Wednesday, January 6, 2010
भारत और नेपाल के बीच नवीन प्रत्यर्पण संधि
भारत और नेपाल के बीच नवीन प्रत्यर्पण संधि तो है नहीं और माओवादियों के विरोध के असर में पुरानी प्रत्यर्पण संधि पर अमल करने से नेपाल सरकार कतरा रही है। नवीन प्रत्यर्पण संधि के करीब पहुंच कर भी अगर भारत और नेपाल दूर होते जा रहे हैं तो इसकी वजह पाकिस्तान है। दिल्ली-काठमांडू के बीच प्रत्यर्पण संधि के ताजा स्वरूप को हकीकत में बदलने से रोकने के लिए ही पाक ने नेपाल को पहले ही अपने साथ एक ऐसी संधि का प्रस्ताव दे रखा है, जिसमें यह साफ है कि इस्लामाबाद और काठमांडू एक दूसरे के नागरिकों को किसी तीसरे देश को नहीं सौंपेंगे। संधि का मसौदा नेपाल सरकार के सुपुर्द कर चुके पाक का मकसद आईएसआई की शह पर नेपाल में भारत विरोधी काम कर रहे अपने लोगों को दिल्ली की गिरफ्त में आने से बचाना है। पाक के संधि प्रस्ताव को माओवादियों का समर्थन भी मिल चुका है। घरेलू राजनीति में बवाल की आशंका के चलते नेपाल सरकार ने न केवल भारत के साथ नई प्रत्यर्पण संधि को रोक रखा है, बल्कि पुरानी संधि पर अमल करने से भी बच रही है। इसी वजह से अब भारत के साथ प्रत्यर्पण संधि से पहले नेपाली नेता देश में राजनीतिक आम सहमति बनाने की जरूरत पर जोर दे रहे हैं। इससे नेपाल के साथ पाकिस्तानी नागरिकों को भारत लाने की राह साफ करने वाली प्रत्यर्पण संधि की संभावना फिलहाल बिल्कुल नहीं है यानी 15 जनवरी को नेपाल जा रहे विदेश मंत्री एसएम कृष्णा इस मामले में तो खाली हाथ ही लौटने वाले हैं। गौरतलब है कि भारत और नेपाल के बीच 1800 किमी लंबी सीमा का फायदा आईएसआई एजेंट यहां नकली नोट और नशीली दवाओं की तस्करी करने के लिए उठाते हैं। उनकी कोशिश देश की अर्थव्यवस्था को तहस नहस करने और युवा वर्ग को नशे में डुबोकर रख देने की है। काठमांडू से आई सी-814 विमान अपहरण जैसे कांड से भी यही साफ हुआ था कि पाक नेपाल का इस्तेमाल किस तरह कर रहा है।
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