Wednesday, April 14, 2010
एनपीटी पर मनमोहन ने दिखाया आइना
वाशिंगटन अमेरिकी राजधानी में सोमवार से शुरू हुए दो दिवसीय परमाणु सुरक्षा सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नाभिकीय तस्करी को लेकर पाकिस्तान पर निशाना साधा। उन्होंने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) जैसे भेदभाव वाले समझौते को भारत पर लादने की कोशिश में जुटे विश्व समुदाय को भी आइना दिखाने में कोई चूक नहीं की। पिछले पांच दशक में यहां पहली बार जुटे 47 राष्ट्राध्यक्षों की मौजूदगी में सिंह ने दो टूक अंदाज में खेद जता दिया कि वैश्विक परमाणु अप्रसार की व्यवस्था अपने मकसद में पूरी तरह नाकाम साबित हुई है। अमेरिकी राष्ट्रपति की पहल पर आयोजित परमाणु सुरक्षा सम्मेलन में सिंह जब दुनिया के अहम मुल्कों के प्रमुखों से मुखातिब हुए तो उन्होंने नाभिकीय अनुशासन पर भारत की बेदाग छवि का ब्योरा पेश तो किया ही, साथ ही यह भी बता दिया कि परमाणु प्रसार रोकने की कोशिश बिना किसी भेदभाव के होनी चाहिए और इसका मकसद पूर्ण निरस्त्रीकरण का होना चाहिए। पाकिस्तान के ही संदर्भ में मनमोहन ने कहा कि परमाणु सुरक्षा का दायित्व सबसे पहले इसका भंडार रखने वाले मुल्क का ही है। इसके लिए जरूरी है कि वह मुल्क पूरी तरह जिम्मेदारी से पेश आए। परमाणु सुरक्षा को लेकर चिंता जताने दुनिया भर से जुटे तमाम नेताओं के समक्ष प्रधानमंत्री ने यह कहने में कोई हिचक नहीं दिखाई कि परमाणु अप्रसार सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक व्यवस्था विफल हो चुकी है। फिर तत्काल पाक की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि कई देश गुपचुप तरीके से नाभिकीय हथियारों का जमावड़ा कर रहे हैं जो खासकर भारत की सुरक्षा के लिए खतरा है। यही नहीं, परमाणु सामग्री की कालाबाजारी में पाक के संलिप्तता का मामला उठाने से भी मनमोहन नहीं चूके। उन्होंने कह दिया कि संवदेनशील परमाणु तकनीक आतंकियों के हाथ लगने से बचाने और नाभिकीय सामग्री की तस्करी को रोकने के लिए पूरे विश्व को एकजुट होना चाहिए। जाहिर है उनका इशारा चीन के साथ परमाणु सामग्री की कालाबाजारी की पाकिस्तानी कारस्तानी के उस खुलासे की ओर था जो खुद पाक के वैज्ञानिक एक्यू खान ने अपने खत में किया था। सिंह ने भारत की परमाणु ऊर्जा जरूरतों को भी रेखांकित करने का पूरा ख्याल रखा। मनमोहन को इस बात का पूरा ख्याल था कि सम्मेलन में मौजूद कई मुल्कों से भारत को परमाणु ऊर्जा को लेकर उम्मीदें हैं। कजाकिस्तान के राष्ट्रपति से तो उन्होंने अलग मुलाकात कर परमाणु करार को मूर्तरूप देने के लिए अंतिम औपचारिकता पूरी करने की दिशा में अहम बातचीत की। यही वजह है कि अपने भाषण में परमाणु मामले में भारत की अनुशासित पृष्ठभूमि का बखान किया
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