Saturday, December 5, 2009

आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई

 ओबामा भविष्य की जरूरतों पर ध्यान दे रहे हैं। इराक से 2010 में सेना की वापसी की शुरुआत करने और 2011 में पूरी तरह वहां से निकल आने की प्रतिबद्धता उतना ही बुद्धिमानी भरा निर्णय है जितना कि अफगानिस्तान में तीस हजार और सैनिक भेजने का निर्णय। दुनिया जानती है कि आतंकी हमलों की साजिश रचने और उन्हें अंजाम देने का काम अफगानिस्तान से किया जा रहा है। दक्षिणी अफगानिस्तान और पाकिस्तान से लगे जनजातीय इलाके में सेना की तैनाती में तीन से छह माह का समय लग सकता है, लेकिन पाकिस्तान की धरती से आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे रहे लोगों के लिए संदेश स्पष्ट है। यह संदेश पाकिस्तानी सरकार, सेना और आईएसआई में घुसे आतंकियों के समर्थकों के लिए भी है। ओबामा ने पाकिस्तान सरकार को लश्करे तैयबा को मिल रही मदद के प्रति आगाह किया है। पाकिस्तान एक लंबे समय से आतंकवाद के मसले पर दुनिया को ब्लैकमेल करने की रणनीति पर चल रहा है। वह आतंकवाद से लड़ने के नाम पर अमेरिका से भी आर्थिक और सैन्य मदद झटकने में सफल है। हम सब पाकिस्तान में सत्ता प्रतिष्ठान में अलग-अलग गुटों के बीच संघर्ष से परिचित हैं। पाकिस्तान आतंकवाद से लड़ने के लिए अमेरिका से मिलने वाली मदद का दुरुपयोग जम्मू-कश्मीर तथा भारत के दूसरे हिस्सों में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने में कर रहा है। 26 नवंबर के आतंकी हमले के संदर्भ में सामने आई सूचनाएं और अमेरिका में पाकिस्तानी मूल के आतंकियों-डेविड हेडली उर्फ दाऊद गिलानी और तहव्वुर हुसैन राणा की गिरफ्तारी से मुंबई हमले की अधूरी कडि़यां जुड़ सकती हैं। अब अमेरिका को अफगानिस्तान में अधिक सैन्य बलों की तैनाती से अपनी कार्रवाई को नई धार देने का मौका मिलेगा। मुझे लगता है कि वैश्विक समुदाय आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जीतने की ओर बढ़ रहा है

6 comments:

  1. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी टिप्पणियां दें

    कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये
    वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:
    डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?>
    इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना
    और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये

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  2. विश्वव्यापी आतंकवाद के खिलाफ़ यह लड़ाई अलग-अलग मोर्चों पर और अलग अलग स्वार्थों के लिये लडी जा रही है..पाक बलूचों को तोआतंकवादी मानता है मगर कश्मीरी आतंक तो स्वतंत्रता संघर्ष..इरान तालिबानों का खत्म करना जरूरी समझता है मगर लेबनान मे हिज्बुल्लाह को प्रश्रय भी देता है..सवाल यह भी है कि अमेरिका को क्या वास्तव मे अफ़्गानिस्तान के भविष्य कि फ़िक्र है या वो सिर्फ़ अपनी गर्दन ही बचाना चाहता है..तालिबानों के बढ़ते खतरे और लचर लोकतंत्र के बीच अफ़गानिस्तान मे शांति अ्भी दूर की बात लगती है...

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  3. सुन्दर लेखन । स्वागत है ।

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  4. श्रीमन बहुत खूब

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  5. ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है

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