Thursday, April 15, 2010

गुरुवार को जब श्रीहरिकोटा से एक जीएसएलवी-डी3 रॉकेट जीसैट-4 सैटलाइट को लेकर उड़ान भरेगा और नीले आसमान में गुम हो जाएगा, तो भारत एक ऐसे 
सफर पर चल पड़ेगा, जिसकी कामयाबी दुनिया भर के लिए मिसाल बन जाएगी। हम उन चंद देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होंगे, जिनका स्पेस पर राज चलता है। बड़ा धमाका जीसैट-4 2220 किलो का कम्युनिकेशन सैटलाइट है। यह 35,786 किलोमीटर दूर जियो सिंक्रोनस (स्टेटिक) ऑर्बिट में जगह बनाएगा। ऐसे ऑर्बिट में दो टन से भारी सैटलाइट पहुंचाने वाले चुनींदा देशों में भारत शामिल हो जाएगा। सैटलाइट लॉन्च के कारोबार में भारत सबसे पसंदीदा देश बन सकता है।

जियो सिंक्रोनस: सैटलाइट का प्लेसमेंट दो तरीके से हो सकता है- सन सिंक्रोनस और जियो सिंक्रोनस। सन सिंक्रोनस सैटलाइट्स सूरज की तरह धरती का चक्कर लगाते हैं और धरती पर किसी भी पॉइंट से 24 घंटे में एक बार गुजरते हैं। रिमोट सेंसिंग में ऐसे सैटलाइट्स इस्तेमाल होते हैं। उसके उलट जियो सिंक्रोनस सैटलाइट्स धरती के साथ-साथ घूमते हैं और इसलिए लगातार एक ही जगह टिके नजर आते हैं। कम्युनिकेशन, जासूसी और टीवी ब्रॉडकास्टिंग के लिए इनका इस्तेमाल होता है। जीसैट-4 इसरो का 10वां जियो सिंक्रोनस सैटलाइट्स है।


तकनीकी कमाल सबसे बड़ी बात यह कि पहली बार भारत खुद अपना क्रायोजेनिक इंजन इस्तेमाल करने जा रहा है। दुनिया के सिर्फ पांच देशों- अमेरिका, रूस, चीन, जापान और फ्रांस के पास यह तकनीक है।

क्या है क्रायोजेनिक तकनीक: क्रायो का मतलब है बहुत ठंडा। इस तकनीक में बेहद कम टेम्परेचर पर लिक्विड में तब्दील की गई हाइड्रोजन का इस्तेमाल किया जाता है। गर्म होने पर यह गैस तेजी से फैलती है और रॉकेट को जबर्दस्त बूस्ट देती है। सॉलिड फ्यूल से यह कई गुना ताकतवर होती है। लंबी दूरी के और भारी रॉकेटों के लिए यह तकनीक जरूरी है। रॉकेट टैक्नॉलजी में यह सबसे बड़ा कदम है।

लंबा सफर: पहले भारत को रूस से यह तकनीक मिल रही थी। 1998 में पोखरण एटमी टेस्ट के बाद अमेरिका ने भारत पर पाबंदी लगवा दी और रूस का रास्ता बंद हो गया। वैसे भारत उससे पहले से इस तकनीक पर काम कर रहा था। आखिरकार इसे आजमाने का मौका आ गया है।

अपना गगनः इस लॉन्च के साथ इंडिया का एक और सपना हकीकत में बदलने लगेगा। वह सपना है अमेरिकन जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) की तर्ज पर एक रीजनल पोजिशनिंग सिस्टम बनाने का, जिसका नाम गगन रखा गया है। गगन के तहत 4 सैटलाइट्स छोड़े जाएंगे और यह 2014 से काम करने लगेगा।

क्या है पोजिशनिंग सिस्टम: संसार में किसी भी चीज की लोकेशन जानने के लिए लोकेटिंग सिस्टम चाहिए, जो पूरी दुनिया के भौगोलिक इलाके को एक ग्रिड (आड़ी और तिरछी रेखाओं के नेटवर्क) में देखे। यह काम सैटलाइट्स की सीरीज के जरिए किया जाता है। इसके बिना कम्युनिकेशन, ट्रैकिंग और ट्रैवल नामुमकिन है। इस कारोबार में जीपीएस का कब्जा है। यूरोप और रूस के बाद अब चीन भी इस सिस्टम पर काम कर रहा है।

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