Monday, January 18, 2010

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 बीपीएल परिवारों को लगभग दो दर्जन से ज्यादा बीमारियों में महज 30 रुपये के सालाना खर्च पर 30 हजार रुपये तक का इलाज मुहैया कराने वाली राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) में रोजाना औसतन 50 हजार परिवार शामिल हो रहे हैं। स्मार्ट कार्ड के जरिए इलाज की यह योजना दो साल पहले शुरू हुई थी। योजना कांग्रेस को राजनीतिक रूप से भी फायदेमंद दिखी। लिहाजा उसने लोकसभा चुनाव में उसे अपने घोषणापत्र में शामिल कर लिया। तीन साल के भीतर सभी बीपीएल परिवारों को इस योजना के तहत लाने का वादा किया। देश के 21 राज्यों में योजना चल भी रही है, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने उस पर अमल से सीधा इनकार कर दिया। आंध्र की कांग्रेसी सरकार ने भी यही किया। आंध्र सरकार ने राज्य की राजीव गांधी अरोग्य श्री योजना का हवाला देकर आरएसबीवाई को लागू करने से मना कर दिया है। राजीव गांधी अरोग्य श्री का सालाना बजट एक हजार करोड़ रुपये का है। जबकि आरएसबीवाई के लिए चालू वित्त वर्ष में देश भर के लिए कुल 350 करोड़ रुपये का बजट है। 

Wednesday, January 6, 2010

भारत और नेपाल के बीच नवीन प्रत्यर्पण संधि

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भारत और नेपाल के बीच नवीन प्रत्यर्पण संधि तो है नहीं और माओवादियों के विरोध के असर में पुरानी प्रत्यर्पण संधि पर अमल करने से नेपाल सरकार कतरा रही है। नवीन प्रत्यर्पण संधि के करीब पहुंच कर भी अगर भारत और नेपाल दूर होते जा रहे हैं तो इसकी वजह पाकिस्तान है। दिल्ली-काठमांडू के बीच प्रत्यर्पण संधि के ताजा स्वरूप को हकीकत में बदलने से रोकने के लिए ही पाक ने नेपाल को पहले ही अपने साथ एक ऐसी संधि का प्रस्ताव दे रखा है, जिसमें यह साफ है कि इस्लामाबाद और काठमांडू एक दूसरे के नागरिकों को किसी तीसरे देश को नहीं सौंपेंगे। संधि का मसौदा नेपाल सरकार के सुपुर्द कर चुके पाक का मकसद आईएसआई की शह पर नेपाल में भारत विरोधी काम कर रहे अपने लोगों को दिल्ली की गिरफ्त में आने से बचाना है। पाक के संधि प्रस्ताव को माओवादियों का समर्थन भी मिल चुका है। घरेलू राजनीति में बवाल की आशंका के चलते नेपाल सरकार ने न केवल भारत के साथ नई प्रत्यर्पण संधि को रोक रखा है, बल्कि पुरानी संधि पर अमल करने से भी बच रही है। इसी वजह से अब भारत के साथ प्रत्यर्पण संधि से पहले नेपाली नेता देश में राजनीतिक आम सहमति बनाने की जरूरत पर जोर दे रहे हैं। इससे नेपाल के साथ पाकिस्तानी नागरिकों को भारत लाने की राह साफ करने वाली प्रत्यर्पण संधि की संभावना फिलहाल बिल्कुल नहीं है यानी 15 जनवरी को नेपाल जा रहे विदेश मंत्री एसएम कृष्णा इस मामले में तो खाली हाथ ही लौटने वाले हैं। गौरतलब है कि भारत और नेपाल के बीच 1800 किमी लंबी सीमा का फायदा आईएसआई एजेंट यहां नकली नोट और नशीली दवाओं की तस्करी करने के लिए उठाते हैं। उनकी कोशिश देश की अर्थव्यवस्था को तहस नहस करने और युवा वर्ग को नशे में डुबोकर रख देने की है। काठमांडू से आई सी-814 विमान अपहरण जैसे कांड से भी यही साफ हुआ था कि पाक नेपाल का इस्तेमाल किस तरह कर रहा है। 

यूपी में ई-डिस्ट्रिक्ट पायलट परियोजना लागू

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राज्य के छह जनपदों गोरखपुर Gorakhpur, गाजियाबाद Ghaziabad , गौतमबुध्दनगर Gautambudda Nagar (NOIDA) , सीतापुर Sitapur , सुल्तानपुर Sultanpur  एवं रायबरेली Raibarely में पायलट बेसिस पर संचालित ई-डिस्ट्रिक्ट परियोजना के अच्छे परिणाम प्राप्त हो रहे ह। प्रदेश के प्रमुख सचिव सूचना प्रौद्यौगिकी एवं इलेक्ट्रानिक्स चन्द्र प्रकाश ने आज यहां यह जानकारी देते हुये बताया कि ई डिस्ट्रिक्ट योजना के अन्तर्गत जनपद स्तर पर इलेक्ट्रानिक डिलीवरी के माध्यम से वर्तमान में 23 सेवाएं जनसामान्य को उपलब्ध कराये करायी जा रही हैं। उन्होंने बताया कि इस योजना से आच्छादित जनपदों में लगभग पांच लाख प्रमाण पत्र डिजिटल विधि से निर्गत किये जा चुके हैं। उन्होंने ई-डिस्ट्रिक्ट पायलेट परियाेंजना की सराहना करते हुए कहा कि इस योजना के माध्यम से एकल ख़िडकी प्रणाली लागू करके लोगों को विभिन्न शासकीय सेवाएं इलेक्ट्रानिक्स डिलीवरी  के द्वारा बेहतर ढंग से सुलभ कराई जा रही हैं। श्री बलानी ने कहा कि सीतापुर जनपद ई-डिस्ट्रिक्ट परियोजना को सफलतापूर्वक लागू करने में नये आयाम स्थापित कर रहा है।

प्रमुख सचिव ने कहा कि वर्तमान में इस केन्द्र के कुल 14 सेवाएं जिनमें जाति, आय, निवास, जन्म-मृत्यु एवं विकलांगता प्रमाण-पत्र, विधवा, वृध्दावस्था एवं विकलांगता पेंशन के अतिरिक्त राजस्व न्यायालय एवं शिकायत निराकरण से संबंधित सेवाएं सुलभ करायी जा रही हैं। सीतापुर जनपद में अब तक 2.56 लाख आवेदन प्राप्त हुये, जिनमें से लगभग 2.38 लाख आवेदन पत्रों का निस्तारण इलेक्ट्रानिक्स डिलीवरी विधि से डिजिटल सिग्नेचर का उपयोग करते हुए किया जा चुका है। चन्द्र प्रकाश ने बताया कि श्री बलानी द्वारा राजा टोडरमल जन सुविधा केन्द्र पर उपस्थित जनता से योजना की उपयोगिता के बारे में भी जानकारी प्राप्त की गई, जिसके दौरान अधिकांश लोगों ने इसे बेहद उपयोगी बताया । जनता ने उन्हें यह भी अवगत कराया कि इस योजना के लागू हो जाने से उन्हें अब विभिन्न प्रकार के शासकीय प्रमाण पत्र आदि प्राप्त करने में काफी सुविधा हो रही है। इसके साथ जनमानस को अब विभिन्न प्रकार के शासकीय प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए भटकना नहीं पडता है। श्री बलानी ने योजना की सफलता पर सन्तोष व्यक्त करते हुये कहा कि योजना की सफलता के फलस्वरूप ही केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय ई-गवर्नेन्स मिशन के तहत ई-डिस्ट्रिक्ट योजना देश के 16 राज्यों में लागू की जा रही है। उन्होंने बताया कि उ0प्र0 देश का ऐसा पहला एवं अकेला राज्य है जहां पायलट आधार पर इसे लागू किया गया और इसके बेहतर परिणाम ही नहीं परिलक्षित हुए बल्कि लोगो ंमें इसके प्रति उत्साह भी देखने को मिला। उन्होंने इसे उत्तर प्रदेश के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया। प्रमुख सचिव ने कहा कि ई-डिस्ट्रिक्ट योजना को राज्य के 65 अन्य जिलों में रूपये 250 करोड़ की लागत से लागू किये जाने की कार्यवाही की जा रही है। इस परियोजना पर होने वाले व्यय का वित्त पोषण केन्द्र सरकार द्वारा किया जायेगा। भारत सरकार स्तर पर इसके अनुमोदन की कार्यवाही प्रगति पर है। उन्होंने उम्मीद जताई कि चालू वित्तीय वर्ष के मार्च माह तक  पूरे प्रदेश में इस योजना का यिान्वयन शुरू कर दिया जायेगा। श्री चन्द्र प्रकाश ने बताया कि प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में 17,909 जन सेवा केन्द्रों (कामन सर्विस सेंटर)की स्थापना का कार्य प्रगति पर है। वर्ष 2010 के अंत तक यह केन्द्र पूरी तरह यिाशील हो जायेंगें। उन्होंने कहा कि ई-डिस्ट्रिक्ट योजना के अन्तर्गत आच्छादित समस्त सेवाएं इन जन सेवा केन्द्रों के माध्यम से ही जन सामान्य को उनके द्वार पर ही सुगमता से मिलने लगेंगी। इससे ई-गवर्नेन्स की मंशा पूर्ण होने के साथ ही प्रदेश में ई-गवर्नेन्स की दिशा में यह एक सार्थक तथा ांतिकारी कदम होगा।


Saturday, January 2, 2010

रुचिका की बदौलत दुरुस्त हुआ कानून

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रुचिका की बदौलत दुरुस्त हुआ कानून
 रुचिका मामला प्रकाश में आने के बाद सरकार यौन उत्पीड़न से संबंधित मामलों में कानून को दुरुस्त करने में जुट गई है। इसके तहत गुरुवार से सीआरपीसी में नए संशोधन लागू कर दिए गए हैं। संशोधन के मुताबिक अब बलात्कार समेत तमाम यौन अपराधों की सुनवाई दो महीने के भीतर पूरी की जाएगी। यही नहीं, अब सभी पक्षों को अदालत के आदेश के खिलाफ अपील का अधिकार होगा। प्रभावी संशोधन शिकायतकर्ताओं के लिए बड़ी राहत साबित होंगे, क्योंकि ऐसे मामलों में अभी तक केवल राज्य ही आदेश के खिलाफ अपील दायर कर सकता था। गृह मंत्रालय से जारी बयान में कहा गया है कि पीडि़तों को अभियोजन में मदद के लिए अब वकील करने की अनुमति होगी। बलात्कार पीडि़त का बयान उसके घर में दर्ज किया जाएगा और जहां तक मुमकिन होगा, कोई महिला पुलिस अधिकारी ही माता-पिता या अभिभावक या सामाजिक कार्यकर्ता की मौजूदगी में पीडि़ता के बयान दर्ज करेगी और उसके आडियो-वीडियो बनेंगे। सीआरपीसी में कहा गया है कि राज्य सरकारें पीडि़त व्यक्ति या उसके आश्रितों को मुआवजा देने के लिए एक नियम बनाएं। पुलिस द्वारा किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार और स्थगन मंजूर करने या इससे इनकार करने के अदालत के अधिकार संबंधी तीन प्रावधानों धारा 5, 6 और 21-बी को फिलहाल लागू नहीं किया गया 

विशेष आर्थिक क्षेत्र का भविष्य

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नई दिल्ली विशेष आर्थिक क्षेत्र का खुमार सरकार के सिर से भी उतरता दिख रहा है और कारपोरेट क्षेत्र का भी। 2009 की शुरुआत से विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) के भविष्य को लेकर अनिश्चितता का जो दौर शुरु हुआ था वह अब ठोस शक्ल अख्तियार करने लगा है। केंद्र सरकार ने पिछले हफ्ते 11 एसईजेड परियोजनाओं को लगाने में हो रही देरी को देखते हुए इन्हें और ज्यादा समय देने से इनकार कर दिया तो राज्य सरकारों ने भी किसानों के विरोध के चलते एसईजेड प्रस्तावों को निरस्त करना शुरू कर दिया है। वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक समय पर काम शुरू न होने या काफी धीमी प्रगति के आधार पर आने वाले दिनों में 50 एसईजेड परियोजनाओं को नोटिस जारी हो सकता है। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र और गुजरात सहित अन्य राज्यों में 40 ऐसी एसईजेड परियोजनाएं हैं जिनकी अधिसूचना जारी होने के बावजूद जमीन अधिग्रहण में दिक्कत आ रही है। अब जबकि राज्यों ने अपने स्तर पर किसानों के विरोध को देखते हुए एसईजेड प्रस्ताव को खारिज करना शुरू कर दिया है, आने वाले दिनों में कई स्वीकृत परियोजनाओं को ठंडे बस्ते में डालना पड़ सकता है। सूत्रों के मुताबिक अधिकांश प्रस्तावक अब यह सूचना भेज रहे हैं कि मंदी और जमीन नहीं मिलने की वजह से वे अपनी योजना को आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं। हालांकि कई ऐसी स्परियोजनाएं हैं जिन पर काम शुरू हो सकता था। इनकी छंटनी की जा रही है। सौ से ज्यादा एसईजेड प्रस्तावों को वर्ष 2005-05 में मंजूरी दी गई थी, लेकिन उनमें से अधिकांश अभी भी कागजों से आगे नहीं बढ़ पाये हैं। इस आधार पर लगभग 50 एसईजेड परियोजनाओं को सरकार अब और ज्यादा वक्त देने के मूड में नहीं है। राज्य सरकारों का आकर्षण भी एसईजेड को लेकर कम होता जा रहा है। किसानों के विरोध को देखते हुए हाल ही में महाराष्ट्र में वीडियोकॉन के एक प्रस्ताव को निरस्त कर दिया गया। दिसंबर में वाणिज्य मंत्रालय ने जिन 11 परियोजनाओं को फिर से मंजूरी लेने को कहा है उनमें रिलायंस समूह (मुकेश अंबानी) की हरियाणा स्थिति परियोजना, पोस्को इंडिया की स्टील एसईजेड, इंडिया बुल्स की एसईजेड परियोजना भी शामिल है। एसईजेड अधिनियम, 2005 के मुताबिक इस तरह की परियोजना को केवल दो बार ही समय सीमा बढ़ाने की मंजूरी दी जा सकती है। कारपोरेट जगत इस प्रावधान में संशोधन चाहता है। सरकार ने भी संकेत दिए हैं कि वह उचित समय पर इस बारे में फैसला करेगी। एसईजेड कानून बनने के बाद से अभी तक केंद्र सरकार ने 578 एसईजेड प्रस्तावों को औपचारिक और 146 एसईजेड प्रस्तावों को सैद्धांतिक तौर पर मंजूरी दी है। इनमें से अधिकांश प्रस्तावों में जमीन अधिग्रहण को लेकर दिक्कतें चल रही हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अभी तक केवल 98 एसईजेड पर ही काम शुरू हो सका है। इनमें सात तो केंद्र सरकार स्थापित कर रही है।

कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज मुहिम

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साल 2020 तक अपना कार्बन एमिशन एक चौथाई तक कम करने के ऐलान पर चलते हुए भारत सरकार ने एक अहम पहल की

है। भारत ऑस्ट्रेलिया के एक बड़े कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज मुहिम का फाउंडर मेंबर बनने वाला है। कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज मुहिम में जीवाश्म ईंधन का बड़े पैमाने पर उपभोग करने वाले स्त्रोतों को टारगेट बनाया जाता है। मसलन, पावर प्लांटों में बड़ी-बड़ी चिमनियों से निकलने वाले धुएं से कार्बन डाई ऑक्साइड निकालकर और विभिन्न उपायों से इसे वायुमंडल से कहीं और ले जाना इसमें शामिल है।

इस मुहिम का ऐलान ऑस्ट्रेलियाई पीएम केविन रड ने सितंबर 2008 में किया था, जबकि सितंबर 2009 में इसे लॉन्च किया गया था। ताकि कार्बन कैप्चर और स्टोरेज के लिए ग्लोबल प्लैटफॉर्म तैयार हो सके।

इस प्रस्ताव के तहत 2020 तक दुनिया भर में कम से कम 20 इंटिग्रेटिड इंडस्ट्रियल डेमंस्ट्रेशन प्रोजेक्टों को शुरू किया जाना है। इसका मकसद सभी सरकारों, उद्योगों और रिसर्चरों को एक प्लैटफॉर्म पर लाकर कमर्शल कार्बन कैप्चर प्रोजेक्टों का विकास और उन पर निवेश करवाना है।

यही वजह है कि ऊर्जा मंत्रालय ने एक प्रस्ताव संबंधित मंत्रालयों के पास कॉमेंट्स जानने के लिए भेजा है। भारत को अगर इस नेक मुहिम में फाउंडर मेंबर की हैसियत से शामिल होना है तो उसे नवंबर 2010 से पहले समझौता ज्ञापन साइन करना होगा। हालांकि मिनिस्ट्री के इस नोट में कहीं यह संकेत नहीं है कि भारत कार्बन कैप्चर ऐंड स्टोरेज के लिए कोई डेमंस्ट्रेशन प्रोजेक्ट शुरू करने जा रहा है।