Sunday, May 2, 2010

उत्तर प्रदेश रोड नेटवर्क

उत्तर प्रदेश रोड नेटवर्क के मामले में 28 राज्यों की सूची में 24 वें स्थान पर है। राष्ट्रीय स्तर पर प्रति एक लाख जनसंख्या पर 259.54 किलोमीटर सड़क का औसत है जबकि यूपी में यह औसत 147.08 है। सूबे में हुकूमत कर चुकीं पार्टियां इस पिछड़ेपन का ठीकरा दूसरे पर फोड़ खुद पाक-साफ दिखना चाहती हैं। फिलवक्त तो केंद्र-राज्य का झगड़ा शबाब पर है। केंद्र का आरोप है कि वह सड़कों के लिए पैसा दे रहा है लेकिन उप्र की दिलचस्पी सिर्फ मूर्तियां और पार्क बनवाने में है। राज्य सरकार का कहना है कि केंद्र से कोई मदद नहीं मिल रही। उप्र में रोड नेटवर्क की इस बदहाली को जानने के लिए आंकड़ों पर गौर फरमाना होगा। सूबे में 1,63,093 किलोमीटर लंबाई की सड़कें हैं। इनमें से 6667 किमी मार्ग राष्ट्रीयकृत हैं, जिसमें 2423 किमी सड़क को केंद्र द्वारा भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को हस्तानान्तरित किया जा चुका है। इनमें से 1944 किमी राष्ट्रीय मार्गो के चौड़ीकरण और सुधार के कार्यो को लगभग आठ वर्ष पूर्व शुरू किया गया, जो अब तक पूरा नहीं हो सका है। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के लखनऊ-गोरखपुर, कानपुर-झांसी, लखनऊ-सीतापुर और हापुड़-मुरादाबाद राजमार्ग काफी समय से अधूरे पड़े हैं। लखनऊ-रायबरेली-इलाहाबाद, बाराबंकी-बहराइच-रुपईडीहा और गोरखपुर-सोनौली राष्ट्रीय मार्ग को भी एनएचएआई को हस्तानांतरित किया जा चुका है, पर उन्हें प्राधिकरण ने अपने किसी कार्यक्रम में शामिल नहीं किया है। परिणामस्वरूप वे बदहाली का शिकार हैं। राज्य सरकार का आरोप है कि राष्ट्रीय मार्गो के रखरखाव और सुधार के लिए गत वर्ष अपेक्षित धनराशि उपलब्ध नहीं कराई गयी, जिसके कारण आगरा-अलीगढ़, अलीगढ़-बुलंदशहर, वाराणसी-गोरखपुर और कानपुर-हमीरपुर आदि राष्ट्रीय मार्ग बुरी तरह क्षतिग्रस्त हैं। राज्य सरकार का यह तक आरोप है कि केंद्र का सूबे के प्रति उपेक्षा का ही परिणाम है कि अधिकांश परियोजनाएं टाईम ओवर रन/ कास्ट ओवर रन के बिना पूरी नहीं हो रही हैं। प्रदेश के कुल 99526 ग्रामों में 14105 गांव ऐसे हैं जो अभी तक संपर्क मार्गो से जुड़ ही नहीं पाये हैं। इसी तरह प्रदेश में 1,70,004 बसावटें(हैबिटेशन) में 45,891 मुख्य मार्गो से अब तक नहीं जुड़ पायी हैं। जी हां, एक्सप्रेस वे की तैयारियों में जुटे सूबे की यह हालात आंख खोलने के लिए काफी हैं कि इन बसावटों को अभी भी विकास की पहली दस्तक यानी एक अदद खड़ंजा मार्ग का इंतजार है। नौ साल में नहीं बन सका बाईपास : यूपी में सड़कों की दुदर्शा जानने के लिए शुरुआत करते हैं लखनऊ से। वर्ष 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा शुरू कराया गया अमर शहीद बाई पास का निर्माण नौ साल बीत जाने के बाद भी पूरा नहीं हो पाया है। बाई पास के न बनने से भारी वाहनों का शहर से बीचों बीच से होकर गुजरना जारी है। नतीजा, जनता को आए दिन भारी वाहनों से होने वाले हादसों से रु-ब-रू होना पड़ता है। दशक बाद भी पूरा न हो सका चौड़ीकरण : कानपुर-लखनऊ के बीच स्थित 86 किलोमीटर लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच-25) के चौड़ीकरण का काम वर्ष 2000 में शुरू हुआ था। दस साल की अवधि में भी यह काम पूरा नहीं हो सका है। जो सड़क बनी भी, वह भी अब उखड़ने लगी है। हादसों को दावत देने वाली इस आधी अधूरी सड़क के दिन बहुरने में अभी कितना वक्त और लगेगा, यह तय नही है (भले ही दावा कुछ भी किया जाए)। लखनऊ-कानपुर राष्ट्रीय राजमार्ग की सबसे बुरी दशा उन्नाव के बाद शुरु होती है। फोर लेन की यह सड़क उन्नाव से कानपुर के बीच कई जगह टू लेन में बदल जाती है। आलम यह है कि लखनऊ से उन्नाव पहुंचने में जितना वक्त लगता है, उससे कहीं ज्यादा उसके बाद के उस सोलह किमी. के रास्ते को तय करने में लगता है, जो अधूरा पड़ा है

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