Tuesday, April 13, 2010

केदारनाथ सिंह समेत सात ने ठुकराया शलाका सम्मान


 हिन्दी साहित्य अकादमी की ओर से कृष्ण बलदेव वैद को शलाका सम्मान से वंचित रखने के मामले ने अब तूल पकड़ लिया है। साहित्य जगत में इस सम्मान को लेकर नया विवाद प्रसिद्ध साहित्यकार केदारनाथ सिंह ने सम्मान लेने से इंकार कर खड़ा कर दिया है। इसका कारण उन्होंने हिन्दी साहित्य अकादमी की विश्वसनीयता पर खड़े हो रहे सवाल को ठहराया है।


साहित्यकार राजेन्द्र यादव ने केदारनाथ सिंह के निर्णय का समर्थन करते हुए कहा कि शलाका सम्मान की परंपरा को ही खत्म करना चाहिए। इसकी गरिमा पर जो धब्बा लगा है, उससे हिन्दी साहित्य के विद्वान बेहद आहत हैं। उन्होंने कहा कि इस बवाल के बाद यदि अकादमी कृष्ण बलदेव वैद को फिर से यह सम्मान देती भी है तो अपमान के बाद शायद ही वह इसे स्वीकार करने के लिए तैयार हों। राजेन्द्र यादव ने कहा कि किसी कथाकार को अपमानित करना देश के साहित्यकारों को रास नहीं आया है।


अकादमी की इस हरक त से वैद को शलाका सम्मान से नामित करने वाली समिति पर भी सवालिया निशान खड़े हो गए हैं । साहित्यकार विमल कुमार के मुताबिक अश्लीलता का बहाना बनाकर किसी साहित्यकार को अपमानित करने की हरकत को कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता है और यह हिन्दी साहित्य जगत के लिए अच्छी बात नहीं है। उन्होंने कहा कि इस प्रकरण में पुरस्कारों के चयन में राजनीति की बात खुलकर सामने आ गई है जो भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं है। सूत्रों की मानें तो वरिष्ठ लेखक क ृष्ण बलदेव वैद को शलाका सम्मान से इसलिए वंचित कि या गया क्योंकि उनके लेखन में कथित रूप से अश्लीलता थी।


लेकिन आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल का कहना है कि किसी लेखक की रचना के कुछ अंश पढ़कर इस तरह के आरोप लगाना कतई उचित नहीं है। पुरस्कार लेखक के समग्र रचनाकर्म को आधार बना कर दिया जाता है। इस तरह यह साफ है कि इस मुद्दे पर साहित्यकार एकजुट हो रहे हैं। हिन्दी साहित्य अकादमी के इतिहास में यह पहला मौका है जब केदारनाथ सिंह सहित सात साहित्यकारों ने पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया है।

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