Monday, February 1, 2010
बीटी बैंगन
1990 के उत्तरार्ध में आनुवंशिक रूप से सवंर्धित यानी जैनेटिकली माडिफाइड (जीएम) फसलों की व्यावसायिक खेती प्रांरभ होने के बाद भी अब तक इसकी खेती पर विवाद बरकरार है। आज भी विश्व में 30 करोड़ एकड़ भूमि पर जीएम फसलें उगाई जाती हैं जो कुल कृषि भूमि का महज 2.6 प्रतिशत है। इनमें भी जो फसलें उगाई जाती हैं उनका इस्तेमाल खाने के लिए न के बराबर किया जाता है। गत दिनों जैव प्रौद्योगिकी नियामक समिति (जीईएसी) द्वारा बीटी बैंगन की खेती को मंजूरी के बाद इसकी संभावना जताई जा रही है कि जल्द ही भारत खाद्य श्रेणी की फसलों की खेती करने वाला देश बन जाएगा। हालांकि देश में सरकार के इस प्रयास के खिलाफ विरोध के स्वर मुखर हो रहे हैं। भूमंडलीकरण के युग में जब अर्थव्यवस्था में निर्यात की महत्वपूर्ण भूमिका हो, इस पहलू पर भी गौर करना जरूरी है कि जीएम फसलों की व्यावसायिक खेती की अनुमति देने से देश के खाद्य निर्यात पर क्या असर पड़ेगा। भले ही भारत, चीन समेत कई विकासशील देश खाद्य श्रेणी की जीएम फसलों की खेती की ओर अग्रसर हों, लेकिन विकसित देशों खासकर यूरोप में जीएम फसलों के खिलाफ माहौल बनता जा रहा है। यूरोपीय संघ के अधिकांश देशों के किसान जीएम फसलों के विरोध में खड़े हो रहे हैं। यूरोप में 1998 में अमेरिकी कंपनी मोनसेंटो द्वारा विकसित मान 810 मक्के की खेती की इजाजत दे दी गई थी, लेकिन बीते वर्ष के शुरू में किसानों, पर्यावरण संरक्षण समूहों, कृषि विशेषज्ञों एवं समाज के अन्य तबकों के जबरदस्त विरोध के चलते सरकार ने इस निर्णय को वापस ले लिया। हाल ही में फ्रांस के केन विश्वविद्यालय में शोधकर्ताओं द्वारा इस पर किए गए शोध के निष्कर्ष सार्वजनिक किए गए हैं। शोध के मुताबिक आनुवांशिक रूप से संशोधित मक्का खाने से पशुओं के आंतरिक अंगों में नुकसान के लक्षण पाए गए। प्रयोग के दौरान तीन माह तक चूहों को जीएम मक्का खिलाया गया था। इस दौरान उनमें लीवर और किडनी को नुकसान के स्पष्ट संकेत मिले। फ्रांस सरकार द्वारा जीएम फसलों पर कराए गए एक सर्वेक्षण में 77 प्रतिशत लोगों ने जीएम फसल को नापसंद करते हुए देश में जीएम मक्के की खेती को स्थगित करने के निर्णय का स्वागत किया है। यूरोपीय संघ के 27 देशों के किसान पर्यावरणीय, फसल में क्रास परागण के खतरे व स्वास्थ्य कारणों से जीएम फसलों का विरोध कर रहे हैं। किसान समूहों के दबाव में यूरोपीय खाद्य सुरक्षा अथोरिटी (ईएफएमए) द्वारा खाद्य पदाथरें की गुणवत्ता जांच में अपनाए जाने वाले तौरतरीकों को अत्यधिक सख्त बनाया जा रहा है। जर्मनी में सभी 16 राज्यों में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता की जांच करने के लिए प्रयोगशाला स्थापित की गई है, जहां प्रतिवर्ष हजारों खाद्य पदार्थों की जांच परख की जाती है। भारत में खाद्य श्रेणी की फसलों को अनुमति देते समय यूरोप में चल रहे इस विरोध पर ध्यान देना अत्यंत जरूरी है क्योंकि यूरोप भारतीय कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों का प्रमुख आयातक है। भारत यूरोपीय देशों के बाजारों में निर्यात संवर्धन के लिए निगाहें जमाए हुए है। ये देश भारत से सब्जियों, बासमती चावल व मसालों का बड़े पैमाने पर आयात करते हैं। वित्त वर्ष 2008-09 में यूरोपीय देशों ने भारत से 32 अरब रुपए के मूल्य के कृषि उत्पादों का आयात किया था। यदि भारत खाद्य श्रेणी की जीएम फसलों की व्यावसायिक खेती की इजाजत देता है तो उसका असर निर्यात पर पड़ सकता है। कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) अपनी एक रिपोर्ट में पहले ही स्वीकार कर चुका है कि यूरोप के गुणवत्ता संबधी सख्त नियम, खासकर कीटनाशी अवशेष संबधी, निर्यात में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। कुछ समय पहले ही अमेरिका से आने वाले मालवाहक जहाजों को यूरोप में इसलिए नहीं घुसने दिया गया क्योंकि कार्गो में बीटी मक्का पाया गया था। अगर खाद्य श्रेणी की जीएम फसलों की खेती की इजाजत दी जाती है तो भारत यूरोप मे अपना निर्यात बाजार गंवा सकता हैकृषि व पर्यावरण वैज्ञानिकों ने बीटी बैगन को भले ही खेती के लायक बता दिया हो, लेकिन इसकी राह में अब राजनीति आड़े आ गई है। राजनीतिक उलझाव को देखते हुए सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है। बीटी बैगन की खेती को मंजूरी देने के खिलाफ राज्य सरकारों की त्यौरियां चढ़ने लगी हैं। पर्यावरण संरक्षण और किसान संगठनों ने भी जीईएसी के फैसले की आलोचना करते हुए तीखा तेवर अपना लिया है। बीटी बैगन के विवाद में यूपीए की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस खुद भी कूद गई है। केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कृषि मंत्री शरद पवार को इसके बारे में एक विस्तृत पत्र लिखा है। जीईएसी की वैधानिकता को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा है कि लोगों के हित व भावनाओं का सम्मान करना भी सरकार के अधिकार क्षेत्र में है। कृषि मंत्री शरद पवार की हरी झंडी के बावजूद जयराम रमेश देश भर में जन अदालत आयोजित कर इस मुद्दे पर लोगों की राय ले रहे हैं। उत्तरी क्षेत्र से लेकर दक्षिणी हिस्से में बीटी बैगन का विरोध हो रहा है। चंडीगढ़, कोलकाता, हैदराबाद, भुवनेश्वर, अहमदाबाद और नागपुर में आयोजित जन अदालतों में बीटी बैगन को लेकर उन्हें तीखा विरोध झेलना पड़ा है। इस दौरान जयराम रमेश को कहना पड़ा कि बीटी बैगन की व्यावसायिक खेती से पहले उसके सभी पहलुओं पर विचार किया जाएगा। बैगन की खेती वाले प्रमुख राज्यों पश्चिम बंगाल और बिहार ने सबसे पहले विरोध जताया है। इसके अलावा विरोध जताने वाले राज्यों में मध्य प्रदेश, पंजाब और कर्नाटक प्रमुख हैं। ये सभी राज्य गैर कांग्रेस शासित हैं। कृषि मंत्रालय का कहना है कि बीटी बैगन को जारी करने से पहले जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी (जीईएसी) की मंजूरी ली गई थी। इस लंबी चौड़ी कमेटी के सिर्फ एक सदस्य पी.एम. भार्गव ने इसका विरोध किया था, जो प्रख्यात वैज्ञानिक हैं इसलिए इस फैसले के विरोध का कोई औचित्य नहीं है। हालांकि बीटी बैगन के विरोध से सरकार की मुश्किलें बढ़ जाएंगी।
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