Sunday, May 2, 2010

नक्सल ग्रस्त 33 जिलों के सांसदों की बैठक

केंद्रीय गृहमंत्री चिदंबरम और नक्सलवाद से ग्रस्त 33 जिलों के सांसदों की बैठक के बाद नक्सलियों के खिलाफ नए सिरे से किसी अभियान के छिड़ने के आसार और दुर्बल नजर आने लगे हैं। इसलिए और अधिक कि एक तो इस बैठक में योजना आयोग को नक्सल ग्रस्त इलाकों के सांसदों को विकास योजनाओं के बारे में जानकारी देनी पड़ी और दूसरे इसलिए भी कि ऐसे सभी सांसद इस बैठक में हाजिर नहीं हुए। यह सर्वथा विचित्र है कि गृहमंत्रालय को इसकी पहल करनी पड़ी कि नक्सलवाद से ग्रस्त इलाकों के सांसद योजना आयोग के जरिये यह जानें कि उनके यहां किस तरह के विकास कार्यक्रम चल रहे हैं और उनमें अब तक कितनी धनराशि खर्च हुई है। आखिर गृहमंत्रालय को यह काम क्यों करना चाहिए? सवाल यह भी है कि सांसदों को स्वत: इससे क्यों नहीं अवगत होना चाहिए कि उनके इलाके में विकास कार्यो की क्या स्थिति है? इस बैठक में सांसदों को यह भी बताया गया कि नक्सली किस तरह स्कूली इमारतों, सड़कों और टेलीफोन टावरों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। क्या यह भी कोई बताने की बात है और वह भी सांसदों को? इस पर भी गौर किया जाना चाहिए कि इस बैठक में नक्सल प्रभावित इलाकों के सभी सांसद शामिल नहीं हुए। शेष ऐसे सांसदों की बैठक आगे होगी। इतना ही नहीं, इन संासदों के सुझावों के आधार पर एक कार्ययोजना तैयार की जाएगी और फिर उसे मुख्यमंत्रियों के समक्ष रखा जाएगा। इसका मतलब है कि नक्सलवाद से ग्रस्त राज्यों के मुख्यमंत्रियों की भी एक बैठक बुलाई जाएगी। आश्चर्य नहीं कि इसके बाद इन राज्यों के पुलिस प्रमुखों और फिर मुख्य सचिवों की बैठक बुलाई जाए। क्या ऐसा नहीं लगता कि नक्सलवाद से निपटने की किसी पंचवर्षीय योजना पर काम शुरू हो गया है? इससे कोई इनकार नहीं करेगा कि नक्सलवाद से ग्रस्त इलाकों में विकास कार्य प्राथमिकता के आधार पर होने चाहिए, लेकिन यदि यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी राज्यों के साथ-साथ केंद्र भी उठा रहा है तो भी इसमें गृहमंत्रालय के हस्तक्षेप की गुंजाइश तो नजर ही नहीं आती। अब क्या गृहमंत्रालय यह देखने वाला है कि कैसे विकास कार्य कहां हो रहे हैं या नहीं हो रहे हैं? दंतेवाड़ा की घटना के बाद जैसे हालात उभर रहे हैं उनसे यही लगता है कि नक्सलवाद से न निपटने की नीति बनाई जा रही है। ध्यान रहे कि इसके पहले कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने किसी और पर नहीं, बल्कि गृहमंत्री पर ही हमला बोला। गृहमंत्री को न केवल गलत ठहराने की कोशिश की गई, बल्कि उन्हें अहंकारी भी बताया गया। इसके साथ-साथ नक्सलियों के गढ़ में विकास की महत्ता का भी ज्ञान दिया गया। क्या किसी ने और खासकर चिदंबरम ने राज्य सरकारों अथवा केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों पर इस तरह की कोई पाबंदी लगा रखी है कि वे नक्सलवाद से ग्रस्त क्षेत्रों में विकास कार्य रोक दें? यदि नहीं तो फिर उन्हें विकास की महत्ता क्यों बताई जा रही है? यह निराशाजनक ही नहीं, बल्कि चिंताजनक भी है कि जिन नक्सलियों को आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया जा रहा है उनसे न लड़ने के बहाने खोजे जा रहे हैं

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