Sunday, May 2, 2010

सहकारी बैंकों को मजबूत बनाने की मुहिम

 देश के सहकारी बैंकों को मजबूत बनाने की मुहिम एक बार फिर पस्त होती नजर आ रही है। केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक की तरफ से राज्य स्तरीय सहकारी बैंकों को सुधारने की इस मुहिम में राज्य ही रोड़े अटका रहे हैं। कई राज्य सरकारें स्थानीय स्तर पर राजनीतिक दबाव के चलते अपने सहकारी सोसायटी कानून में बदलाव नहीं कर रही हैं। इससे केंद्र सरकार की तरफ से दी गई हजारों करोड़ रुपये की राशि का इस्तेमाल भी नहीं हो पा रहा है। आरबीआई के सूत्रों के मुताबिक तीन वर्षो तक समझाने-बुझाने के बाद 25 राज्यों ने अपने सहकारी सोसायटी कानून में बदलाव करने का समझौता आरबीआई से किया है। मगर दो-तीन वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी तक केवल 14 राज्यों ने ही इन कानून में संशोधन किए हैं। आरबीआई और राज्यों के बीच इस बारे में जो समझौता हुआ है उसके मुताबिक राज्य के सहकारी कानून में बदलाव के बाद ही उन्हें केंद्र की वित्तीय मदद मिलेगी। इस वित्तीय मदद से राज्य सहकारी बैंकों का इक्विटी आधार दुरुस्त करेंगे, उनके लिए ढांचागत सुविधाएं खड़ी करेंगे और इन बैंकों में पेशवर व योग्य अधिकारियों की नियुक्ति करेंगे। सूत्रों के मुताबिक मौजूदा कानून की वजह से राज्यों के सहकारी बैंकों पर बड़ी राजनीतिक हस्तियों और रसूख वालों का कब्जा है। इनके हाथ में राज्य स्तरीय सहकारी बैंकों में नियुक्ति करने, कर्ज दिलाने, निवेश फैसले करने जैसे अधिकार होते हैं। अगर कानून में संशोधन हो जाता है तो सहकारी बैंकों पर इनका कब्जा खत्म हो जाएगा। यही कारण है कि राजनीतिक तौर पर सहकारी कानून में संशोधन के प्रयास को लंबित किया जा रहा है। इससे सहकारी बैंकों में सुधार की पूरी कोशिश ही पस्त हुई जा रही है। सूत्रों के मुताबिक 25 राज्यों के साथ समझौता के बाद केंद्र सरकार ने नाबार्ड को 13,596 करोड़ रुपये उपलब्ध कराए हैं। इस राशि को राज्यों को सहकारी कानून में संशोधन के एवज में दिए जाने हैं। अभी तक इस राशि में से केवल 7,561.79 करोड़ रुपये ही इस्तेमाल किए गए हैं। इससे 12 राज्यों में 41,295 सहकारी बैंकों का पुनर्पूजीकरण भी किया गया है। ये आंकड़े साफ करते हैं कि जिन राज्यों ने वादे के मुताबिक सहकारी कानून में संशोधन किए हैं उनके सहकारी बैंकों को फायदा हो रहा है। केंद्र सरकार ने राज्यस्तरीय सहकारी बैंकों को सुधारने के लिए इस पैकेज का ऐलान प्रो. वैद्यनाथन कार्यदल की सिफारिशों के आधार पर किया था। दरअसल, आरबीआई धीरे-धीरे सभी सहकारी बैंकों पर वाणिज्यिक बैंकों जैसे बैंकिंग नियम लागू करना चाहता है। इसके लिए राज्यों के मौजूदा सहकारी कानून में संशोधन होना बेहद जरूरी है

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