Wednesday, April 14, 2010
अमेरिका में 12 अप्रैल से शुरू हो रहे परमाणु शिखर सम्मेलन में राष्ट्रपति बराक ओबामा विश्व को परमाणु हथियारों से सुरक्षित बनाने की दिशा में संजीदा पहल करना चाहते हैं। पिछली छह अप्रैल को ही अमेरिका ने परमाणु दृष्टिकोण समीक्षा नामक नीति जारी की है, जो एटमी हथियारों के प्रयोग संबंधी अमेरिकी रुख में क्रांतिकारी बदलाव का परिचायक है। ओबामा ने कहा है कि वह इन हथियारों के प्रयोग की आवश्यकता को न्यूनतम कर देना चाहते हैं, यहां तक कि आत्मरक्षा की स्थिति में भी। फिर आठ अप्रैल को अमेरिका ने रूस के साथ सामरिक अस्त्र कटौती संधि पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत दोनों देश अपनी मिसाइलों, विमानों आदि पर तैनात परमाणु हथियारों की संख्या 2002 में हुई ऐसी ही संधि के स्तर से 30 प्रतिशत घटा देंगे। वाशिंगटन में होने वाला परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन इसी श्रृंखला की कड़ी है जिसका दायरा अपेक्षाकृत ज्यादा वैश्विक है। अब यह चर्चा और चिंता परमाणु हथियार संपन्न देशों तक ही सीमित नहीं है इसलिए शिखर सम्मेलन का कलेवर व्यापक रखा गया है और इसमें हिस्सा लेने वाले 47 नेता घोषित परमाणु शक्तियों के साथ-साथ, अघोषित किंतु ज्ञात परमाणु शक्तियों वाले हैं। चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के लिए इसके अलग-अलग निहितार्थ हैं। भारत जहां अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच अपनी जिम्मेदार परमाणु शक्ति की पारंपरिक भूमिका को रेखांकित करेगा, वहीं पाकिस्तान की कोशिश होगी कि वह परमाणु हथियारों के प्रसार में अपनी कुख्यात भूमिका से किसी तरह पल्ला झाड़ सके और भारत की ही तरह नागरिक परमाणु ऊर्जा समझौते के लिए अमेरिका पर दबाव डाल सके। चीन, जिसने भारत के साथ असैन्य परमाणु समझौते का अनेक मंचों पर परोक्ष विरोध किया था, वैसा ही दर्जा पाने की पाकिस्तानी महत्वाकांक्षा का समर्थन करेगा। इस संदर्भ में अमेरिका का मकसद कहीं अधिक व्यापक है। पाकिस्तान भले ही रणनीतिक कारणों की बदौलत अमेरिका की उद्दंड राष्ट्रों की सूची (ईरान, इराक और उत्तर कोरिया) में आने से बच गया हो, लेकिन परमाणु प्रसार की समस्या में सबसे बड़ा योगदान उसी का है। अब्दुल कदीर खान का नेटवर्क इस संवेदनशील तकनीक को उत्तर कोरिया और ईरान तक पहुंचा चुका है। उसके परमाणु हथियारों के अलकायदा, तालिबान और भारत-विरोधी आतंकवादी शक्तियों तक पहुंचने का खतरा भी कम गंभीर और कम वास्तविक नहीं है। मौजूदा परमाणु सुरक्षा सम्मेलन में तीन मुद्दों पर ध्यान दिए जाने की संभावना है। परमाणु हथियारों को आतंकवादियों के हाथों से सुरक्षित रखने की व्यवस्था, उत्तर कोरिया और ईरान जैसे देशों को ऐसे हथियार बनाने से रोकना (परमाणु अप्रसार) और पहले से परमाणु-शक्तियों को अपने हथियारों की संख्या घटाने के लिए तैयार करना। पहले परमाणु हथियारों की संख्या घटाने और फिर धीरे-धीरे इन्हें अप्रचलित बना देने की बराक ओबामा की योजना भले ही मौजूदा हालात में अविश्वसनीय और अति-महत्वाकांक्षी हो, फिर भी यह आशावाद सुखद है। न्यू अमेरिका फाउंडेशन के अस्त्र एवं सुरक्षा कार्यक्रम के निदेशक विलियम डी हारटंग ने चेतावनी दी है कि भले ही अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और इंग्लैंड ने 1992 के बाद से परमाणु हथियारों का परीक्षण नहीं किया है, लेकिन आज भी दुनिया में 27 हजार परमाणु बम मौजूद हैं। इनमें से 95 फीसदी अमेरिका और रूस के पास हैं। परमाणु शिखर सम्मेलन के सामने मौजूद चुनौतियां कई स्तरों पर होंगी- पाकिस्तान और चीन जैसे देशों को अनुशासित करना, उत्तर कोरिया और ईरान जैसे परमाणु महत्वाकांक्षा रखने वाले देशों को एटम बम बनाने से रोकना, परमाणु हथियारों को सुरक्षित रखना और मौजूदा हजारों एटम बमों को सिलसिलेवार ढंग से कम करने वाली व्यवस्था बनाना। चुनौतियां बहुत मुश्किल है, लेकिन कोशिश करने में कोई बुराई नहीं है।
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