विशाल हेड्रन कोलाइडर पर काम करने वाले वैज्ञानिकों ने प्रोटोन के कणों को एक साथ टकराया है जिससे रिकॉर्ड तोड़ने वाले ऊच्च दर्जे के ऊर्जा तत्व पैदा हुए हैं.
इस प्रयोग के ज़रिए जो ऊर्जा तत्व निकले हैं वो पिछले बार के प्रयोगों से साढ़े तीन गुना ज़्यादा हैं.
इस यूरोपीय मशीन पर इस प्रयोग के ज़रिए ऐसे काम की शुरूआत हो रही है जिससे भौतिक विज्ञान में नई खोज की उम्मीद की जा रही है.
मंगलवार को जब यह प्रयोग किया गया तो इसके नियंत्रण कक्ष में इससे जुड़े तमाम लोगों ने ज़बरदस्त ख़ुशियाँ मनाईं.
ये गहन शोध सात करोड़ खरब इलेक्ट्रोन वोल्ट (टीइवी) के टकराव के साथ शुरू हुआ है और इसकी गहन जाँच-पड़ताल में अब 18 से 24 महीनों तक का समय लगेगा.
वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे प्रकृति और ब्रह्मांड के कुछ रोचक रहस्य खुलेंगे कि आख़िर इसकी उत्पत्ति कैसे हुई.
मंगलवार के इस प्रयोग को कुछ वैज्ञानिकों ने विज्ञान के क्षेत्र में एक नए युग की शुरूआत क़रार दिया.
लेकिन शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि इस महाप्रयोग से हासिल होने वाले आंकड़ों के अध्ययन और जांच पड़ताल में समय लगेगा और लोगों को तुरंत नतीजे की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए.
नतीजों में देर
इस महाप्रयोग के प्रवक्ता गुइडो टोनेली ने कहा, "मुख्य खोज उसी समय सामने आएगी जब हम अरबों घटनाओं को पहचानें और उनमें कोई विरल और विशेष घटना नज़र आए जो पदार्थ का नया आयाम पेश करे."
उन्होंने बीबीसी से कहा, "यह कल ही नहीं होने वाला है. इसके लिए महीनों और वर्षों के धैर्यपूर्ण काम की ज़रूरत है."
यह महाप्रयोग आज तक का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग है.
इसके लिए स्विट्ज़रलैंड और फ़्रांस की सीमा पर अरबों डॉलर लगाकर पिछले 20 साल में दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला स्थापित की गई है.
विशाल हेड्रन कोलाइडर में अणुओं को लगभग प्रकाश की गति से टकराया गया. इस पूरे महाप्रयोग के ज़रिए मिलने वाली जानकारी से ब्राह्मांड उत्पत्ति की 'बिग बैंग' थ्योरी को समझने में भी मदद मिलने की उम्मीद की जा रही है.
इस प्रयोग के लिए प्रोटॉनों को 27 किलोमीटर लंबी गोलाकार सुरंगों में दो विपरीत दिशाओं से भेजा गया.
इनकी गति प्रकाश की गति के लगभग बराबर थी और वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार प्रोटोन ने एक सेकंड में 11 हज़ार से भी अधिक परिक्रमा पूरी की.
इसी प्रक्रिया के दौरान प्रोटॉन कुछ विशेष स्थानों पर आपस में टकराए. अनुमान लगाया गया है कि प्रोटोन के टकराने की 60 करोड़ से भी ज़्यादा घटनाएँ हुईं और इन्हीं घटनाओं को दर्ज किया गया.
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस दौरान प्रति सेकंड सौ मेगाबाइट से भी ज़्यादा आँकड़े एकत्र किए जा सके हैं.
उनका कहना है कि प्रोटोन के टकराने की घटना सबसे दिलचस्प है और इसी से ब्रह्मांड के बनने का रहस्य खुलने अनुमान है
इस परियोजना में शिरकत कर रहे दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सात्यकी भटटाचार्य ने नई दिल्ली में कहा कि यह 10 अरब डालर की परियोजना है। इसे विश्व का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग माना जा रहा है। एलएचसी में सैद्धांतिक कणों और सूक्ष्म बलों के बारे में कई खुलासे करने की अपार संभावनाएं हैं। पार्टिकल भौतिकी के मानक माडल में हिग्स बोसॉन का बहुत महत्व है।
भट्टाचार्य ने कहा कि इस हिग्स बोसान की तलाश में वैज्ञानिक लगे हैं जो माडल की एक ऐसी कड़ी है जिसे प्रयोग के दौरान वैज्ञानिक हासिल नहीं कर पा रहे हैं। सर्न के एक वैज्ञानिक ने कहा कि बिजली की आपूर्ति ट्रिप होने के बाद पहली बार तंत्र को फिर से व्यवस्थित किया गया और दूसरी बार इस क्षेत्र में बिजली आपूर्ति में बाधा के कारण क्वेंच प्रोटेक्शन सिस्टम को बंद करना पड़ा।
प्रवाहों (पुंजों) को फिर से गति प्रदान करने में इस कारण से कुछ घंटों की देर हुई और चरण दर चरण इसे बढ़ाकर साढ़े तीन टेरा इलेक्ट्रान वोल्ट तक ले जाया गया। दोनों पुंजों को साढ़े तीन टेरा इलेक्ट्रान वोल्ट के स्तर तक स्थिर करने में वैज्ञानिकों को समय लगा और अंतत: भारतीय समयानुसार शाम 4.35 बजे प्रोटान पुंजों की टक्कर कराई गई।
प्रोटान के पुंज जब टकराते हैं तब प्रत्येक सेकेंड में सैकड़ों टक्कर होती है और प्रयोग स्थल पर स्थापित शक्तिशाली डिटेक्टर हर टक्कर के संबंध में आंकड़े इकटठा करेंगे। भट्टाचार्य ने कहा कि आंकड़ों के विश्लेषण से हिग्स बोसान कण की खोज हो सकती है। इसे ईश्वरीय कण भी कहते हैं। माना जाता है कि जब ब्रह्मांड की उत्पति हुई, इस समय हिग्स बोसान कण मौजूद था।
सर्न के महानिदेशक राल्फ हयूअर ने कहा कि किसी भी वैज्ञानिक खोज से पहले महीनों का समय लगने की संभावना है। ऐसा इसलिए है कि टक्करों के संबंध में विशाल संख्या में आंकड़े इकटठा हुए हैं जिनका विश्लेषण करने में कंप्यूटरों को लंबा समय लगेगा।
विश्व में फैले कई अनुसंधान केंद्रों में इन आंकड़ों का विश्लेषण किया जाएगा। टाटा इंस्टीटयूट आफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) भी एक ऐसा ही केंद्र है जहां सुपरकंप्यूटिंग की सुविधाएं हैं। इस केंद्र में भी टक्कर संबंधी आंकड़ों का विश्लेषण होगा।
भट्टाचार्य ने कहा कि इस हिग्स बोसान की तलाश में वैज्ञानिक लगे हैं जो माडल की एक ऐसी कड़ी है जिसे प्रयोग के दौरान वैज्ञानिक हासिल नहीं कर पा रहे हैं। सर्न के एक वैज्ञानिक ने कहा कि बिजली की आपूर्ति ट्रिप होने के बाद पहली बार तंत्र को फिर से व्यवस्थित किया गया और दूसरी बार इस क्षेत्र में बिजली आपूर्ति में बाधा के कारण क्वेंच प्रोटेक्शन सिस्टम को बंद करना पड़ा।
प्रवाहों (पुंजों) को फिर से गति प्रदान करने में इस कारण से कुछ घंटों की देर हुई और चरण दर चरण इसे बढ़ाकर साढ़े तीन टेरा इलेक्ट्रान वोल्ट तक ले जाया गया। दोनों पुंजों को साढ़े तीन टेरा इलेक्ट्रान वोल्ट के स्तर तक स्थिर करने में वैज्ञानिकों को समय लगा और अंतत: भारतीय समयानुसार शाम 4.35 बजे प्रोटान पुंजों की टक्कर कराई गई।
प्रोटान के पुंज जब टकराते हैं तब प्रत्येक सेकेंड में सैकड़ों टक्कर होती है और प्रयोग स्थल पर स्थापित शक्तिशाली डिटेक्टर हर टक्कर के संबंध में आंकड़े इकटठा करेंगे। भट्टाचार्य ने कहा कि आंकड़ों के विश्लेषण से हिग्स बोसान कण की खोज हो सकती है। इसे ईश्वरीय कण भी कहते हैं। माना जाता है कि जब ब्रह्मांड की उत्पति हुई, इस समय हिग्स बोसान कण मौजूद था।
सर्न के महानिदेशक राल्फ हयूअर ने कहा कि किसी भी वैज्ञानिक खोज से पहले महीनों का समय लगने की संभावना है। ऐसा इसलिए है कि टक्करों के संबंध में विशाल संख्या में आंकड़े इकटठा हुए हैं जिनका विश्लेषण करने में कंप्यूटरों को लंबा समय लगेगा।
विश्व में फैले कई अनुसंधान केंद्रों में इन आंकड़ों का विश्लेषण किया जाएगा। टाटा इंस्टीटयूट आफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) भी एक ऐसा ही केंद्र है जहां सुपरकंप्यूटिंग की सुविधाएं हैं। इस केंद्र में भी टक्कर संबंधी आंकड़ों का विश्लेषण होगा।
टक्कर के आंकड़ों का विश्लेषण हिग्स बोसॉन की खोज में मदद कर सकता है। हिग्स बोसॉन को गॉड पार्टिकल भी कहा जाता है। माना जाता है कि ब्रह्मांड के निर्माण से पहले यह मौजूद था।