मेदारी विदेशी कंपनियों के बजाय सरकार अपने ऊपर ले ले। सिविल लाइबेलिटी फॉर न्युक्लियर डैमेज बिल में ऐसी मांग अमेरिका की उन प्राइवेट कंपनियों द्वारा की जा रही है जो फ्रांस और रूसी कंपनियों के मुकाबले सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां नहीं हैं। ये अमेरिकी कंपनियां यह भी चाहती हैं कि किसी तरह की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष क्षति होने की सूरत में की जाने वाली भरपाई में भारत सरकार सब्सिडी दे। गंभीर दुर्घटनाओं के बाद के वित्तीय परिणामों के लिए इन विदेशी कंपनियों ने इस बिल में भारत सरकार को ढाल बनाने की कोशिश की है। जिसके बाद प्राथमिक तौर पर किसी भी अनहोनी की जिम्मेदारी इन विदेशी कंपनियों की जगह सरकार की होगी। प्रावधान के मुताबिक ये कंपनियां रेडियोधर्मी तत्वों से होने वाले गंभीर नतीजे की सूरत में 2250 करोड़ और छोटी दुर्घटना होने पर महज 300 करोड़ रुपये बतौर मुआवजा देने को बाध्य होंगी। गौरतलब है कि भारत में कारोबार करने के लिए इन विदेशी कंपनियों को भारतीय करदाताओं के पैसे से सब्सिडी दी जाएगी और इन पैसों से प्रत्येक विदेशी कंपनी कई करोड़ डालर कमाई करेगी, फिर भी भारत सरकार इस विशेष अनुबंध पर सहमत हो गई है। खास तौर पर अमेरिकी, फ्रांसीसी और रूसी कंपनियों के लिए जो एक या दो संयंत्र लगाने जा रही हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो प्रत्येक कंपनी भारत से अरबों डालर कमाने के लिए मुंह बाए खड़ी है, जो किसी तरह की अनहोनी की सूरत में महज कुछ रुपये जुर्माना चुकाकर बरी हो जाएंगी। आश्चर्यजनक बात यह है कि भोपाल दुर्घटना के कटु अनुभवों के बावजूद भारत सरकार करदाताओं की गाढ़ी कमाई के पैसे से सब्सिडी देकर इन विदेशी कंपनियों को प्रश्रय देना चाहती है। सवाल यह है कि देशहित को ताक पर रखकर आखिर क्यों सरकार इन कंपनियों की वित्तीय देनदारी अपने सिर लेना चाहती है? क्यों सरकार इन विदेशी कंपनियों को खुले बाजार की प्रतिस्पद्र्धा से बचाने के लिए आगे आ रही है? इतना ही नहीं इन विदेशी कंपनियों के निर्बाध कारोबार के लिए इनकी हर शर्त मानकर हमारी सरकार बेहद महंगे दरों पर बिजली खरीदेगी और अपनी ओर से सब्सिडी देगी। परमाणु संयंत्र की स्थापना के लिए सरकार ने खास तौर पर अमेरिकी, फ्रांसीसी और रूसी कंपनियों के लिए स्थान चिन्हित करके जमीन आरक्षित कर दिया है। परमाणु करार के बाद अमेरिका को खुश करने के लिए भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय बाजार की कड़ी प्रतिस्पद्र्धा और पारदर्शिता को दरकिनार करके अरबों डालर के हथियार खरीदने के लिए एक करार पर दस्तखत किया है। प्राइस-एंडरसन एक्ट के मुताबिक अमेरिका में किसी तरह की परमाणु दुर्घटना होने पर इन कंपनियों के सिर पर भारी जुर्माने की तलवार लटकती रहती है, मगर भारत में इन कंपनियों के संयंत्र में ऐसी दुर्घटना होने पर वित्तीय बोझ अपने सिर लेकर हमारी सरकार इन कंपनियों को दोहरा लाभ पहुंचाना चाहती है। प्राइस-एंडरसन लाइबिलिटी सिस्टम के मुताबिक किसी भी तरह की परमाणु दुर्घटना होने पर परमाणु संयंत्र चलाने वाली कंपनी पर बीमा सहित अन्य देनदारी लगभग 1050 करोड़ रुपये की बनती है। ऐसी अनहोनी के बाद जब इन कंपनियों पर जब 1050 करोड़ की देनदारी बनती है तभी अमेरिकी सरकार उसमें सहयोग करती है। अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक इन कंपनियों के साथ भारत का करार असंगत है। मिसाल के तौर पर जापान के साथ तय करार के मुताबिक दुर्घटना होने पर उनकी देनदारी 1.33 अरब डालर की होगी। ओईसीडी के पेरिस समझौते के मुताबिक देनदारी 1.5 अरब यूरो यानी कंपनी संचालक के कुल पचास फीसदी शेयर के बराबर होगी। अमेरिका में मौजूद 436 परमाणु रिएक्टरों में से कोई भी किसी अंतरराष्ट्रीय संधि से नहीं बंधा है। चीन, जापान, अमेरिका किसी पर इस तरह की कोई जिम्मेदारी नहीं है। ऐसे में भारत सरकार का यह फैसला बेहद अजीबोगरीब और शर्मनाक है कि वह परमाणु दुर्घटना की जिम्मेदारी अपने सिर पर लेगी और ये विदेशी कंपनियां मनचाहे तरीके से मोटा मुनाफा कमाने के लिए आजाद होंगी। 

Tuesday, March 9, 2010

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सूचना अधिकार की परिधि से बाहर रहने की आवश्यकता

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 प्रधान न्यायाधीश का कार्यालय खुद को सूचना अधिकार के दायरे से बाहर रखने पर अड़ा हुआ है। सूचना आयोग, उच्च न्यायालय और फिर उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ के फैसले को न मानने का औचित्य इसलिए और भी नहीं समझ में आता, क्योंकि प्रधान न्यायाधीश कार्यालय से कुछ सामान्य सूचनाएं सार्वजनिक करने की ही अपेक्षा की जा रही है। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संपत्ति का विवरण अथवा न्यायाधीशों की पदोन्नति की प्रक्रिया के बारे में जानकारी हासिल करने की इच्छा का तो सम्मान किया जाना चाहिए। यह लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है कि उच्चतम न्यायालय जैसे नियम-कानून औरों के लिए चाहता है उनसे खुद बचे रहना चाहता है। यह समझना कठिन है कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संपत्ति सार्वजनिक होने से कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा? जहां तक कोलेजियम व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की बात है तो ऐसा तो अनिवार्य रूप से होना चाहिए। देश को यह जानने का अधिकार है कि न्यायाधीशों का चयन और उनकी पदोन्नति किस आधार पर हो रही है? आम जनता को इस अधिकार से वंचित रखने के पक्ष में तमाम तर्क दिए जा सकते हैं, लेकिन कोई भी तर्क पारदर्शी व्यवस्था की महत्ता को नकार नहीं सकता। यह तर्क तो निराधार ही है कि प्रधान न्यायाधीश की ओर से सूचनाओं का खुलासा करने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित होगी। सच तो यह है कि ऐसा न करने से उसकी स्वतंत्र छवि पर असर पड़ेगा, क्योंकि न्यायिक स्वतंत्रता व्यक्तिगत विशेषाधिकार नहीं है और न हो सकती है। आखिर उच्चतम न्यायालय ऐसी प्रतीति क्यों करा रहा है कि उसे कुछ ऐसे विशेष अधिकार मिलने चाहिए जिससे वह गोपनीयता के आवरण में रह सके? उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील दायर करने का निर्णय इसलिए भी चकित करता है, क्योंकि एक तो यह फैसला न्याय के नैसर्गिक सिद्धांतों के खिलाफ है और दूसरे देश के जाने-माने न्यायविदें की मान्यता का निरादर करने वाला है। नि:संदेह यह एक अच्छा उदाहरण नहीं होगा जब उच्चतम न्यायालय अपने ही खिलाफ मामले का निपटारा खुद करेगा। क्या यह विचित्र नहीं कि जब हर स्तर पर पारदर्शी व्यवस्था की अपेक्षा की जा रही है तब उच्चतम न्यायालय अपने लिए अपारदर्शी व्यवस्था चाह रहा है। ऐसी चाहत आम जनता के मन में अनावश्यक सवाल और संदेह ही पैदाकरेगी। यह ठीक नहीं कि उच्चतम न्यायालय को जब स्वेच्छा से आगे बढ़कर अनुकरणीय उदाहरण पेश करना चाहिए तब वह ठीक इसका उलटा कर रहा है। यदि उच्चतम न्यायालय खुद को सूचना अधिकार के दायरे से बाहर रखने में सफल हो जाता है तो यह इस अधिकार पर किया जाने वाला एक प्रहार ही होगा। इसका असर अन्य क्षेत्रों में भी पड़ सकता है। ध्यान रहे कि उच्चतम न्यायालय की तरह से अनेक सरकारी विभाग इस कोशिश में हैं कि वे सूचना अधिकार के दायरे से बाहर हो सकें। बेहतर होगा कि उच्चतम न्यायालय अपने इस निष्कर्ष पर नए सिरे से विचार करे कि उसे सूचना अधिकार की परिधि से बाहर रहने की आवश्यकता है